सुप्रीम कोर्ट इस बारे में विचार करेगा कि क्या देश में फांसी की जगह मौत की सजा देने का कोई और दर्द रहित तरीका हो सकता है.बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह दर्द रहित मौत की सजा देने को लेकर विशेषज्ञ समिति बना सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में केंद्र सरकार से डेटा भी मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि फांसी देने से कितना दर्द होता है. साथ ही पूछा कि आधुनिक विज्ञान और तकनीक का फांसी की सजा को लेकर क्या नजरिया है. उसने पूछा कि देश या विदेश में मौत की सजा के विकल्प का क्या कोई डेटा है.
दरअसल भारत में फांसी की मौजूदा प्रथा के खिलाफ 2017 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी और मांग की गई थी कि इससे कम दर्दनाक तरीकों जैसे लीथल इंजेक्शन, गोली मारने, बिजली के झटके या गैस चैंबर में डालकर मौत की सजा दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीवी नरसिम्हा की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि अदालत विधायिका को दोषियों को सजा देने के लिए एक विशेष तरीका अपनाने का निर्देश नहीं दे सकती है.
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, "हम विधायिका को यह नहीं बता सकते कि आप इस तरीके को अपनाएं. लेकिन आप (याचिकाकर्ता) निश्चित रूप से तर्क दे सकते हैं कि कुछ अधिक मानवीय हो सकता है...घातक इंजेक्शन में भी व्यक्ति वास्तव में संघर्ष करता है. विधि आयोग किस आधार पर कहता है कि घातक इंजेक्शन एक लंबी मौत नहीं है. इस बात पर भी काफी मतभेद हैं कि कौन से रसायनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. वहां क्या शोध है."
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "हमें यह देखना होगा कि क्या ये तरीका कसौटी पर खरा उतरता है और अगर कोई तरीका है, जिसे अपनाया जा सकता है तो क्या फांसी से मौत को अंसवैधानिक घोषित किया जा सकता है."
कम दर्दनाक मौत का विकल्प
याचिका में यह दलील भी दी गई कि फांसी की सजा में 40 मिनट लगते हैं, जबकि गोली मारने, इंजेक्शन और बिजली के झटके से मारने में महज कुछ मिनट लगते हैं. याचिका में कहा गया कि ऐसे में मौत की सजा में ऐसे किसी तरीके को अपनाया जा सकता है.
विशेषज्ञ समिति के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि अगर मौत की सजा देने के वैकल्पिक तरीकों के बारे में भारत या विदेश में कोई डेटा है तो बेहतर होगा कि एक पैनल बनाया जाए जिसमें राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों, एम्स के डॉक्टरों, विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को शामिल किया जा सके.
बेंच ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से फांसी से मौत के प्रभाव, दर्द के कारण और इस तरह की मौत होने में लगने वाली अवधि और इस तरह की फांसी को प्रभावी बनाने के लिए संसाधनों की उपलब्धता के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने को भी कहा.
गरिमा के साथ मौत की सजा
बेंच ने पूछा कि क्या विज्ञान यह सुझाव देता है कि फांसी की सजा "आज भी सबसे अच्छी विधि है या क्या कोई और तरीका है जो मानवीय गरिमा को बनाए रखने के लिए अधिक उपयुक्त है." गले से लटकाकर फांसी देने के मौजूदा तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने पिछली बार 1983 में सही बताया था.
भारत में फांसी की सजा दुर्लभ से दुर्लभतम मामले में ही दी जाती है. कई ऐसे देश हैं जहां फांसी के अन्य विकल्पों को अपनाया जा चुका है.
साल 2018 में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले में दोषियों को फांसी की सजा को भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया था. देश के कई राज्यों की अदालतें जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और हरियाणा में पहले से ही बच्चियों के साथ बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा सुना रही है. 50 फीसदी से अधिक फांसी की सजा यौन अपराध से जुड़े मामलों में सुनाई जा रही है.
साल 2022 में देश भर की अदालतों ने 165 दोषियों को मौत की सजा सुनाई, जो 20 सालों में सबसे अधिक है. इनमें वे 38 लोग भी शामिल हैं जिन्हें अहमदाबाद की अदालत ने 2008 के सीरियल ब्लास्ट केस में फांसी की सजा सुनाई थी.
कितनी फांसी की सजा
1976 से लेकर अब तक दुनिया के 90 से अधिक देशों ने सभी तरह के अपराधों के लिए मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है. वहीं, भारत के अलावा अमेरिका, जापान, चीन, ईरान , सऊदी अरब और इराक सहित कई अन्य देशों में अभी भी इस सजा का प्रावधान है.
दिसंबर 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में 125 देशों ने मृत्युदंड पर रोक के पक्ष में मतदान किया था. भारत ने इसके खिलाफ मतदान किया. 2021 में मृत्युदंड पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में लाए गए एक मसौदा प्रस्ताव का भी भारत ने विरोध किया था.
हालांकि, भारत में मृत्युदंड का प्रावधान होने के बावजूद काफी कम लोगों को ही फांसी दी जाती है. साल 2000 के बाद से अब तक भारत में कुल आठ लोगों को ही फांसी दी गई है.