कैथोलिक चर्च दुनिया भर में संकट में है. रोम में बिशपों की एक प्रमुख बैठक में असामान्य रूप से खुला संवाद होगा. क्या इससे चर्च के भीतर और विभाजन हो जाएगा?रोम का यह छोटा सा दृश्य शायद इस बात का प्रतीक है कि फिलहाल कैथोलिक चर्च में हो क्या रहा है. नथाली बेक्वार्ट मुस्कराती हुई सेंट पीटर्स स्क्वायर और वेटिकन की ओर एक ऐसी बाइक चलाती हैं जो उनके लिए बहुत छोटी है.54 वर्षीया इस फ्रांसीसी महिला को पोप फ्रांसिस ने 2021 की शुरुआत में बिशपों की धर्मसभा में अंडरसेक्ट्रेटरी के तौर पर नामित किया था और वे पुरुष-प्रधान बैठकों में मतदान का अधिकार पाने वाली पहली महिला हैं. बेक्वार्ट शायद वेटिकन की सबसे प्रसिद्ध महिला हैं. 4 अक्टूबर से शुरू होने वाली विश्व धर्मसभा के इस अगले चरण से पहले वह हर किसी का गर्मजोशी से स्वागत करती हैं.
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रोम में वर्कशॉप के दौरान करीब 450 प्रतिनिधि कैथोलिक चर्च में सुधारों और एक साथ काम करने के नए तरीकों पर चर्चा करेंगे. यह वर्कशॉप 29 अक्टूबर तक चलेगा. चर्चा के लिए कुछ कठिन विषय चर्चा लिए गए हैं- जैसे, कैथोलिक चर्च के प्रत्येक नियुक्त मंत्रालय से महिलाओं का बहिष्कार, ब्रह्मचर्य का व्रत, चर्च समलैंगिकों और समान-लिंग वाले जोड़ों के साथ कैसे जुड़ता है, समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों पर अपना ध्यान केंद्रित करना और चर्च में यौन शोषण का मामला.
ब्रह्मचर्य व्रत
सुधारोन्मुख जर्मन चर्च परिवर्तन के आह्वान में अकेला नहीं है. इसी तरह के बयान कई यूरोपीय देशों, लैटिन अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों से भी आए हैं. अफ्रीका में, चर्च अधिक रूढ़िवादी है जबकि अमेरिका में यह लगभग विभाजित दिखता है. कई रूढ़िवादी चर्च पोप के खिलाफ खुले तौर पर काम करते हैं.
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लेकिन हाल के कुछ हफ्तों में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और डोमिनिकन गणराज्य जैसे विभिन्न देशों के कुछ बिशप अनिवार्य ब्रह्मचर्य (कुंआरेपन) को समाप्त करने की वकालत कर रहे हैं. बीस या 30 साल पहले इस तरह की बात करने वाले किसी आध्यात्मिक नेता को इसके लिए रोम से कड़ी फटकार लग सकती थी.
2019 में, अमेजन क्षेत्र में चर्च की स्थिति पर हुई तीन हफ्ते की धर्मसभा ने पोप को दो-तिहाई बहुमत के साथ विवाहित डेकन्स (छोटे पादरियों) को पादरी के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी. ऐसा करने में पुजारियों के लिए ब्रह्मचर्य दायित्व की उपेक्षा की गई, ताकि बड़े पैमाने पर उनकी ज्यादा सेवाएं ली जा सकें.
दूसरा महत्वपूर्ण विषय है महिलाओं की भागीदारी. सभी वोटों का सातवां हिस्सा महिलाओं से आएगा. नथाली बेक्वार्ट ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि चर्च में महिलाओं की अधिक भागीदारी का सवाल दुनिया भर में उठाया गया है.
कैथोलिक चर्च के भीतर यौन शोषण
पूर्व या सक्रिय कैथोलिक, जिनका किशोरावस्था में चर्च में पुरुषों द्वारा यौन शोषणकिया गया था, वे लोग भी रोम आए हुए हैं. ये लोग न्यूजीलैंड, मेक्सिको, कनाडा, कांगो, स्लोवेनिया और स्पेन सहित पांच महाद्वीपों के 26 देशों से आते हैं. परामर्श प्रक्रियाओं और राष्ट्रीय धर्मसभा के लिए प्रेरणा चर्च में नाबालिगों के साथ बड़े पैमाने पर दुर्व्यवहार हुआ था.
पीड़ितों और बचे हुए लोगों द्वारा बताई गई दुर्व्यवहार की कहानियां बेहद भयानक हैं. वे इस बात पर जोर देते रहे कि वैटिकन अभी भी पर्याप्त काम नहीं कर रहा है. उनकी मांग है कि कैथोलिक अधिकारी उन्हें उन फाइलों तक पहुंच प्रदान करें जिनमें अपराधियों और उनके अपराधों का विवरण दर्ज है.
