अयोध्या विवाद के फैसले में सरदार बूटा सिंह की भी रही अहम भूमिका
रामलला (Photo Credits: Twitter)

नई दिल्ली, 2 जनवरी : अयोध्या (Ayodhya) विवाद मामले में रामलला विराजमान को पक्षकार बनाने के पीछे पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस (Congress) नेता सरदार बूटा सिंह (Buta Singh) की अहम भूमिका थी. इस बात का जिक्र अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लिखी गई किताब 'एक रुका हुआ फैसला' में किया गया है. पूर्व गृहमंत्री सरदर बूटा सिंह का शनिवार को निधन हो गया. वह 86 वर्ष के थे. अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन जिस रामलला विराजमान को दिया उसे पक्षकार बनाने के पीछे एक रोचक कहानी है.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर कुमार मिश्र की किताब 'एक रुका हुआ फैसला' में लेखक ने कहा है कि अगर रामलला को मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया होता तो फैसला अलग हो सकता था. दरअसल, 1989 से पहले हिंदू पक्ष की ओर से जो भी मुकदमा दायर हुआ था उसमें कहीं जमीन के मालिकाना हक की मांग नहीं थी.

इसी पुस्तक में आगे जिक्र किया गया है कि तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित के जरिए विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल को संदेश भेजा था कि हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल किसी मुकदमे में जमीन का मालिकाना हक नहीं मांगा गया है और ऐसे में उनका मुकदमा हारना लाजिमी है. यह भी पढ़ें : उत्तर प्रदेश: अयोध्या पुलिस ने छात्रों के खिलाफ देशद्रोह के मामले लिए वापस

प्रभाकर मिश्र ने लिखा है कि बूटा सिंह की इस भविष्यवाणी के पीछे एक महत्वपूर्ण तर्क था कि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि सदियों से विवादित जमीन उनके कब्जे में रही है. ऐसे में परिसीमन कानून के तहत इतना लंबा समय गुजर जाने के बाद हिंदू पक्षकार विवादित भूमि पर अपना हक नहीं जता सकते थे. इस कानूनी अड़चन को दूर करने के लिए बूटा सिंह ने राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों को देश के पूर्व अटार्नी जनरल लाल नारायण सिन्हा से कानूनी मदद लेने की सलाह दी थी. आंदोलन से जुडे नेता देवकीनंदन अग्रवाल और कुछ लोगों को सिन्हा की राय लेने पटना भेजा गया. यह भी पढ़ें : Buta Singh Passes Away: कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह निधन, पीएम मोदी- नवीन जिंदल ने ट्वीट कर दी श्रद्धांजलि

आगे किताब में जिक्र है कि पटना में ही लाल नारायण सिन्हा की सलाह पर रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मभूमि को कानूनी अस्तित्व देने का फैसला हुआ क्योंकि सिन्हा को पता था कि भारतीय कानून के अनुसार, हिंदू देवता मुकदमा दायर भी कर सकते हैं और उनके खिलाफ मुकदमा भी चल सकता है.