Uttar Pradesh Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश के 169 विधानसभा क्षेत्रों में वीआईपी फूलन देवी की प्रतिमाएं बांटेगी
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में उतर रही विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 169 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच पूर्व डाकू रानी से नेता बनीं फूलन देवी की प्रतिमाएं बांटेगी. योगी आदित्यनाथ सरकार ने वीआईपी को 25 जुलाई को फूलन की पुण्यतिथि के मौके पर 18 मंडल मुख्यालयों में उनकी 18 फीट की मूर्ति स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
लखनऊ, 2 नवंबर: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 2022 के विधानसभा चुनाव में उतर रही विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 169 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच पूर्व डाकू रानी से नेता बनीं फूलन देवी की प्रतिमाएं बांटेगी. योगी आदित्यनाथ सरकार ने वीआईपी को 25 जुलाई को फूलन की पुण्यतिथि के मौके पर 18 मंडल मुख्यालयों में उनकी 18 फीट की मूर्ति स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. यह भी पढ़े: Uttar Pradesh: लखनऊ में पदयात्रा पर निकलेंगी प्रियंका गांधी वाड्रा
वीआईपी नेता इस दिन को 'शहादत दिवस' के रूप में भी मनाना चाहते थे. वीआईपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी 15 नवंबर से दिवंगत नेता की प्रतिमाएं बांटेगी. वीआईपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति ने कहा, "पार्टी अब पूर्वाचल में निषाद भाइयों और बहनों के हर घर में उनकी प्रतिमा स्थापित करेगी. हमने जिन 169 सीटों की पहचान की है, उनमें 12-18 प्रतिशत निषाद मतदाता हैं. पार्टी का जनसंपर्क कार्यक्रम 15 नवंबर से हर ब्लॉक में शुरू हो जाएगा. "
वीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी बिहार के मंत्री भी हैं. उन्होंने एक बयान में कहा, "इन निर्वाचन क्षेत्रों में हर ब्लॉक में मूर्तियों का वितरण किया जाएगा. "पार्टी का उद्देश्य उनकी विरासत को ऐसे समय में भुनाना है, जब अन्य निषाद नेता और निषाद केंद्रित राजनीतिक संगठन भी उनकी विरासत पर अपना दावा ठोक रहे हैं.
फूलन देवी ने सांसद के रूप में अपने कार्यकाल में कई मौकों पर निषादों के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाया था और अधिकांश निषाद-केंद्रित दल अभी भी इसके लिए लड़ रहे हैं. वीआईपी ने अक्टूबर में पूर्वाचल के 13 जिलों में आयोजित अपनी निषाद जनचेतना रैलियों को अभी खत्म किया है. इसने फूलन देवी को 'वीरांगना' (शहीद महिला) के रूप में संबोधित करना भी शुरू कर दिया है.
फूलन देवी का जन्म अगस्त 1963 में जालौन के शेखपुर गुढ़ा का पुरवा गांव में एक मल्लाह परिवार में हुआ था. पार्टी के पैम्फलेट में उल्लेख किया गया है कि गांव में एक 'विशिष्ट समुदाय' द्वारा उसे बिना रुके उत्पीड़न के लिए रखा गया था, लेकिन वह 'नहीं झुकीं' और अंतत: संसद के लिए अपना रास्ता बना लिया.