बिहार (Bihar) में कुछ ही महीनों पहले विधानसभा चुनाव हुए हैं जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) ने जीत हासिल सरकार फिर से सत्ता में वापसी की है. सूबे की सियासत को लेकर कहा जाता है कि जो भी पार्टी या गठबंधन जातीय समीकरण को साधने में कामयाब रहा, सरकार उसी की बनती है. दरअसल, विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भी बिहार में नेताओं का पाला बदलना अभी भी जारी है. ताजा मामला उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) का है जिन्होंने 14 मार्च को अपने संगठन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) का जनता दल यूनाइटेड (JDU) में विलय कर दिया. कभी केंद्र सरकार में मंत्री रहे उपेंद्र कुशवाहा ने इस दौरान कहा कि आरएलएसपी का जेडीयू में विलय वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति की मांग थी. यह देश और राज्य के हित में है.
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार मेरे बड़े भाई की तरह हैं. मैंने व्यक्तिगत रूप से हमेशा उनका सम्मान किया है. हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में काम करेंगे. वहीं, नीतीश कुमार ने आरएलएसपी के जेडीयू में विलय पर खुशी जाहिर करते हुए उपेंद्र कुशवाहा को तत्काल प्रभाव से जेडीयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी. इसके बाद नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को दूसरा बड़ा गिफ्ट देते हुए उन्हें राज्यपाल कोटे से बिहार में विधान परिषद का सदस्य भी बनवा दिया. यह भी पढ़ें- RLSP-JDU Merger: बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की 'घर वापसी' पर नीतीश कुमार ने दिया तोहफा, मिली ये बड़ी जिम्मेदारी.
ANI का ट्वीट-
Bihar Governor nominates members to fill 12 vacancies in the State Legislative Council. Upendra Kushwaha also nominated. pic.twitter.com/sSRj9eJq2e
— ANI (@ANI) March 17, 2021
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को हुए सीटों के नुकसान को देखते हुए नीतीश कुमार सक्रिय हो गए हैं. वह अपने संगठन को मजबूत बनाने के साथ-साथ जातीय समीकरण को दुरूस्त करने में जुटे हुए हैं. आरएलएसपी के जेडीयू में विलय के जरिए नीतीश कुमार ने एक बार फिर से 'लव-कुश' समीकरण को साधने की कोशिश की है.
उधर, नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के एक होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए मानी जा रही है. आंकड़ों पर नजर डालें तो एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा, जेडीयू, बीजेपी, जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी के साथ रहने के बाद बिहार में जातीय वोट बैंक का बड़ा हिस्सा एनडीए के साथ माना जा रहा है. उल्लेखनीय है कि बिहार में जातीय समीकरण को दुरूस्त कर सत्ता में पहुंचने की कवायद कोई नई बात नहीं है. लालू प्रसाद यादव भी बिहार में जातीय समीकरण को दुरूस्त कर ही 15 सालों तक सत्ता में बने थे.