पुणे: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 से पहले पुणे में कांग्रेस पार्टी में आंतरिक असंतोष बढ़ गया है. सीट बंटवारे को लेकर बढ़ती नाराजगी के चलते कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेता आबा बागुल, कमल व्यावहारे, और मनीष आनंद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया है. यह असंतोष महा विकास अघाड़ी (MVA) के भीतर सीट साझा करने की समस्याओं के कारण उत्पन्न हुआ है. कांग्रेस से पहली महिला महापौर कमल व्यावहारे कसबा विधानसभा क्षेत्र से, मनीष आनंद शिवाजी नगर से और आबा बागुल परवती विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे.
कसबा और शिवाजी नगर सीटें कांग्रेस को आवंटित की गई हैं, जहां क्रमशः रविंद्र धंगेकर और दत्ता बहिराट उम्मीदवार हैं. वहीं परवती विधानसभा सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को दी गई है, जहां से अश्विनी कदम उम्मीदवार हैं. आबा बागुल, जो 40 साल से पुणे नगर निगम में पार्षद रहे हैं और कई स्थायी समितियों के सदस्य रह चुके हैं, परवती विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं.
आबा बागुल ने कहा, “कांग्रेस महाराष्ट्र के हर कोने में मौजूद है, लेकिन हमने शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए नीति बदल दी. इसके चलते कांग्रेस को कम सीटें मिल रही हैं और एनसीपी भी कांग्रेस पर दबाव बना रही है. परवती विधानसभा सीट, जो एनसीपी पिछले 15 सालों में नहीं जीत पाई है, एक बार फिर से उन्हें दे दी गई. मेरा प्रयास है कि बीजेपी को रोका जाए, लेकिन कांग्रेस कमजोर होती जा रही है. मैं परवती विधानसभा से निर्दलीय लड़ने के लिए दृढ़ हूँ ताकि कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की जा सके.”
पुणे की पहली महिला महापौर रह चुकी कमल व्यावहारे ने कहा, “मैं 1987 से कांग्रेस के साथ जुड़ी हूं. मैं लगातार पांच बार कसबा क्षेत्र से पार्षद चुनी गई हूं. मैंने 2009 से कसबा विधानसभा से टिकट की मांग की थी, लेकिन हर बार मुझे इनकार कर दिया गया. यह मेरे लिए बहुत ही निराशाजनक रहा, इसलिए मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया.”
मनीष आनंद ने भी कहा, “मैं 2010 से पार्टी के साथ हूं और मेरे समर्थक चाहते थे कि मैं विधानसभा चुनाव लडूं, लेकिन पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया. शिवाजीनगर में मुझे वादे के बावजूद टिकट नहीं मिला, इसलिए मैंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया.”
कांग्रेस के ये तीन वरिष्ठ नेताओं का निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी के भीतर उथल-पुथल को उजागर करता है. पुणे, जो कभी वरिष्ठ नेता सुरेश कलमाड़ी के नेतृत्व में कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, अब आंतरिक कलह का शिकार हो रहा है. आगामी विधानसभा चुनावों में इस स्थिति का असर कांग्रेस के भविष्य पर पड़ सकता है, खासकर जब MVA और महायुति गठबंधन के बीच मुकाबला काफी तीव्र है.