महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: रुझानों में बीजेपी गठबंधन के बढ़त के 5 प्रमुख कारण
सत्ताधारी गठबंधन को कांग्रेस की अंदरूनी कलह का भी फायदा मिला. खास कर मुम्बई और बड़े शहरों में. पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आई जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी प्रचार में नही उत्तरा. राहुल गांधी महज 2 दिन ही विधानसभा के रण में आये. सोनिया और प्रियंका गांधी प्रचार से नदारद रहे.
पिछले कुछ महीनों से महाराष्ट्र समेत पूरी देश की जनता को जिस घड़ी का इंतजार था वो घड़ी आ गई है. सूबे में 21 मई को हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के रुझान आना शुरू हो गए है. रुझानों के अनुसार सूबे में फिर एक बार कमल खिलता नजर आ रहा है. बीजेपी शिवसेना गठबंधन आसानी से सत्ता में वापसी करता नजर आ रहा है. राज्य की जनता ने फडणवीस सरकार के काम को पसंद किया है और उनके पक्ष में मतदान किया है.
कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है. ज्ञात हो कि लोकसभा चुनावों में भी टीम मोदी ने UPA को महाराष्ट्र में पटकनी दी थी. बीजेपी की इस जीत का विश्लेषण किया जाए तो ये 5 प्रमुख मुद्दे सामने आते है.
पीएम मोदी पर विश्वास:
महाराष्ट्र की अवाम ने एक बार फिर पीएम मोदी पर भरोसा जताया है. पीएम मोदी ने सूबे में प्रचार किया था और बीजेपी के पक्ष में वोट मांगे थे. वोटरों ने उनकी अपील को माना और बीजेपी को विजयी बनाया.
शिवसेना का साथ:
2014 विधानसभा का चुनाव में शिवसेना और बीजेपी अल-अलग लड़ी थी. इस बार दोनों के बीच गठबंधन हुआ जिसका फायदा भी मिलता नजर आ रहा है. बीजेपी के साथ ही शिवसेना भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है.
देवेंद्र फडणवीस का नेतृत्व:
बीजेपी की इस जीत में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व की भी अहम भूमिका रही है. बीजेपी ने उन्हें एक मजबूत नेता के तौर पर पेश किया. वैसे विपक्ष में उन्हें टक्कर देता भी कोई नजर नही आया.
बेबस विपक्ष:
लोकसभा चुनावो में मिली हार के बाद मानों विपक्ष का आत्मविश्वास ही खत्म हो गया. विपक्ष का मनोबल ओतना टूट गया था कि मानो उन्होंने बीजेपी शिवसेना को खुला मैदान दे दिया था.
कांग्रेस की अंदरूनी कलह:
सत्ताधारी गठबंधन को कांग्रेस की अंदरूनी कलह का भी फायदा मिला. खास कर मुम्बई और बड़े शहरों में. पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आई जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी प्रचार में नही उत्तरा. राहुल गांधी महज 2 दिन ही विधानसभा के रण में आये. सोनिया और प्रियंका गांधी प्रचार से नदारद रहे.
बात दें कि विधानसभा चुनावों से ऐन पहले इस सीट से 15 साल एनसीपी के विधायक रहे सचिन अहिर ने पाला बदला था और वे शिवसेना में शामिल हो गए थे. उनके शिवसेना में शामिल होने से आदित्य की राह और आसान हो गई थी. आदित्य के चाचा राज ठाकरे ने भी इस सीट से उम्मीदवार नही उतारा था.