अहमदाबाद, 20 अगस्त: गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के तीन मुस्लिम विधायकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार को वर्ष-2002 बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले (Bilkis Bano Gang Rape Case) में उम्रकैद के सजायाफ्ता 11 दोषियों की रिहाई के ‘‘शर्मनाक फैसले’’को वापस लेने का निर्देश दें. एल्गार परिषद मामला: 16 आरोपियों में से एक की मौत, दो जमानत पर रिहा, 13 जेल में बंद
विधायक ग्यासुद्दीन शेख, इमरान खेड़ावाला और जावेद पीरजादा ने राष्ट्रपति को इस संबंध में पत्र लिखा है. इसकी जानकारी स्वयं शेख ने शनिवार को दी. विधायकों ने संयुक्त रूप से लिखे पत्र में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को रिहा करने के फैसले को ‘‘शर्मनाक’’, ‘‘असंवेदनशील’’ और न्याय के लिए संघर्ष करने वालों के लिए ‘‘हाताश’’करने वाला करार दिया है.
शेख द्वारा ट्विटर पर साझा किए गए पत्र में कहा गया, ‘‘हालांकि केंद्र सरकार का स्पष्ट दिशानिर्देश है कि दुष्कर्म के मामले में उम्र कैद की सजा पाए दोषियों को क्षमा नीति के तहत रिहा नहीं किया जाना चाहिए, इसके बावजूद गुजरात की भाजपा सरकार ने बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले के 11 दोषियों को माफी देकर असंवेदनशील रुख प्रदर्शित किया है. यह उन लोगों के लिए निराशाजनक फैसला है जो न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं.’’
पत्र में कहा गया कि एक महिला होने के नाते राष्ट्रपति भलीभांति एक महिला की पीड़ा को समझ सकती हैं. पत्र में कहा गया कि बिल्कीस बानो मामले के दोषियों को वर्ष 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म और तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या के लिए कठोरतम सजा दी जानी चाहिए.
पत्र के मुताबिक, ‘‘इसके उलट गुजरात की भाजपा सरकार ने ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को माफी दे दी.’’ विधायकों ने कहा कि वे राष्ट्रपति से अपील करते हैं कि वह ‘‘तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करें और केंद्रीय गृह मंत्रालय और गुजरात सरकार को अपराधियों को माफी देने के शर्मनाक फैसले को वापस लेने का निर्देश दें.’’
पत्र में विधायकों ने कहा, ‘‘सबसे स्तब्ध करने वाली बात यह है कि कट्टपंथी विचार के लोग ऐसे अपराधियों की रिहाई का जश्न मना रहे हैं और उन्हें सम्मानित कर रहे हैं, जो अमानवीय कृत्य है. गुजरात सरकार के इस कदम को खतरनाक परंपरा बन जाने से पहले रोकने की जरूरत है.’’
विधायकों ने कहा कि यह फैसला तब और स्तब्ध करने वाला है जब प्रधानमंत्री महिला सम्मान की बात करते हैं.
पत्र में कहा गया, ‘‘गुजरात सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए ताकि नागरिक, कानून में अपनी आस्था नहीं खोएं और कोई अन्य ऐसी पीड़ा नहीं सहे जैसा कि बिल्कीस बानो ने सही.’’ गौरतलब है कि माफी नीति के तहत गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को माफी दिए जाने के बाद बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था, जिसकी विपक्षी पार्टियों ने कड़ी निंदा की है.
मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 आरोपियों को बिल्कीस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था. इन दोषियों को उच्चतम न्यायालय के निर्देश के विचार करने के बाद रिहा किया गया. शीर्ष अदालत ने सरकार से वर्ष 1992 की क्षमा नीति के तहत दोषियों को राहत देने की अर्जी पर विचार करने को कहा था.
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कारावास की सजा काट ली थी जिसके बाद एक दोषी ने समयपूर्व रिहा करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसपर शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था.
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