Ram Prasad Bismil Punyatithi 2019: 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' ये कविता भले ही पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी के हैं, लेकिन फांसी से पहले वीर स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) ने जब इस कविता को अपनी जुंबा से कहा था, तभी से इसकी पहचान राम प्रसाद बिस्मिल से बन गई. शायरी और कविताएं उन्हें हमेशा क्रांति के लिए प्रेरणा देती थीं. बचपन से ही उनमें देशभक्ति का ऐसा जुनून था कि वे छोटी सी उम्र से ही क्रांतिकारी आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे. उनका नाम देश के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार है, जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी.
महान क्रांतिकारी, शायर, लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल हिंदू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) में काफी विश्वास रखते थे और अशफाक उल्ला खां से उनकी गहरी दोस्ती इस बात का प्रमाण है. उन्हें काकोरी कांड के लिए 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खां के साथ फांसी दे दी गई थी. आज राम प्रसाद बिस्मिल की पुण्यतिथि (Ram Prasad Bismil Death Anniversary) है और इस दिन को बलिदान दिवस के तौर पर भी जाना जाता है.
11 साल की उम्र में बन गए क्रांतिकारी
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलारानी था. बिस्मिल महज 11 साल के थे, जब वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. छोटी सी उम्र में क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के कारण राम प्रसाद बिस्मिल एक वीर क्रांतिकारी के साथ-साथ बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे.
हिंदू-मुस्लिम एकता पर था यकीन
राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज से प्रेरित होने के बावजूद हिंदू-मुस्लिम एकता में काफी विश्वास रखते थे. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर काफी काम किया. इसके साथ ही बतौर साहित्यकार और कवि उन्होंने इस विषय पर काफी कुछ लिखा. उन्होंने अशफाक उल्ला खान के बारे में लिखा था कि अगर अशफाक उल्ला खान कट्टर मुसलमान होने के बावजूद आर्य समाजी राम प्रसाद के क्रांतिकारी दल का दायां हाथ बन सकते हैं तो क्या नए भारतवर्ष की स्वतंत्रता के नाम पर हिंदू-मुसलमान अपने निजी छोटे-मोटे फायदों को भूलकर एक नहीं हो सकते? यह भी पढ़ें: Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: हंसते हुए शहीद हुए बिस्मिल ने फांसी से पहले पढ़ा था ये शेर
अशफाक उल्ला खां से थी गहरी दोस्ती
अशफाक उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती ने हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल पेश की. राम प्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था और अशफाक मुस्मिल थे, लेकिन दोनों की दोस्ती पर मजहब कभी भारी नहीं पड़ा. क्योंकि दोनों का मकसद भारत की आजादी था, वो भी मजहब या किसी और आधार पर बंटा हुआ नहीं, बल्कि पूरा का पूरा आजाद भारत. अशफाक उल्ला खां राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी दल का दायां हाथ माने जाते थे. यही वजह है कि आज भी इनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती है.
राम प्रसाद बिस्मिल ने मैनपुरी षडयंत्र और काकोरी कांड को अंजाम देने अहम भूमिका निभाई थी. सरकारी खजाने को लूटने वाली घटना काकोरी कांड के बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर करने वाले बिस्मिल फांसी के फंदे को गले में डालने से पहले भी सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है के कुछ शेर पढ़े थे.