लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक चलते हुए 17 पिछड़ी जातियों (OBC) को अनुसूचित जाति (SC) में शामिल कर दिया है. इस आशय का निर्णय शुक्रवार देर रात लिया गया और अधिकारियों को इन 17 जातियों के परिवारों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए निर्देशित किया गया.
इस सूची में जिन जातियों को शामिल किया गया है वे हैं- निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआ, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुहा और गौड़, जो पहले अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) वर्ग का हिस्सा थे.
इस कदम को योगी सरकार द्वारा इन सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ प्रदान करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. यह इन 17 जाति समूहों द्वारा 15 साल पुरानी मांग तो पूरा करना भी है.
उत्तर प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले आए इस कदम से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को फायदा होने के आसार हैं और समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के वोट आधार में और गिरावट आने के आसार हैं.
यह, संयोग से, तीसरी बार है कि राज्य सरकार ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया है. इससे पहले, सपा और बसपा दोनों सरकारों ने उपरोक्त जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया था, लेकिन कानूनी हस्तक्षेप के कारण ऐसा करने में विफल रहे.
मुलायम सिंह यादव शासन द्वारा पहला प्रयास तब किया गया था जब 2004 में उसने एक प्रस्ताव पेश किया था. तत्कालीन सपा सरकार ने पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने के लिए उप्र लोक सेवा अधिनियम, 1994 में संशोधन किया. चूंकि किसी भी जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने की शक्ति केंद्र के पास है, इसलिए केंद्र की सहमति के बिना उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार का फैसला निर्थक साबित हुआ.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बाद में इस कदम को असंवैधानिक और व्यर्थ घोषित कर फैसले को रद्द कर दिया. 2012 में एक और प्रयास किया गया तब किया गया जब अखिलेश यादव सत्ता में आए और तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति ने इस संबंध में समाज कल्याण विभाग से विवरण मांगा.
28 मार्च, 2012 को मुख्य सचिव के परिपत्र में सरकार की प्राथमिकताओं के बारे में बात की गई, जिसमें अनुसूचित वर्ग के भीतर 17 से अधिक पिछड़ी उप-जातियों को हिस्सा बनाना शामिल था. हालांकि, इस मामले को केंद्र ने खारिज कर दिया था.
हालांकि, बसपा ने इस विचार का विरोध किया और बदले हुए परि²श्य में अनुसूचित कोटा में वर्तमान 21 प्रतिशत कोटा में वृद्धि की मांग की. इसने इस कदम को 'दलितों के लिए आरक्षण कोटे को कम करने की साजिश' भी कहा. आदित्यनाथ का यह प्रयास फलीभूत होने की उम्मीद है क्योंकि जाहिर तौर पर इसे सरकार की सहमति प्राप्त होगी.