महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष: जानें कब लगता है राष्ट्रपति शासन और क्या होते है इसके मायने
देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे (Photo Credits: PTI)

महाराष्ट्र (Maharashtra) में विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को आए थे और 14 दिनों के बाद नई सरकार के गठन को लेकर सस्पेंस अब तक बरकरार है. दरअसल, महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिवसेना (Shiv Sena) के बीच 'सत्ता संघर्ष' मुख्यमंत्री पद के मुद्दे पर उलझी हुई है. विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 161 सीट मिलने के बावजूद सरकार गठन को लेकर गतिरोध बना हुआ है. 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए हुए चुनावों में बीजेपी ने 105 सीटों, शिवसेना ने 56, एनसीपी (NCP) ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

इस बीच, महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने गुरुवार को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी (Governor Bhagat Singh Koshyari) से मुलाकात की. इस दौरान बीजेपी नेताओं ने  राज्यपाल से 21 अक्टूबर के चुनाव के बाद सरकार बनाने में देरी के कानूनी पहलुओं पर चर्चा की. बहरहाल, महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है. यह भी पढ़ें- शिवसेना आक्रामक: उद्धव ठाकरे बोले मुख्यमंत्री पद को लेकर ही होगी बात, संजय राउत ने कहा- हमारे पास और विकल्प मौजूद.

ऐसे में सवाल उठता है कि 9 नवंबर तक नई सरकार का गठन नहीं हुआ तो क्या महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लग जाएगा? संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के मुताबिक, नई सरकार न बनने के बावजूद राष्ट्रपति शासन लगना जरूरी नहीं है. उन्होंने बताया कि जब तक राज्यपाल को इस बात का यकीन नहीं हो जाता कि कोई भी सरकार नहीं बना सकता है, तब तक वह राष्ट्रपति शासन की सिफारिश नहीं करता है.

क्या हैं राष्ट्रपति शासन के मायने:

राज्यपाल को जब यह लगता है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो ऐसे में वह राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करता है. अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, इसके बाद राज्य सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ जाता है. राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा की मंजूरी जरूरी होती है. मंजूरी मिलने के बाद एक बार में अधिकतम छह महीने के लिए ही राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है.

राष्ट्रपति शासन को अधिकतम तीन साल से ज्यादा समय तक नहीं लागू किया जा सकता है और इसके लिए भी हर छह महीने में संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी पड़ती है. हालांकि, राष्ट्रपति शासन के दौरान अगर कोई राजनीतिक पार्टी सरकार बनाने लायक बहुमत जुटा लेती है तो राष्ट्रपति शासन हटाया जा सकता है.