नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने राफेल डील से जुड़े दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को सौंप दिए हैं. फ्रांस के साथ राफेल विमानों का सौदा कैसे हुए था, केंद्र सरकार ने सोमवार को यह जानकारी सार्वजनिक कर दी. सरकार की ओर से विमान खरीदी की प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेज याचिककर्ताओं को सौंपे गए. दस्तावेजों में कहा गया है कि सरकार ने राफेल डील 2013 में तय की गई रक्षा खरीद प्रक्रियाओं के तहत की है. केंद्र सरकार ने इसके साथ ही राफेल विमानों की कीमतों के बारे में मांगी गई जानकारी पर अपना जवाब सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया.
सरकार ने दस्तावेजों में कहा, "राफेल डील की रक्षा खरीद परिषद से मंजूरी ली गई गई थी. डील को लेकर फ्रांस सरकार के साथ 1 साल तक बातचीत चली. डील से पहले संसद की सुरक्षा समिति से भी इसकी मंजूरी ली गई थी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान सरकार से राफेल विमानों की कीमत और फैसला लेने की जानकारी मांगी थी. साथ ही याचिकाकर्ताओं के साथ भारतीय ऑफसेट पार्टनर चुनने से जुड़ी जानकारी भी साझा करने को कहा था.
ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं
ऑफसेट पार्टनर के बारे में केंद्र सरकार ने कहा कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं है, नियमों के मुताबिक विदेशी निर्माता किसी भी भारतीय कंपनी को बतौर ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है. यूपीए के जमाने से चली आ रही रक्षा उपकरणों की खरीद प्रकिया के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 का ही पालन किया गया है.
केंद्र सरकार ने कहा कि जब भारतीय वार्ताकारों ने 4 अगस्त 2016 को 36 राफेल जेट से जुड़ी रिपोर्ट पेश की, तो इसका वित्त और कानून मंत्रालय ने भी आकलन किया और सीसीएस ने 24 अगस्त 2016 को इसे मंजूरी दी. इसके बाद भारत-फ्रांस के बीच समझौते को 23 सितंबर 2016 को अंजाम दिया गया.
सरकार ने दिया था सीक्रेट एक्ट का हवाला
बता दें कि राफेल डील मामले में कथित घोटाले को लेकर कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है, विपक्ष एक ओर जहां चाहता है कि सरकार डील से जुड़ी जानकारियाँ सार्वजनिक करें, वहीं दूसरी ओर बीजेपी का कहना है सीक्रेट एक्ट के तहत इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. इस डील से संबंधित जानकारियां सार्वजनिक होने से दुश्मन देश फायदा उठा सकते हैं.
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐडवोकेट प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री अरुण शौरी व यशवंत सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी. साथ ही याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी.