झारखंड: शिबू सोरेन के बयान से सियासी सरगर्मी बढ़ी
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के उस बयान को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आदिवासियों और राज्य के मूल निवासियों को हक दिलाने के लिए नीति में बदलाव किया जाएगा.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के उस बयान को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आदिवासियों और राज्य के मूल निवासियों को हक दिलाने के लिए नीति में बदलाव किया जाएगा. इस बयान को लेकर विभिन्न दलों के नेताओं मुखर हो गए हैं. शिबू सोरेन ने दुमका में संवाददाताओं से बातचीत में बुधवार को कहा था, "राज्य सरकार झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों को उनका वाजिब हक और अधिकार दिलाने के लिए स्थानीय नीति में बदलाव करेगी." उन्होंने इसके लिए 1932 के आसपास हुए सर्वे में दर्ज खतियानी रैयतों का लाभ मुहैया कराने के प्रावधान की बात कही थी.
शिबू सोरेन के इस बयान के बाद स्थानीय नीति को लेकर झारखंड का सियासी पारा चढ़ गया है. झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि इस पर बोलने के बजाए सरकार को निर्णय लेना चाहिए। ठंडे दिमाग से काम करें. उन्होंने कहा, "पत्थलगड़ी के मामले में जिस तरह कैबिनेट से फैसला लेकर केस वापस लिया, उसी तरह इस मामले में भी निर्णय लें. राज्य में बहुमत की सरकार है. कहीं से कोई दबाव की बात नहीं है. अगर वह चाहते हैं कि स्थानीयता के लिए 1932 का खतियान लागू करना आवश्यक है तो उनको करना चाहिए, सिर्फ बोलना नहीं चाहिए."
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भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शहदेव ने कहा, "मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गठबंधन सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. उन्हें इस संबंध में लोगों को बताना चाहिए कि उनकी इस मामले में सोच क्या है. राजद और कांग्रेस को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए." उन्होंने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है तब भाजपा जनता के हित में कोई निर्णय लेगी.
सरकार में शामिल कांग्रेस ने इस मामले में गठबंधन की बैठक में कोई निर्णय लेने की बात कही है. प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा, "शिबू सोरेन झारखंड के सम्मानित नेता हैं. अगर इस संदर्भ में उन्होंने कोई बयान दिया है तो इस पर गठबंधन की बैठक में कोई निर्णय लिया जाएगा. राज्यहित में जो भी फैसला होगा, वह लिया जाएगा." इस बीच झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि गुरुजी (शिबू सोरेन) उनके अभिभावक हैं, और उन्होंने जो कहा है उनके विचार सबसे ऊपर हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि स्थानीय नीति को 1985 का आधार कहीं से सही नहीं है, और इसके बदलाव के लिए मंथन होगा.
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उल्लेखनीय है कि पूर्व में रघुवर दास की सरकार ने वर्ष 2016 में मंत्रिमंडल की बैठक में झारखंड की स्थानीय नीति के लिए कट ऑफ डेट 1985 निर्धारित करने से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. गौरतलब है कि झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा है, "पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा स्थानीय नीति में वर्ष 1985 तक की तिथि निर्धारित किया जाना गलत है. इससे झारखंड के मूलवासी-आदिवासी को उनके हक और अधिकार से वंचित कर दिया गया है. राज्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी महागठबंधन की नई सरकार 1932 कट ऑफ डेट लागू करेगी."