बिहार में कांग्रेस का 'चेहरा' बनेंगे कन्हैया!
वामपंथी विचारधारा छोड़कर छात्र नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि कांग्रेस बिहार में कन्हैया को चेहरा बनाएगी. हालांकि माना यह भी जा रहा है कि वामपंथी विचारधारा से आने वाले कन्हैया के लिए यह राह आसान नहीं है. कन्हैया ने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस नहीं तो देश भी नहीं.
पटना, 29 सितम्बर: वामपंथी विचारधारा छोड़कर छात्र नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि कांग्रेस बिहार में कन्हैया को चेहरा बनाएगी. हालांकि माना यह भी जा रहा है कि वामपंथी विचारधारा से आने वाले कन्हैया के लिए यह राह आसान नहीं है. कन्हैया ने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस नहीं तो देश भी नहीं. ऐसे में कन्हैया यह साफ संदेश दे दिया है कि वे कांग्रेस की खोई हुई जमीन वापस लाने के लिए मशक्कत करेंगे. बिहार की स्थिति को देखे तो पिछले कई सालों से कांग्रेस यहां अपने सहयोगियों की वैशाखी के सहारे राजनीति करती रही है, ऐसे में सवर्ण जाति से आने वाले कन्हैया जैसे युवा चेहरे को सामने लाकर पार्टी जहां विरोधियों बल्कि सहयोगियों पर भी दबाव बना सकेगी. सूत्र बताते हैं कि कन्हैया को कांग्रेस में लाने में बिहार के कांग्रेसी नेता शकील अहमद की बड़ी भूमिका मानी जा रही है.
वैसे, कांग्रेस अभी तक कन्हैया को कोई जिम्मेदारी देने की अधिकारिक घोषणा नहीं की है. पिछले दो महीने से बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के बदलाव की चर्चा जोरों पर है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने कांग्रेस आलाकमान को प्रदेश अध्यक्ष को लेकर एक नाम सुझाया भी है, लेकिन अब तक घोषणा नहीं की गई है. ऐसे में कन्हैया को बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. आंकडों पर गौर करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार में केवल एक सीट मिली थी जबकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राजद और वामपंथी दलों के महागठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी और 19 सीटें प्राप्त कर सकी थी. वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में 27 सीटें कांग्रेस के हिस्से आई थी. युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार भी कहते हैं कि कन्हैया के कांग्रेस में आने से पार्टी को लाभ होगा. उन्होंने कहा कि बिहार की सवर्ण जातियों में सबसे मुखर वोट बैंक वाली जाति संख्या बल के अधार पर राजपूतों के बाद भूमिहार समुदाय है. यह भी पढ़े: बिहार के 34 जिलों में पंचायत चुनाव का दूसरा चरण जारी
बिहार के कई लोकसभा और दर्जनों विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव है. युवा की पसंद रहे कन्हैया के आने से कांग्रेस के वे सवर्ण मतदाता जो अन्य पार्टियों में चले गए थे, वे फिर से जुड़ सकते हैं. वैसे, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर यह भी कहते हैं कि पार्टी के पुराने युवा चेहरों को तरजीह नहीं देकर बाहर से आए नेताओं को तरजीह देने से पार्टी के पुराने नेताओं में नाराजगी भी उभरेगी. कांग्रेस के लिए बिहार में इतना जल्द ही सबकुछ करना आसान नहीं है. कहा जा रहा है कि राजद बिहार में कांग्रेस को तेजी से आगे बढ़ने देगी, इसमें शक है. राजद का चेहरा बने तेजस्वी यादव फिलहाल विपक्षी दल के महागठबंधन के नेता है. ऐसे में राजद कभी नहीं चाहेगी कि किसी दूसरे पार्टी का नेता यहां महागठबंधन का चेहरा बने. राजद के प्रवक्ता और विधायक भाई वीरेंद्र से जब कन्हैया के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कन्हैया को पहचानने से इंकार कर दिया. ऐसे में समझा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए सबकुछ आसान नहीं है. उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कन्हैया बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.