मुख्तार अंसारी की मौत पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन कहे जाने वाले पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत हो गई. दो दिन पहले ही अंसारी ने खाने में जहर मिलाए जाने की शिकायत की थी. अंसारी की मौत पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?दो दिन पहले ही मुख्तार अंसारी की तबीयत खराब हुई थी और उसने आरोप लगाया था कि उसे ‘धीमा जहर' दिया जा रहा है. इसके बाद उसके परिजन जेल में उससे मिलने पहुंचे, लेकिन परिजनों का आरोप था कि उन्हें जेल में अंसारी से नहीं मिलने दिया जा रहा है.

28 मार्च की शाम अचानक खबर आई कि मुख्तार अंसारी को दिल का दौरा पड़ गया है. गंभीर हालत में उसे बांदा मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी मौत की पुष्टि की. हालांकि उसके पहले जिले का सारा अमला बांदा मेडिकल कॉलेज के आस-पास इकट्ठा हो गया और पूरे जिले के साथ-साथ प्रदेश भर में अतिरिक्त सुरक्षा के अलर्ट जारी कर दिए गए.

आज होगा शव का पोस्टमॉर्टम

मुख्तार अंसारी पांच बार यूपी विधानसभा का सदस्य रहा है, उसके खिलाफ दर्जनों केस चल रहे हैं, कुछ मामलों में सजा भी हो चुकी है और इस वक्त वो बांदा जेल में सजा काट रहा था.

बांदा जिला जेल में बंद मुख्तार अंसारी को 28 मार्च की शाम रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. मेडिकल बुलेटिन के मुताबिक, "63 साल के मुख्तार अंसारी को जेल के सुरक्षाकर्मियों ने मेडिकल कॉलेज के इमर्जेंसी वॉर्ड में शाम 8.45 बजे भर्ती कराया था. उसे उल्टी की शिकायत और बेहोशी की हालत में लाया गया था. मरीज को नौ डॉक्टरों की टीम ने तत्काल मेडिकल सहायता उपबल्ध कराई, लेकिन भरसक प्रयासों के बावजूद 'कार्डियक अरेस्ट' के कारण उसकी मृत्यु हो गई."

बांदा में आज अंसारी के शव का पोस्टमॉर्टम किया जाएगा और उसके बाद शव परिजनों को सौंपा जाएगा. मुख्तार अंसारी दो दिन पहले भी बीमार हुआ था और तब भी उसे अस्पताल के आईसीयू में रखा गया था. हालांकि बाद में अस्पताल की ओर से बताया गया था कि अंसारी ठीक है.

बेटे ने साजिश का आरोप लगाया

बांदा में मौजूद मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी ने मीडिया से कहा कि यह साजिश है. उनका कहना था, "पेट फूला हुआ था, तो हार्ट अटैक कैसे आ गया? उन्हें धीमा जहर देने की बात हमने पहले भी कही थी और आज भी यही कहेंगे. 19 मार्च को डिनर में उन्हें जहर दिया गया था. हम न्यायपालिका की शरण में जाएंगे. हमें उस पर पूरा भरोसा है."

मुख्तार अंसारी के परिजनों के अलावा कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं और साजिश की आशंका जाहिर की है. बीएसपी की नेता और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी साजिश की आशंका जताते हुए मुख्तार अंसारी की मौत की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है.

मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी ने इससे पहले भी अपने पिता की जान पर खतरे का अंदेशा जताया था और पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अदालत में दी गई याचिका में कहा गया था कि मुख्तार अंसारी को इस बात की जानकारी मिली थी कि उसकी जान को बड़ा खतरा है और उसे बांदा जेल में मारने की साजिश रची जा रही है.

दर्जनों केस, कुछ मामलों में सजा भी हुई

मुख्तार अंसारी पर 60 से ज्यादा केस दर्ज हैं, जिनमें हत्या की कोशिश, फिरौती जैसे कई गंभीर मामले भी शामिल हैं. कुछ मामलों में अंसारी को सजा भी हो चुकी है और पिछले करीब दो दशक से वह जेल में ही था. यहां तक कि जेल में ही रहकर अंसारी ने दो बार विधानसभा चुनाव भी जीता. फिरौती के एक मामले में उसे साल 2019 में पंजाब की रूपनगर जेल में रखा गया था, लेकिन दो साल बाद 2021 में उत्तर प्रदेश की पुलिस उसे बांदा लेकर आई. तब से वो यहीं पर बंद था.

