ऑफिस वर्कर्स के लिए कानून बना रहे हैं कुछ राज्य
भारत में ऑफिस जाने वाले लोगों के अधिकारों के लिए कानून बनाने की शुरुआत हुई है.
भारत में ऑफिस जाने वाले लोगों के अधिकारों के लिए कानून बनाने की शुरुआत हुई है. महाराष्ट्र और कर्नाटक इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों की सरकारें अब ऑफिस कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सख्त नियमों और निरीक्षण की योजना बना रही हैं. यह कदम अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाई) की एक युवा कर्मचारी की मौत के बाद उठाया गया है. परिवार ने इस मौत का कारण अत्यधिक काम और दबाव बताया है.
भारत में लंबे समय से श्रम कानूनों का केंद्र ब्लू-कॉलर वर्कर यानी श्रमिक रहे हैं. वाइट-कॉलर यानी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए इस तरह की सुरक्षा नदारद है, जिससे वे अधिक काम, अनियमित घंटों और अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी जैसी समस्याओं का सामना करते हैं. युवा भारतीयों पर इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है. महाराष्ट्र और कर्नाटक में अधिकारियों ने निजी कंपनियों में ऑफिस में कामकाज की संस्कृति पर अधिक जांच शुरू कर दी है.
महाराष्ट्र, कर्नाटक की नई पहल
महाराष्ट्र सरकार का एक ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन है, जो कंपनियों में नियुक्ति और बर्खास्तगी की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करेगा. इसमें सभी कॉर्पोरेट कर्मचारियों, यहां तक कि मैनेजर स्तर के स्टाफ को भी शामिल किया जाएगा. इस कानून को लागू करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी की आवश्यकता होगी.
इसी तरह बेंगलुरु में, श्रम विभाग ने कंपनियों के ओवरटाइम नियमों और समय के रिकॉर्ड के रखरखाव की जांच तेज कर दी है. अधिकारियों का कहना है कि यह कदम कर्मचारियों की "अत्यधिक काम की शिकायतों" को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है.
यह चर्चा तब और तेज हुई जब 26 वर्षीय ईवाई ऑडिट एग्जीक्यूटिव अन्ना सेबेस्टियन पेराईल की जुलाई में मौत हो गई. परिवार का आरोप है कि अत्यधिक काम, अनियमित घंटे और प्रबंधन से सहयोग की कमी ने उनकी सेहत को प्रभावित किया.
तनाव में नई पीढ़ी
अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन पेराईल ने नौकरी शुरू करने के सिर्फ चार महीने बाद खुदकुशी कर ली थी. उनकी मां, अनिता ऑगस्टीन ने अपनी बेटी की मौत के लिए अंतरराष्ट्रीय अकाउंटिंग कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग को जिम्मेदार ठहराया. एक मार्मिक पत्र में, उन्होंने आरोप लगाया कि ईवाई की "बेरहम मांगें और अवास्तविक अपेक्षाओं का दबाव” उनकी प्रतिभाशाली बेटी की जान ले गया.
एक पत्र में उन्होंने लिखा, "मेरे बच्चे की वर्षों की मेहनत ईवाई के चार महीने के असंवेदनशील रवैये ने खत्म कर दी.” अनिता ऑगस्टीन ने भारतीय मीडिया को बताया कि कंपनी ने उनकी बेटी के भविष्य को अनदेखा किया और उसके जीवन को अनावश्यक दबावों की भेंट चढ़ा दिया. ईवाई ने इस मामले को "गंभीरता और विनम्रता" के साथ देखने का दावा किया है.
भारत में आत्महत्या के मामलों में युवाओं की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है. आत्महत्या देश में किशोरों और युवाओं के बीच मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है, विशेष रूप से 15-19 वर्ष के आयु समूह में.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक मामले 30 वर्ष से कम उम्र के युवाओं के थे. विशेषज्ञों के मुताबिक ये आंकड़े भारत में मानसिक स्वास्थ्य और युवाओं पर बढ़ते दबाव के प्रति समाज और नीति निर्माताओं के लिए एक चेतावनी हैं. माना जाता है कि भारत के युवाओं में मानसिक तनाव बढ़ रहा है.
भारत में स्थिति
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि भारत और दक्षिण एशियाई देशों में केवल ब्लू-कॉलर मजदूरों को ही अधिकार मिलते हैं. उनका मानना है कि सभी कर्मचारियों को समान अधिकार दिए जाने चाहिए, चाहे वे किसी भी स्तर पर काम करते हों.
हालांकि, उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि सेवाओं और आईटी क्षेत्र को वैश्विक मांग में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है. इस स्थिति में, कंपनियों को कर्मचारियों के प्रबंधन में थोड़े लचीलेपन की जरूरत हो सकती है.
ईवाई के कुछ पूर्व कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्हें अन्यायपूर्ण तरीके से हटाया गया, लेकिन उनके पास न्याय पाने का कोई उपाय नहीं था. एक पूर्व कर्मचारी अमित ने कहा कि श्रम अधिकारियों ने उनकी शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी कि वे "मजदूर" की परिभाषा में नहीं आते.
यह मामला भारत में श्रम कानूनों की खामियों और व्हाइट-कॉलर कर्मचारियों के लिए सुरक्षा की कमी को उजागर करता है. महाराष्ट्र और कर्नाटक द्वारा उठाए गए कदम इस दिशा में एक शुरुआत हो सकते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया को जमीन पर उतारने के लिए सख्त और स्पष्ट कानूनों की आवश्यकता होगी.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)