कौन होगा मध्यप्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष? अपने पसंदीदा नेताओं के लिए दिग्गज लगा रहे हैं जोर
अमित शाह (Photo Credits-BJP Twitter)

भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से पहले होने के आसार बनने लगे हैं. भोपाल में पार्टी द्वारा 17 जनवरी को विभिन्न पदाधिकारियों की बुलाई गई बैठक के चलते ये संभावनाएं और बलबती हुई हैं. बीजेपी के भीतर चलने वाली खींचतान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 56 संगठनात्मक जिलों में से सिर्फ 33 जिलों के ही अध्यक्ष का चुनाव हो पाया है. राज्य के प्रमुख नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, थावरचंद गहलोत, प्रहलाद पटेल के अलावा वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, प्रभात झा, वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह ने जिलाध्यक्ष भी अपने पसंद के बनवाने के लिए जोर लगाने में कसर नहीं छोड़ी, खींचतान बढ़ने पर 23 जिलों के अध्यक्ष का मसला सुलझ नहीं पाया. संभावना इस बात की बन रही है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 20 जनवरी को हो सकता है. अब राज्य में भाजपा नेताओं की 17 जनवरी को बुलाई गई बैठक में इस बात की संभावना बनने लगी है कि इसी दिन प्रदेशाध्यक्ष का भी चुनाव हो जाएगा.

अब प्रदेश इकाई के अध्यक्ष को लेकर जोर आजमाइश चल रही है. नए अध्यक्ष के नाम को लेकर दो धाराएं नजर आ रही हैं. पुराने दिग्गज नेताओं में दावेदारों की संख्या कम नहीं है. वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के अलावा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, भूपेंद्र सिंह, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा के नाम सामने आ रहे हैं. वहीं नए चेहरों में सांसद वी.डी. शर्मा और दीपक विजयवर्गीय के नाम की चर्चा है.

पार्टी ने आधिकारिक तौर पर तो अध्यक्ष के चुनाव का ऐलान नहीं किया है, मगर 17 जनवरी को पार्टी नेताओं की बड़ी बैठक प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिह और संगठन महामंत्री सुहास भगत ने बुलाई है. इस बैठक में प्रदेश पदाधिकारी, प्रवक्ता, समस्त सांसद, विधायक, जिला अध्यक्ष, मोर्चा अध्यक्ष एवं संभागीय संगठन मंत्री उपस्थित रहेंगे.

पार्टी के भीतर से ही विधानसभा चुनाव में मिली हार की चर्चा है. कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 109 सीट मिली मगर लोकसभा चुनाव में पार्टी को 210 स्थानों पर बढ़त मिली, यह अंतर राज्य इकाई के नेतृत्व की क्षमता पर सवालिया निशान है. वहीं संगठन की कार्यशैली भी सवालों में है. आपसी समन्वय का अभाव है, यही कारण है कि पार्टी बड़ा आंदोलन प्रदेश में खड़ा नहीं कर पा रही है.

जानकारों का मानना है कि, हमेशा यह कहा जाता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है. सवाल उठ रहा है कि राज्य के प्रदेशाध्यक्ष पद पर पार्टी किसी कार्यकर्ता को स्थान देगी या पार्टी का बड़ा नेता ही इस पर काबिज होगा.