माफिया से नेता बना मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मऊ सदर सीट से पांच बार विधायक चुना गया था. वह पहली बार 1996 में मऊ से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया था. उसके बाद साल 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में अंसारी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इस सीट पर अपनी जीत का सिलसिला कायम रखा.

2010 में बहुजन समाज पार्टी छोड़ने के बाद 2012 में मुख्तार अंसारी ने अपने दोनों भाइयों के साथ मिलकर कौमी एकता दल नाम से अलग पार्टी बनाई और मऊ से फिर जीत हासिल की. 2017 में उसने एक बार फिर मऊ से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार ने अपने बेटे अब्बास अंसारी के लिए यह सीट खाली कर दी. अब्बास अंसारी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर इस सीट से जीत हासिल की और अभी वो इसी सीट से विधायक हैं. सुभासपा फिलहाल बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए का हिस्सा है.

मुख्तार अंसारी के दो बड़े भाई भी राजनीति में सक्रिय हैं. सबसे बड़े भाई सिगबतुल्ला अंसारी विधायक रहे हैं, जबकि अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद हैं. साल 2019 में वो बहुजन समाज पार्टी से जीते थे, लेकिन इस बार उन्हें समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया है.

पिछले कुछ समय से कार्रवाई में आई तेजी

मुख्तार अंसारी के खिलाफ साल 2005 से जेल में रहते हुए हत्या और गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्जनों मामले दर्ज थे और सितंबर 2022 से आठ आपराधिक मामलों में उसे दोषी ठहराया जा चुका था. पिछले साल अप्रैल में मुख्तार अंसारी को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्या मामले में 10 साल की सजा सुनाई गई थी. कृष्णानंद राय की हत्या 2005 में हुई थी.

पिछले कुछ सालों से अंसारी परिवार काफी चर्चा में रहा क्योंकि शासन-प्रशासन की सक्रियता के चलते उसके मुकदमों की सुनवाई में भी तेजी आई और प्राशासनिक कार्रवाई में भी. मऊ और लखनऊ में उसके परिवार की कई संपत्तियों को गैरकानूनी बताकर ध्वस्त कर दिया गया. सितंबर 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मुख्तार अंसारी को एक जेलर को धमकाने के मामले में सात साल की सजा सुनाई थी. ये मामला साल 2003 का था.

स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से था ताल्लुक

मुख्तार अंसारी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भले ही माफियागिरी से की हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसकी यही विरासत है. मुख्तार अंसारी का ताल्लुक एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी परिवार से है और उनके परिवार के कई लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल किए हैं.

मुख्तार अंसारी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अपने जमाने में नामी सर्जन रहे डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी के परिवार से आते हैं. उसके दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी महात्मा गांधी के करीबी थे और उनके साथ काम करते हुए वो 1926-27 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. मुख्तार अंसारी के पिता सुबहानुल्लाह अंसारी भी स्वतंत्रता सेनानी और बड़े कम्युनिस्ट नेता थे. खुद मुख्तार अंसारी ने भी राजनीति की शुरुआत छात्र राजनीति से की, लेकिन जनप्रतिनिधि बनने से पहले उसकी पहचान एक दबंग या माफिया के रूप में हो चुकी थी.

यही नहीं, मुख्तार अंसारी ननिहाल पक्ष से भी देशभक्त परिवार से रहा. उसके नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत मिली थी और बाद में उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया था.

लेकिन यह विडंबना ही है कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं में गिने जाने वाले जिन डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी ने राजनीति की शुरुआत की, शताब्दी बीतते-बीतते उनके परिवार की पहचान एक माफिया नेता के परिवार के रूप में होने लगी.

1988 में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम हत्या के एक मामले में आया. हालांकि इस मामले में उसके खिलाफ पुलिस कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई, लेकिन इसके बाद केस पर केस दर्ज होते गए. मुख्तार अंसारी बार-बार विधायक बनता गया, लेकिन मामलों की सुनवाई में कुछ समय पहले तेजी आई और नतीजा रहा कि उसे सजा होने लगी और तय हो गया कि अब उसका पूरा जीवन जेल में ही बीतेगा.