सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को राफेल डील मामले (Rafale Deal Case) में अपने फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान लीक दस्तावेजों पर केंद्र के विशेषाधिकार के दावे पर फैसला सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राफेल फाइटर जेट डील के तथ्यों पर गौर करने से पहले वह केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करेगा. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने शीर्ष अदालत के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा कि पहले वह लीक हुए दस्तावेजों की स्वीकार्यता के बारे में प्रारंभिक आपत्तियों पर ध्यान दें. पीठ ने कहा, ‘‘केंद्र द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करने के बाद ही हम मामले के तथ्यों पर गौर करेंगे.’’
Supreme Court reserves order on Centre claiming privilege over leaked documents in #Rafale case pic.twitter.com/UaVOHvDtnv
— ANI (@ANI) March 14, 2019
इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे से संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया और न्यायालय से कहा कि संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर कोई भी इन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता. वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई भी दस्तावेज कोई प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है.
शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राफेल सौदे के दस्तावेज, जिन पर अटार्नी जनरल विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं, प्रकाशित हो चुके हैं और यह पहले से सार्वजनिक दायरे में हैं. भूषण ने किहा कि सूचना के अधिकार कानून के प्रावधान कहते हैं कि जनहित अन्य बातों से सर्वोपरि है और गुप्तचर एजेन्सियों से संबंधित दस्तावेजों के अलावा किसी भी अन्य दस्तावेज पर विशेषाधिकार का दावा नहीं किया जा सकता. यह भी पढ़ें- राफेल डील: सुप्रीम कोर्ट में सरकार बोली- कैग रिपोर्ट के पहले 3 पन्ने गायब
भूषण ने कहा कि राफेल विमानों की खरीद के लिए दो सरकारों के बीच कोई करार नहीं है क्योंकि फ्रांस सरकार ने भारत को कोई संप्रभु गारंटी नहीं दी है. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद कानून में पत्रकारों के स्रोत को संरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है.
भाषा इनपुट