घाटी में अलगाववादियों पर सरकार का चौतरफा अटैक, जानें क्या है जमात-ए-इस्लामी जिसने कश्मीर में बोए आतंक के बीज
अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है. सरकार के निशान पर अब जमात-ए-इस्लामी की 52 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जिसे जब्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
पुलवामा आतंकी हमले के बाद से केंद्र सरकार घाटी में आतंकवाद के खिलाफ एक के बाद एक बड़े एक्शन ले रही है. आतंकी हो या अलगाववादी घाटी में अब सरकार सभी पर नकेल कस रही है. एक ओर घाटी में सुरक्षाबल आतंकियों को मौत के घात उतार रहें है तो वहीं सरकार इन आतंकियों को बढ़ावा देने वालों पर एकाएक बड़ी कार्रवाई कर रही है. सीमा पार सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद घाटी में अलगाववादियों पर सरकार सर्जिकल स्ट्राइक जारी है. अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है. सरकार के निशान पर अब जमात-ए-इस्लामी की 52 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जिसे जब्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
पुलवामा हमले से तार जुड़े होने के सबूत मिलने के बाद रविवार को इस संगठन के 15 और सदस्यों को गिरफ्त में लिया गया है और इसकी 52 करोड़ की संपत्ति जब्त कर जांच की जा रही है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक 1 मार्च से अभी तक इस संगठन से जुड़े 370 से ज्यादा लोगों को गिरफ्त में लेकर पूछताछ की जा रही है. गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी पर आरोप है कि ये जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए जिम्मेदार प्रमुख संगठन है. जमात-ए-इस्लामी आतंकियों को ट्रेन करना, उन्हें फंड करना, शरण देना, लॉजिस्टिक मुहैया करना आदि काम कर रहा था.
जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का मिलिटेंट विंग माना जाता है. ये संगठन अलगाववादी, आतंकवादी तत्वों का वैचारिक समर्थन करता है. उनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में भी भरपूर मदद देता रहा है. 1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था. उस समय अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ माना जाता था. उस वक्त जमात-ए-इस्लामी, हिजबुल की राजनीतिक शाखा के तौर पर काम करता था. इसके विपरीत जमात-ए-इस्लामी खुद को हमेशा सामाजिक और धार्मिक संगठन बताता रहा है. आज भी जमात का एक एक बड़ा कैडर, हिजबुल से जुड़ा हुआ है. यह भी पढ़ें- जम्मू कश्मीर: 'जमात-ए-इस्लामी' से जुड़ी सम्पत्तियां सील, विरोध में सड़क पर उतरीं महबूबा मुफ्ती, सरकार की कार्रवाई को बताया निंदनीय
क्या है जमात-ए-इस्लामी
जमात-ए-इस्लामी एक इस्लामिक राजनीतिक पार्टी है, जिसकी स्थापना आजादी से 1941 में मौलाना अबुल आला मौदूदी ने खुदा की सल्तनत स्थापित करने के मकसद से की थी. उन्होंने इस्लाम को धार्मिक मार्ग से परे एक राजनीतिक विचारधारा प्रदान करने वाले रास्ते के रूप में देखा था. जमात-ए-इस्लामी के तीन धड़े हैं - जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमात-ए-इस्लामी-पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी कश्मीर. जमात-ए-इस्लामी हिंद को छोड़कर अन्य दोनों धड़े आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं.
बता दें कि इससे पहले भी दो बार इस संगठन को बैन किया जा चुका है. पहली बार जम्मू कश्मीर सरकार ने इस संगठन को 1975 में 2 साल के लिए बैन किया था, जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इसे बैन किया था. यह बैन दिसंबर 1993 तक था. यह भी पढ़ें- भारतीय Air Strike पर चश्मदीदों का बयान, कहा- ISI एजेंट समेत कई आतंकी मारे गए, 35 शवों को देखा लेकिन पाक सेना ने छीन लिए थे मोबाइल
जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की घाटी की राजनीति अहम भूमिका है और साल 1971 से इसने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. माना जाता है कि हिजबुल मुजाहिदीन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही खड़ा किया है. हिज्बुल मुजाहिदीन को इस संगठन ने हर तरह की सहायता की.
जमात-ए-इस्लामी हिंद है अलग संगठन
जमात-ए-इस्लामी की तीन धड़ों में मुख्य एक जमात-ए-इस्लामी हिंद भी है. यह संगठन बाकि सब से अलग है. इसका अन्य बाकी संगठनो से कोई लेना देना नहीं है. साल 1953 में जमात-ए-इस्लामी ने अपना अलग संविधान भी बना लिया था. जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) घाटी में चुनाव लड़ता है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी हिंद ऐसा संगठन है जो वेलफेयर के लिए काम करता है. जमात-ए-इस्लामी हिंद देश में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े कार्य कर करता है.
किस-किस की हुई गिरफ्तारी?
जम्मू-कश्मीर पुलिस और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रविवार को जमात-ए-इस्लामी (जम्मू कश्मीर) से जुड़े सैयदपुरा के पूर्व जिला अध्यक्ष बशीर अहमद लोन के साथ उनके अन्य साथियों अब्दुल हामिद फयाज, जाहिद अली, मुदस्सिर अहमद, गुलाम कादिर, मुदासिर कादिर, फयाज वानी, जहूर हकाक, अफजल मीर, शौकत शाहिद, शेख जाहिद, इमरान अली, मुश्ताक अहमद और अजक्स रसूल को गिरफ्तार किया गया. जांच एजेंसी अब तक इस संगठन की करीब 52 करोड़ की संपत्ति जब्त कर चुकी है. बता दें कि इस संगठन के जिन बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, उनसे फिलहाल पूछताछ की जा रही है. यह भी पढ़ें- IAF एयर स्ट्राइक पर मसूद अजहर के छोटे भाई मौलाना अम्मार ने बर्बादी का रोना रोया, बालाकोट में हुई तबाही को माना
गौरतलब है कि पिछले तीन दिनों से घाटी में जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ केंद्र सरकार की कार्रवाई निरंतर जारी है. शनिवार को भी जमात के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई. घाटी में 22 फरवरी को कट्टरपंथी अलगाववादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई थी. शुरूआती दो दिनों में ही जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों से ज्यादा अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है. अब भी अलगाववादी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की सिलसिला जारी है.
अलगाववादी कार्यकर्ताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई के दौरान की गई छापेमारी में तकरीबन 52 करोड़ रुपये जब्त किए जा चुके हैं. केंद्र सरकार इनके खिलाफ अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत कार्रवाई कर रही है. इसके तहत अलगाववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं और नेताओं की गिरफ्तारी के अलावा अब तक अकेले जमात-ए-इस्लामी के 70 बैंक खाते सील किए जा चुके हैं. इसके अलावा घाटी में उनके ठिकानों पर तालाबंदी की कार्रवाई भी जारी है. अब तक इनके करीब 100 ठिकानों की पहचान की जा चुकी है और इन्हें सील करने की प्रक्रिया जारी है. संगठन के टेरर फंडिंग में भी शामिल होने के संकेत सरकार को मिले हैं.
जमात-ए-इस्लामी ने ही कश्मीरी युवाओं में अलगाववाद और मजहबी कट्टरता के बीज बोए हैं. बीते चार सालों के दौरान जमात के कई नेता कश्मीर के विभिन्न जगहों पर आतंकियों का महिमामंडन करते भी पकड़े गए हैं. कई पूर्व सुरक्षा अधिकारी और कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की रीढ़ के तौर पर जमात-ए-इस्लामी किसी न किसी तरीके से काम करती है. इसीलिए केंद्र सरकार ने जमात पर प्रतिबंध लगाया है.