गजब! ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए तमिलनाडु में हॉस्टल की सुविधा, पढ़ाई में भी की जाएगी मदद
तमिलनाडु के त्रिची में मां-बाप द्वारा ठुकराए गए ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए हॉस्टल की सुविधा मुहैया कराई जाएगी. जहां इन बच्चों की स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई में भी मदद की जाएगी. यहां ये बच्चे 18 साल की उम्र तक रह सकेंगे.
त्रिची: मां-बाप से ठुकराए जाने वाले ट्रांसजेंडर बच्चों (Transgender Children) को न तो उनके जन्मदाता अपनाते हैं और न ही समाज उन्हें स्वीकार करता है. ऐसे बच्चे बिना किसी आसरे के दर-दर भटकने को मजबूर हो जाते हैं और अक्सर शिक्षा से महरूम रह जाते हैं. ऐसे बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए तमिलनाडु (Tamilnadu) के एक शैक्षणिक संस्थान (Educational Institution) ने नेक पहल की है जो काबिले तारीफ है. इस संस्थान ने बेसहारा ट्रांसजेंडर बच्चों को आसरा देने के लिए एक अलग हॉस्टल (Hostel for Transgender kids) की सुविधा देने का फैसला किया है. इसके अलावा पढ़ाई में भी इन बच्चों की मदद की जाएगी.
स्वामी शिवानंद समिति द्वारा संचालित स्कूल के सीईओ रिटायर्ड मेजर जनरल एनआरके बाबू का कहना है कि उन्हें ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए हॉस्टल खोलने की प्रेरणा तब मिली जब 15 साल की प्रिया नाम की एक ट्रांसजेंडर को उसके माता-पिता ने घर से निकाल दिया था. घर से निकाले जाने के बाद मैंने उसके रहने और पढ़ाई जारी रखने की व्यवस्था की. उनका कहना है कि प्रिया की तरह ऐसे न जाने कितने ही ट्रांसजेंडर बच्चे होंगे जिन्हें उनके मां-बाप छोड़ देते हैं और ऐसे बेसहारा बच्चे अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाते हैं. यह भी पढ़ें: गजब! प्रेगनेंट हुआ ट्रांसजेंडर, अनमोल खुशी मिलने के बाद कही दिल को छू लेने वाली बात
ऐसे में हमने इन बेसहारा ट्रांसजेंडर बच्चों के सिर पर छत मुहैया कराने, शिक्षा में उनकी मदद कर उनके सपनों को साकार करने का फैसला किया. इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए शनिवार को शिवानंद बालालय सीबीएसई स्कूल में इस हॉस्टल की आधारशिला शनिवार को रखी गई. बताया जा रहा है कि 30 लाख रुपए से ज्यादा की लागत से बनने वाले इस हॉस्टल में 40 बच्चों के रहने की सुविधा होगी.
रिटायर्ड मेजर जनरल एनआरके बाबू का कहना है कि जिन हम उन अभिभावकों से अपील करते हैं कि अपने बच्चों को सड़क पर छोड़ने की बजाय हमारे हॉस्टल में भेज दें. 18 साल की उम्र तक ट्रांसजेंडर बच्चे इस हॉस्टल में रह सकेंगे. 18 साल की उम्र तक इन बच्चों के मनोवाज्ञानिक, कानूनी और चिकित्सा परामर्श की जिम्मेदारी स्कूल उठाएगा. इतना ही नहीं उनकी स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद इन बच्चों को कॉलेज भी भेजा जाएगा.