एक और बगावत से बचने के लिए मुर्मू को समर्थन दे रहे ठाकरे: सर्वे
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने घोषणा की है कि उनके नेतृत्व वाली शिवसेना राष्ट्रपति पद की भाजपा नीत राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगी.
नई दिल्ली, 13 जुलाई : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने घोषणा की है कि उनके नेतृत्व वाली शिवसेना राष्ट्रपति पद की भाजपा नीत राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगी. मुर्मू को समर्थन देने का फैसला शिवसेना के 16 सांसदों द्वारा ठाकरे को उनका समर्थन करने के लिए कहने के एक दिन बाद लिया गया, क्योंकि वह आदिवासी समुदाय की महिला हैं. हालांकि ठाकरे ने कहा है कि उन पर आगामी राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू का समर्थन करने का कोई दबाव नहीं है. शिवसेना सांसदों की बैठक में विचार-विमर्श का जिक्र करते हुए ठाकरे ने कहा, "शिवसेना सांसदों की बैठक में किसी ने मुझ पर दबाव नहीं डाला."
हालांकि, इस फैसले को ठाकरे की ओर से पार्टी में और कलह से बचने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. शिवसेना को पिछले महीने एक बड़े विद्रोह (बगावत) का सामना करना पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी में विभाजन हुआ. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के 55 में से लगभग 40 विधायक टूट गए और शिंदे ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में ठाकरे की जगह ली. यह भी पढ़ें : इंटरनेट पर विज्ञापनों के लिए जगह की बिक्री पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा: एएआर
मुर्मू का समर्थन करने के ठाकरे के फैसले के बारे में लोगों की राय जानने के लिए सीवोटर-इंडियाट्रैकर ने आईएएनएस के लिए एक देशव्यापी सर्वेक्षण किया. सर्वे के दौरान शिवसेना द्वारा विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने पर पार्टी पर संभावित प्रभाव के बारे में लोगों की राय का भी पता लगाया गया. सर्वेक्षण के दौरान, अधिकांश उत्तरदाताओं (सर्वे में शामिल लोग) ने कहा कि अगर पार्टी ने सिन्हा का समर्थन किया होता तो शिवसेना को एक और विभाजन का सामना करना पड़ता. सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 63 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि अगर पार्टी ने सिन्हा का समर्थन किया होता तो शिवसेना एक बार फिर टूट सकती थी. हालांकि, 37 फीसदी उत्तरदाताओं ने इस बात से असहमति जताई.
सर्वेक्षण में आगे पता चला कि एनडीए के अधिकांश समर्थक - 77 प्रतिशत का मानना है कि अगर पार्टी ने मुर्मू का समर्थन नहीं किया होता तो शिवसेना को एक और विद्रोह का सामना करना पड़ता, इस मुद्दे पर विपक्षी समर्थकों के विचार विभाजित थे. सर्वेक्षण के दौरान, 54 प्रतिशत विपक्षी मतदाताओं ने कहा कि ठाकरे ने पार्टी में एक और विद्रोह से बचने के लिए मुर्मू का समर्थन करने का फैसला किया है, जबकि 46 प्रतिशत लोगों को ऐसा कुछ नहीं लगता है. सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, अधिकांश सामाजिक समूहों का मानना है कि ठाकरे ने पार्टी में मतभेद से बचने के लिए शिवसेना सांसदों के दबाव में मुर्मू का समर्थन करने का फैसला किया, लेकिन अधिकांश मुसलमान ऐसा नहीं मानते हैं.
इसके अलावा सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 75 प्रतिशत उच्च जाति के हिंदू (यूसीएच), 63 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 69 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 66 प्रतिशत अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले लोगों के अनुसार शिवसेना को एक और विभाजन का सामना करना पड़ता, अगर पार्टी एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के लिए अपने समर्थन की घोषणा नहीं करती. वहीं अधिकतर मुसलमान (68 प्रतिशत) इस मत से सहमत नहीं दिखाई दिए.