जयपुर, 5 फरवरी : राज्य सरकार केंद्रीय बजट 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के आवंटन में कटौती, अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना के लिए बजट में एक तिहाई की कमी और पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय दर्जा न देने को मुद्दा बना रही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने बजट को राज्य के लिए निराशाजनक बताया है. हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन और भारत स्वच्छ मिशन के बजट में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी की गई है. इस बढ़ोतरी से राजस्थान को ज्यादा फंड मिलेगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के बजट में पिछली बार की तुलना में करीब 30 हजार करोड़ रुपये की कटौती की है. इस कमी से राजस्थान के हिस्से में भी कमी आने की उम्मीद है.
अगर ऐसा होता है तो इस योजना से जुड़े राजस्थान के करीब 1.45 करोड़ ग्रामीण मजदूरों पर सीधा असर पड़ेगा. केंद्र सरकार के पिछले बजट में इस योजना का आकार 73,000 करोड़ रुपये था. बाद में जरूरत को देखते हुए केंद्र ने संशोधित अनुमान बढ़ाकर 89,400 करोड़ रुपये कर दिया. इस बार आकार घटाकर केवल 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. मनरेगा के लिए राज्यों को केंद्र से 75 फीसदी फंड मिलता है. पिछले साल केंद्र के बजट प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने अपने बजट में 3906 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, इसमे केंद्र से 2970 करोड़ रुपये का हिस्सा मिलने का अनुमान लगाया गया था. यह भी पढ़ें : दिल्ली दंगे के मामले में कोर्ट के फैसले पर चिदंबरम ने कहा, ‘ट्रायल से पहले सजा’
मुख्यमंत्री गहलोत ने बजट घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे अपने राज्य के लिए निराशाजनक करार दिया. उन्होंने कहा कि मनरेगा में कटौती से साबित होता है कि बजट गरीबों खासकर भूमिहीन किसानों के खिलाफ है. गहलोत ने कहा कि इस बजट में कृषि और किसानों के कल्याण से संबंधित कई फर्जी घोषणाएं की गई हैं. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का वास्तविक आवंटन पिछले साल की तुलना में लगभग 6 प्रतिशत (लगभग 7,500 करोड़ रुपये) कम है. इसी तरह यूरिया सब्सिडी में पिछले साल की तुलना में 15 फीसदी (करीब 23,000 करोड़ रुपए) की कमी आई है.
गहलोत ने कहा, राज्य के लोग निराश हैं, केंद्र सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय दर्जा देने की हमारी मांग को स्वीकार नहीं किया है, जो राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, बजट में सिर्फ सुर्खियां बटोरने वाले जुमलों का इस्तेमाल किया गया है. इस बीच विशेषज्ञों का मानना है कि संसद में पेश बजट में बाजरा और गोबर से जुड़ी दो घोषणाएं राजस्थान की किस्मत पलट सकती हैं.
मोटे अनाज उत्पादन में भारत को वैश्विक केंद्र बनाने और जैविक खाद के लिए 10,000 गोबर संग्रह केंद्र खोलने की घोषणा की गई है. वित्त मंत्री सीतारमण ने बाजरे को श्री अन्न (ईश्वर का भोजन) नाम दिया है. राजस्थान बाजरा उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है. बाजरा, जौ, ज्वार, मक्का जैसे मोटे अनाज यहां परंपरागत रूप से उगाए जा रहे हैं. राजस्थान में लगभग 5.50 करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़े हुए हैं. जानकारों का कहना है कि अगर राज्य सरकार इन घोषणाओं पर गंभीरता से काम करे, तो राजस्थान में रहने वाले 7.50 करोड़ में से 5.50 करोड़ लोगों की किस्मत बदल सकती है.
स्वतंत्र विशेषज्ञों ने बाजरा पर बजट घोषणाओं की सराहना की है, जिसमें देश को बाजरा उत्पादन के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना, देश में एक शोध संस्थान खोलना, विशेष रूप से बाजरा के लिए, मोटे अनाज की खेती के लिए उर्वरकों पर 50 प्रतिशत की छूट की घोषणा शामिल है. मोटे अनाज के उत्पादन के लिए जैविक खाद तैयार करने के लिए 10,000 जैव इनपुट संसाधन केंद्र (गाय के गोबर संग्रह के लिए), और किसानों को सीधे ऋण प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए फंड की व्यवस्था शामिल है.
कृषि मंत्रालय के मुताबिक राजस्थान बाजरे के उत्पादन में देश में पहले नंबर पर है. 1939 और 1019 टन के वार्षिक उत्पादन के साथ राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश और हरियाणा का स्थान है. ऐसे में बाजरे की मार्केटिंग से जुड़ी एक विशेष योजना के लागू होने से राजस्थान के खेतों से निकलकर बाजरा दुनिया की खाने की थाली तक पहुंच सकता है.
जैविक खाद बनाने के लिए देश भर में खोले जाने वाले 10 हजार केंद्र से अब लोग गोबर से भी कमाई कर सकेंगे. पशुपालन में यूपी के बाद राजस्थान का नंबर आता है. यहां 56.8 मिलियन जानवर पाले जाते हैं. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान में अधिक जैविक खाद केंद्र स्थापित होंगे. इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.
बजट में वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा है कि दुनिया में करीब 700 करोड़ (सात अरब) लोग हैं और उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भुखमरी से लड़ने की है. ऐसे में भारत के मोटे अनाज, जो कम पानी में उगाए जा सकते हैं, वैश्विक भुखमरी को कम कर सकते हैं. इन फसलों का उत्पादन बढ़ाकर भारत नंबर 5 की अर्थव्यवस्था से दुनिया में नंबर 1 बनने की ओर बढ़ सकता है.