भारतीय वैज्ञानिकों के शोध को WHO ने दी मान्यता, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के प्रयोग की अनुमति
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा एक बार फिर चर्चा में आयी है. असल में बीच में डब्ल्यूएचओ ने इस दवा पर रोक लगाई थी, लेकि अब इसके प्रयोग को अनुमति दे दी है.यह इसलिए क्योंकि कोरोना के इलाज में और उससे बचने के लिए यह बेहद कारगर दवा है
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा एक बार फिर चर्चा में आयी है. असल में बीच में डब्ल्यूएचओ ने इस दवा पर रोक लगाई थी, लेकि अब इसके प्रयोग को अनुमति दे दी है.यह इसलिए क्योंकि कोरोना के इलाज में और उससे बचने के लिए यह बेहद कारगर दवा है. लेकिन हां, बिना डॉक्टर की सलाह के इसे लेना खतरनाक हो सकता है. इस बारे में जानकारी देते हुए गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली के डॉ. लेफ्टिनेंट जनरल वेद चतुर्वेदी ने बताया कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के बारे में बहुत समय से हम जानते हैं कि यह काफी असरकारी दवा है.
अमेरिकी के एनआईएच के फिजीशियन और इम्यूनोलॉजिस्ट यानी प्ररतिरक्षाविज्ञानी डॉ एंथनी फाउसी ने 2005 में ही रेमडेसिवीर , हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन और एंटीबायोटिक दवाएं पर एक स्टडी की थी। जिसमें पाया कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन सबसे प्रभावशाली दवा है। आईसीएमआर का भी शोध आ गया है कि इस दवा को देने से संक्रमण की दर कम होती है. जिसके बाद आईसीएमआर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ को रिपोर्ट भेजी और उन्होंने एक बार फिर दवा के प्रयोग की अनुमति दे दी है. इस दौरान उन्होंने दवा के सेवन पर कहा कि आईसीएमआर के अनुसार हेल्थकेयर वर्कर और जो भी फ्रंट लाइन वर्कर, जैसे पुलिस हैं बैंक कर्मचारी हैं, उन्हें प्रयोग करने की इजाज़त है। इसके अलावा संक्रमित के संपर्क में रहने वाले और कुछ संक्रमितों को भी डॉक्टर की निगरानी में यह दवा दी जाती है. यह भी पढ़े: Coronavirus in India: महाराष्ट्र और दिल्ली सहित इन 4 राज्यों में हैं कोरोना के सबसे ज्यादा मरीज, जानें आपके राज्य का हाल
संक्रमित के इलाज के लिए जो दवाएं है कम प्रभावी
कई बार लोग संक्रमण को लेकर घबरा जाते हैं और सोचते हैं इसकी दवा या वैक्सीन नहीं है तो कैसे ठीक होते हैं। इस पर डॉ वेद ने कहा कि जैसे ही वायरस का संक्रमण होता है शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं जो शरीर में वायरस को बढ़ने से रोकते हैं और उन्हें नष्ट करते हैं। इसके साथ ही ऐसा नहीं है कि इसकी दवा नहीं है। कुछ दवाएं हैं जो प्रयोग के तौर पर दी जा रही हैं। लेकिन वो उतनी इफेक्टिव नहीं हैं।
वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल
वैक्सीन को लेकर उन्होंने कहा कि दुनिया भर में करीब 32 कंपनियां व शोध संस्थान हैं जो वायरस पर शोध कर रही हैं। इनमें से कई ने ह्यूमन ट्रायल भी कर लिया है। इनमें ऑक्सफ़ोर्ड काफी आगे चल रहा है। जब ह्यूमन ट्रायल होता है तो ये विश्वास होता है कि वह इफेक्टिव होगी। इसलिए ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि दिसंबर तक वैक्सीन आ जाएगी है। कुल मिलाकर सबसे अहम यह है कि जो भी वैक्सीन आए वो प्रभावी हो।