अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत दुनिया के कई बड़े नेताओं को 20 जनवरी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने का फैसला किया है.ट्रंप ने गुरुवार को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में घोषणा की कि वह जिन नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुला रहे हैं, उनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "कुछ लोग कह रहे हैं, 'ये थोड़ा जोखिम भरा नहीं है?' और मैंने कहा, 'शायद है. लेकिन देखते हैं क्या होता है.'"
उनकी प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने फॉक्स एंड फ्रेंड्स कार्यक्रम में पुष्टि की कि यह निमंत्रण ट्रंप की रणनीति का हिस्सा है. उन्होंने कहा, "यह कदम दिखाता है कि ट्रंप बातचीत के लिए तैयार हैं, चाहे वो हमारे दोस्त हों या विरोधी."
ऐतिहासिक कदम, लेकिन अनिश्चित नतीजे
नवंबर में डॉनल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिकी चुनाव जीता था. अमेरिकी इतिहास में अब तक किसी विदेशी नेता ने शपथ ग्रहण में आधिकारिक तौर पर हिस्सा नहीं लिया है. विशेषज्ञ इसे अभूतपूर्व कदम बता रहे हैं.
इतिहासकार जिम बेंडैट ने कहा, "विदेशी नेताओं को बुलाना गलत नहीं है लेकिन पहले किसी सहयोगी देश को बुलाना ज्यादा समझदारी होती."
ट्रंप का यह फैसला उस समय आया है जब वैश्विक तनाव बढ़ रहा है. ट्रंप ने चीन पर व्यापारिक पाबंदियां लगाने और नाटो सहयोगियों से रक्षा बजट बढ़ाने का दबाव बनाने की बात कही है. उनका 'अमेरिका फर्स्ट' सिद्धांत इस शपथ ग्रहण को खास बना रहा है.
शी जिनपिंग को न्योता, पर शंका बरकरार
विशेषज्ञों का मानना है कि शी इस न्योते को स्वीकार नहीं करेंगे. डैनी रसेल ने कहा, "शी कभी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जिससे वो सिर्फ एक विदेशी नेता के जश्न का हिस्सा दिखें."
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पर सीधा जवाब नहीं दिया. प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, "अभी इस पर कहने के लिए कुछ नहीं है."
ट्रंप ने कहा कि उनका यह कदम अमेरिका और अन्य देशों के बीच आर्थिक और सैन्य असंतुलन को सुधारने की कोशिश है. उन्होंने कहा, "हमारा देश आर्थिक और सैन्य तौर पर बहुत नुकसान उठा चुका है. अब यह और नहीं चलेगा."
ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कई विश्व नेताओं को न्योता दिया है. हालांकि, अभी पूरी लिस्ट सामने नहीं आई है. शी जिनपिंग के साथ अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण हैं, खासकर व्यापार, ताइवान और रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर. ट्रंप ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भी बुलाया है, जिनके साथ उनका पहले व्यापार शुल्क को लेकर विवाद हो चुका है. वहीं, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन, जो यूरोप में अलग-थलग हैं लेकिन ट्रंप के करीबी माने जाते हैं, ने अभी तक आने की पुष्टि नहीं की है. इसके अलावा, वॉशिंगटन में मौजूद सभी देशों के राजनयिकों को भी निमंत्रण भेजा गया है, जिनके शपथ ग्रहण में शामिल होने की सामान्य परंपरा है.
मित्र देशों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप की व्यापारिक पाबंदी की धमकियों पर कड़ा एतराज जताया है. उन्होंने कहा, "अगर ट्रंप ऐसा करेंगे तो इसका सीधा असर अमेरिकी लोगों की जेब पर पड़ेगा."
ट्रंप ने मजाक में कनाडा को अमेरिका का 'स्टेट' और ट्रूडो को 'गवर्नर' कहकर विवाद बढ़ा दिया था. ट्रंप का शपथ ग्रहण टेक्नोलॉजी जगत का भी ध्यान खींच रहा है. मेटा ने उनकी टीम को 10 लाख डॉलर का दान दिया है. मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग, जो पहले ट्रंप के आलोचक थे, अब उनके साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
जकरबर्ग ने ट्रंप की तारीफ करते हुए कहा, "ट्रंप का मुश्किल समय में मजबूत दिखना अद्भुत था."
शपथ ग्रहण के लिए विदेशी नेताओं का आना अभी तय नहीं है. ट्रंप का यह कदम एक नई कूटनीति की दिशा में पहला संकेत हो सकता है. लेकिन कई आलोचक इसे अमेरिकी परंपराओं के खिलाफ बता रहे हैं.
लेकिन ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में भी ऐसे कदम उठा चुके हैं, जिन्हें पारंपरिक नहीं कहा जा सकता. उन्होंने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से दो बार मुलाकात की और ऐसा करने वाले वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जबकि उत्तर कोरिया अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है. उस मुलाकात से भी कुछ हासिल नहीं हुआ था.
वीके/सीके (एपी, रॉयटर्स)