लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है. चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद पार्टियां एक-एक कर अपने प्रत्याशियों के नाम की भी घोषणा कर रही है.उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार तय होने में अभी वक्त है. हालांकि अटकलों का बाजार गर्म है. टिहरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार कौन होगा, यह बड़ा सवाल है. दरअसल यहां से बीजेपी नए उम्मीदवार को उतार सकती है तो वहीं कांग्रेस के अंदर भी कड़ा मुकाबला है. कांग्रेस टिकट की दावेदारी की टक्कर पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और मौजूदा अध्यक्ष प्रीतम सिंह के बीच है. लेकिन दोनों ही अपना भविष्य राष्ट्रीय अध्यक्ष के फैसले पर छोड़ रहे हैं.
उत्तराखंड में पहले चरण में 11 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए सत्ताधारी बीजेपी ने टिहरी लोकसभा सीट पर नए चेहरों को मौका मिलने की संभावनाओं के मद्देनजर नेताओं ने टिकट पाने की जुगतबाजी तेज कर दी है. बीजेपी में इस बात की अटकलें जोरों पर हैं कि प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों में से एक टिहरी से नए उम्मीदवारों को उतारा जा सकता है. इस सीट से वर्तमान में राजघराने की माला राज्य लक्ष्मी शाह सांसद हैं. यह भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव 2019 VIP सीट: जानें देवभूमि हरिद्वार के सियासी समीकरण
टिहरी प्रदेश की पहली वह सीट है, जहां नए चेहरे को उतारे जाने की अटकलें जोरों पर हैं. पार्टी सूत्रों के अनुसार पिछले पांच सालों में महारानी राज लक्ष्मी शाह ने अपने क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं किया और उनकी छवि एक काम न करने वाली नेत्री की बन गई है. साथ ही सूत्रों का यह भी मानना है कि तत्कालीन टिहरी रियासत की प्रतिनिधि महारानी के पास उनका मजबूत परंपरागत वफादार वोट बैंक है जो इस बार भी उन्हें जीत दिला सकता है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की नजरें भी इस सीट पर है.
टिहरी सीट पर है राजघराने का दबदबा
टिहरी रियासत के भारत में विलय के बाद यहां की सियासत की धुरी में हमेशा से राजशाही का ही वर्चस्व देखने को मिला. 10 आम चुनाव और एक उप चुनाव में टिहरी राज परिवार से ही सांसद चुने गए. सियासी दलों के लिहाज से देखें तो आठ बार आम चुनाव और एक बार उप चुनाव में यह सीट कांग्रेस के पास रही, जबकि छह बार आम चुनाव और एक उप चुनाव में बीजेपी के पास. इस सीट पर एक बार जनता दल और निर्दल सांसद ने भी प्रतिनिधित्व किया. इस सीट का क्षेत्र पूरब में गढ़वाल और दक्षिण में हरिद्वार लोकसभा सीट से जुड़ा है. पश्चिम में इसकी सीमा हिमाचल प्रदेश से लगी है तो उत्तर की तरफ चीन सीमा से सटी है. इसके अंतर्गत आने वाले 14 विस क्षेत्रों में नौ विशुद्ध रूप से पर्वतीय और पांच तराई क्षेत्र के हैं. 31 जनवरी 2019 तक यहां कुल 1449414 मतदाता पंजीकृत हुए हैं.
विधानसभा क्षेत्र
चकराता, देहरादून कैंट, मसूरी, रायपुर, राजपुर रोड, सहसपुर व विकासनगर (देहरादून), धनौल्टी, घनसाली, टिहरी व प्रतापनगर (टिहरी), गंगोत्री, यमुनोत्री व पुरोला (उत्तरकाशी).
टिहरी का राजनितिक इतिहास
15 अगस्त 1947 को आजादी के कई बाद टिहरी रियासत 1 अगस्त 1949 में भारत में विलय हुई. इसके बाद टिहरी में राजतंत्र खत्म होकर लोकतंत्र आया. इस लोकतंत्र में भी राजघराने का ही वर्चस्व रहा. लगभग राजघराने से निकले उम्मीदवार ही जनता की पहली पसंद बने. 1952 के पहले आम चुनाव में राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. 1957 में कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे एवं टिहरी रियासत के अंतरिम शासक रहे मानवेंद्र शाह सांसद चुने गए.
इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर मानवेंद्र शाह ने 1962 व 1967 में भी लगातार जीत दर्ज की. 1971 में कांग्रेस के टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली. 1977 में पर्वतपुत्र हेमवंती नंदन बहुगुणा समर्थित जनता दल के प्रत्याशी त्रेपन सिंह नेगी को जीत मिली. 1980 में कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी ने जीत दर्ज की. 1984 में कांग्रेस के टिकट पर ब्रह्मदत्त लोकसभा पहुंचे. 1989 में भी वह दोबारा जीते. 1991 में इस सीट पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला और उसके मानवेंद्र शाह चुनाव जीते.
इसके बाद लगातार 1996, 1998, 1999 व 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से जीत दर्ज की. मानवेंद्र शाह के निधन के बाद 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विजय बहुगुणा जीते. 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा ने मनुजेंद्र शाह को हराया. 2012 के उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह चुनाव जीती और 2014 में वह फिर से बीजेपी के टिकट से जीतीं. इस बार भी टिहरी लोकसभा सीट से राज लक्ष्मी शाह को ही बीजेपी मैदान में उतार सकती है.