रांची, 27 अक्टूबर: झारखंड (Jharkhand) के पलामू टाइगर रिजर्व में कोरोना काल के दौरान सैलानियों और स्थानीय लोगों का प्रवेश रोका गया तो यहां जानवरों की आमद बढ़ गयी. इस वन्य जीव अभयाण्य में अब हिरण, चीतल, तेंदुआ, लकड़बग्घा जैसे जानवरों का परिवार बढ़ गया है. लगभग एक दशक के बाद यहां हिरण की विलुप्तप्राय प्रजाति चौसिंगा की भी आमद हुई है. यह भी पढ़े: पलामू बाघ अभयारण्य में पशुओं की गणना में 500 से अधिक ट्रैप कैमरों का होगा इस्तेमाल
इसे लेकर परियोजना के पदाधिकारी उत्साहित हैं. पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के फील्ड डायरेक्टर कुमार आशुतोष ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि लोगों का आवागमन कम होने जानवरों को ज्यादा सुरक्षित और अनुकूल स्पेस हासिल हुआ और इसी का नतीजा है कि अब इस परियोजना क्षेत्र में उनका परिवार पहले की तुलना में बड़ा हो गया है.
पिछले हफ्ते इस टाइगर रिजर्व के महुआडांड़ में हिरण की विलुप्तप्राय प्रजाति चौसिंगा के एक परिवार की आमद हुई है. फील्ड डायरेक्टर कुमार आशुतोष के मुताबिक एक जोड़ा नर-मादा चौसिंगा और उनका एक बच्चा ग्रामीण आबादी वाले इलाके में पहुंच गया था, जिसे हमारी टीम ने रेस्क्यू कर एक कैंप में रखा है. चार सिंगों वाला यह हिरण देश के सुरक्षित वन प्रक्षेत्रों में बहुत कम संख्या में है.
नेपाल की तराई वाले हिस्सों में इस प्रजाति के हिरण जरूर हैं, लेकिन इनकी लगातार घटती संख्या पर वन्य जीव संरक्षण करने वाली संस्थाएं चिंतित रही हैं. जैसा कि नाम से ही जाहिर है, चौसिंगा हिरण के चार सींग होते हैं. दो सींग बड़े और दो सींग छोटे होते हैं और यह सामान्य प्रजाति के हिरण से ज्यादा खूबसूरत होता है. जिस चौसिंगा परिवार को रेस्क्यू किया गया है, वह बकरी के बच्चों के झुंड में शामिल होकर गांव आ गया था. ग्रामीणों की नजर पड़ी तो नर-मादा और शिशु चौसिंगा को वन विभाग के कैंप में लाया गया.
टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ने बताया कि पिछले डेढ़-दो वर्षों में यहां चीतल की संख्या छह हजार के आसपास पहुंच गयी है, जबकि वन्य प्राणियों की गणना के क्रम में 2020 में यहां चीतल की संख्या 4000 के आस-पास पायी गयी थी. बेतला नेशनल पार्क के मुख्य द्वार के पास भी शाम के वक्त सैकड़ों चीतल दिख जाते हैं.
इसके अलावा पूरे क्षेत्र में लगाये गये कैमरों ने बड़ी संख्या में तेंदुआ, लकड़बग्घा के आवागमन को कैद किया है. उन्होंने बताया कि रिजर्व एरिया में बाघों की संख्या कितनी है, यह ठीक-ठीक बता पाना फिलहाल मुश्किल है. विभाग की ओर से पूरे क्षेत्र में 500 कैमरे लगाये जा रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि बाघ किस इलाके में हैं और उनकी संख्या कितनी है. उन्होंने कहा कि लोगों की वन क्षेत्र में चहलकदमी कम होने से वन्य जीवों के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण हुआ है.