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जब इन अपराधों की जांच की बात आती है तो पोप फ्रांसिस इन मामलों में जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं. ऐसे मामलों में अपने इस बयान के लिए पोप फ्रांसिस मशहूर हो चुके हैं और मीडिया के लिए उनका यह एक जाना-पहचाना सा उद्धरण बन गया है. लेकिन इस बात के संकेत बढ़ रहे हैं कि वैटिकन, और शायद खुद पोप भी इन मामलों में सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं.
दुर्व्यवहार से बचे लोग इस बात से नाराज हैं कि पोप फ्रांसिस ने अर्जेंटीना के आर्कबिशप विक्टर फर्नांडीज को विश्वास के सिद्धांत के लिए डिकास्टरी के नए प्रीफेक्ट के रूप में रोम बुलाया है. कार्डिनल के रैंक का यह पद अन्य चीजों के अलावा अनुशासनात्मक मामलों से निपटता है, और माना जा रहा है कि उन्हें इस पद पर पदोन्नत किया है.
दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के प्रतिनिधियों के मुताबिक, फर्नांडीज ने पादरियों द्वारा की गई यौन हिंसा को छिपाया और दुर्व्यवहार के अपराधियों को बचाने का काम किया.
यौन शोषण को छिपाते और दोषियों को बचाते रहे चर्च अधिकारी
धर्मसभा के उद्घाटन से पहले पीड़ितों के प्रवक्ता की एक अंतिम अपील थी- पोप फ्रांसिस को ‘चर्च में बाध्यकारी और सार्वभौमिक शून्य सहिष्णुता जनादेश' पेश करना चाहिए.
और अगर ऐसा किया गया तो यह बहुत बड़ा झटका होगा.
वैटिकन में एक अलग अंदाज
क्या कैथोलिक चर्च आधुनिकीकरण की ओर बढ़ेगा? चर्च के भीतर इस पर जोरदार बहस चल रही है. दरअसल, यह उस पूर्ण शक्ति से दूर जाने जैसा है जो प्रथम वेटिकन काउंसिल (1869-1870) ने पोप को दी थी. मार्च 2013 में, पोप कॉन्क्लेव के कार्डिनल्स ने अर्जेंटीना के जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो को पोप के रूप में चुना. तब से, पोप फ्रांसिस के नाम के तहत, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती से बहुत अलग तरीके से, और अत्यधिक प्रतीकात्मक तरीकों से कार्य किया है.
उन्होंने वेटिकन की नौकरशाही, रोमन कुरिया का पुनर्गठन किया, जिसमें पोप को अपने कर्तव्यों का पालन करने में मदद करने के लिए स्थापित सभी प्राधिकरण और संस्थान शामिल हैं.
अब, करीब 87 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक धर्मसभा का आह्वान किया जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि ईसाई धर्म को मानने वाले कैसे एक साथ काम करते हैं और चर्च का भविष्य क्या है. यह चर्चा और निर्णय लेने की एक अलग शैली को प्रदर्शित करता है. पहली बार, इसमें आम लोग भाग ले रहे हैं और उन्हें वोट डालने का अधिकार है. हालांकि बिशपों की तुलना में इनकी संख्या बहुत कम है.
धर्मसभा कोई संसद नहीं है. विश्व स्तर पर केंद्रित इस धर्मसभा में चर्चा के लिए कई विषय जर्मनी के ‘सिनोडल पाथ' के दौरान चर्चा किए गए सुधारों के अनुरूप हैं. यह 2019 और 2023 के बीच बैठकों और सम्मेलनों की एक श्रृंखला है. कैथोलिक जर्मन बिशप सम्मेलन के सुधार समर्थक अध्यक्ष, बिशप गेयोर्ग बेएत्सिंग चाहते हैं कि राष्ट्रीय बिशप सम्मेलनों को अधिक स्वतंत्रता देने के लिए विश्व धर्मसभा हो.
ऑउसबुर्ग में उनके समकक्ष बिशप बेरट्राम मायर ने आने वाले हफ्तों की तुलना स्कूल की रसायन विज्ञान कक्षा से की. वो कहते हैं, "यह पूरी तरह से नए संकल्पों को जन्म दे सकता है, लेकिन विस्फोटों को भी जन्म दे सकता है.”
बेएत्सिंग और मायर दोनों रोम में होने वाली बैठक में भाग ले रहे हैं. ये दोनों उन पांच जर्मन बिशपों में से हैं जो बैठक में जा रहे हैं.
अब तक पोप फ्रांसिस के अधीन भी, चर्च की शिक्षाओं और दिशानिर्देशों में बहुत अधिक उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुए हैं. चर्च के इतिहासकार ह्यूबेर्ट वुल्फ जैसे प्रमुख धर्मशास्त्रियों को इस धर्मसभा से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है. कैथोलिक समाचार एजेंसी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने इसे "कानूनी शक्तियों के बिना एक और वाद-विवाद क्लब" बताया.