नई दिल्ली: कहते हैं प्यार का रोग की कुछ ऐसा होता है, जो न मजहब की दीवार देखता है और न ही जाति का बंधन. प्यार तो प्रेमी जोड़ों को जाति-धर्म के नाम पर समाज को जकड़कर रखनेवाली बेड़ियों को तोड़ने की ताकत देता है और आपने भी हिंदू-मुस्लिम (Hindu-Muslim) के मजहबी दीवार को तोड़कर शादी के बंधन में बंधने वाले कई प्रेमी जोड़ों को देखा या उनके बारे में सुना ही होगा. लेकिन अब हिंदू महिला (Hindu woman) और मुस्लिम पुरुष (Muslim Man) को एक-दूसरे से शादी करने पर कई बार सोचना पड़ेगा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक संपत्ति विवाद (Property Dispute) की सुनवाई के दौरान कुछ ऐसा कहा जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देगा.
मंगलवार को एक संपत्ति विवाद की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष की शादी न तो नियमित है और न ही वैध (Marriage is illegal and irregular). हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कहा कि इस शादी से पैदा हुई संतान वैध है और उसे अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है.
कोर्ट ने हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष की शादी को अवैध बताते हुए कहा कि इस तरह की शादी में कानूनी तौर पर महिला भत्ता पाने की हकदार तो है, लेकिन उसे उसके पति की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. यह भी पढ़ें: गुजरात दंगा: नरोदा पाटिया केस के 4 दोषियों को SC से मिली जमानत, हाईकोर्ट ने सुनाई थी 10 साल की सजा
न्यायाधीश एनवी रमन और एमएम शांतगोदर की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि मोहम्मद इलियास और वल्लिमा (हिंदू युवती) की शादी से हुआ बेटा जायज है और उसे अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने के अधिकार है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसी किसी भी महिला से मुस्लिम पुरुष का विवाह करना अवैध और अमान्य है जो मूर्तिपूजा करती हो या फिर अग्नि की पूजा करती हो. इस तरह के विवाह को सिर्फ एक अनियमित विवाह कहा जा सकता है. दरअसल, इलियास और वल्लिमा के बेटे ने अपने पिता की मौत के बाद उसकी संपत्ति पर दावा किया, जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह फैसला सुनाया.