आजादी की लड़ाई पर कॉपीराइट का दावा करने वाले आपातकाल को याद करने पर सवाल उठा रहे हैं : सुधांशु त्रिवेदी

मोदी सरकार द्वारा संविधान हत्या दिवस मनाने के फैसले की विपक्ष द्वारा आलोचना करने पर पलटवार करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि आजादी की लड़ाई पर कॉपीराइट का दावा करने वाले आपातकाल को याद करने पर सवाल उठा रहे हैं.

Sudhanshu Trivedi | Credit- ANI

नई दिल्ली, 13 जुलाई : मोदी सरकार द्वारा संविधान हत्या दिवस मनाने के फैसले की विपक्ष द्वारा आलोचना करने पर पलटवार करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि आजादी की लड़ाई पर कॉपीराइट का दावा करने वाले आपातकाल को याद करने पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) सांसद संजय राउत के आपातकाल को जायज ठहराने के बयान की भी कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान जिन पर जुल्म किया गया था, वे लोग आज सत्ता के लिए कांग्रेस के साथ खड़े हो गए हैं.

संजय राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि इंडी गठबंधन के अन्य नेता बताएं कि क्या आपातकाल के दौरान जेपी के नेतृत्व में चला पवित्र आंदोलन अराजकता पूर्ण था? अखिलेश यादव बताएं क्या उनके पिता मुलायम सिंह यादव अराजकता का हिस्सा थे? लालू यादव बताएं कि संजय राउत के बयान पर उनका क्या कहना है? यह भी पढ़ें : Bihar: झील में रील बनाने के चक्कर में डूबने लगे आधा दर्जन लोग, वनकर्मियों ने बचाई सभी की जान

भाजपा राष्ट्रीय मुख्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि जब से उनकी सरकार (मोदी सरकार) ने संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया है, तब से संविधान की रक्षा का स्वांग रचने वाले बहरूपियों के हृदय में बड़ी वेदना शुरू हो गई है. संविधान की रक्षा का दिखावा करने वाले ये लोग असहज हो गए हैं. वे सरकार के इस निर्णय की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कह रहे हैं कि 50 वर्ष पुरानी घटना को याद करने की जरूरत क्या है. इतिहास और समय की बात वो कांग्रेस कर रही है जो 75 वर्ष पहले की आजादी की लड़ाई पर आज तक अपना कॉपीराइट जताती है.

कांग्रेस पर संविधान की हत्या का आरोप लगाते हुए सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस से 7 सवाल भी पूछे. उन्होंने कहा कि वे बहुत स्पष्ट रूप से देश की जनता को याद दिलाना चाहते हैं कि आपातकाल वो था, जिसने बताया था कि संविधान की हत्या क्या होती है. आपातकाल में देश के सभी नागरिकों के मूल अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. यदि आपको पुलिस पकड़ ले जाए, तो आप कोर्ट नहीं जा सकते थे. डीआईआर और मीसा दो ऐसे नियम थे जिनके तहत लोगों को कोर्ट में जमानत के लिए अपील करने का भी अधिकार नहीं था. अगर व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक स्थल पर खड़े होकर ये बोल दे थे कि इंदिरा गांधी की सरकार हटानी है, तो उनको डीआईआर के तहत जेल में डाल दिया जाता था. सारा विपक्ष जेल में था. सवा लाख से अधिक आम जनता और राजनीतिक कार्यकर्ता 18 महीने जेल में रहे. 38वां और 39वां संविधान संशोधन कर सरकार के किसी भी निर्णय पर न्यायिक समीक्षा का अधिकार समाप्त कर दिया गया था. संविधान की प्रस्तावना यानी संविधान की आत्मा को बदल दिया गया था. देश से ऊपर एक नेता को कर दिया गया था. कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तो देश में इंदिरा इज इंडिया का नारा तक दे दिया था.

आप सांसद संजय सिंह के आरोपों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जेल केजरीवाल की सरकार के ही अंदर आता है. जेल मैन्युल के हिसाब से उनका मेडिकल चेकअप भी होता है. अरविंद केजरीवाल अपनी ही सरकार की छत्रछाया में जेल में हैं. जहां तक उनके स्वास्थ्य की बात है, वे उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि उनका वजन ही नहीं गिर रहा है बल्कि दिल्ली की जनता की नजरों में भी वे गिरते जा रहे हैं.

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