Amravati Congress Candidate: आखिरकार दो दशक बाद कांग्रेस ने अमरावती का गढ़ किया फ़तेह, बलवंत वानखेड़े की जीत में मुस्लिम और दलित वोटर्स बने बड़े फैक्टर

महाराष्ट्र के अमरावती से कांग्रेस के उम्मीदवार बलवंत वानखेड़े ने जीत दर्ज की है. उनकी बीजेपी की उम्मीदवार नवनीत राणा को हराया. वानखेड़े ने करीब 41 हजार 648 वोटों से जीत दर्ज की है.

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महाराष्ट्र के अमरावती जिले से कांग्रेस के उम्मीदवार बलवंत वानखेड़े ने जीत दर्ज की है.उन्होंने  बीजेपी की उम्मीदवार नवनीत राणा को हराया. वानखेड़े ने करीब 41 हजार 648 वोटों से जीत दर्ज की है. वानखेड़े को कुल 5 लाख 26 हजार 271 वोट मिले है. तो वही राणा को 5 लाख 6 हजार 540 वोट मिले है. पिछले महीने जब अमरावती जिले में 26 अप्रैल को मतदान हुआ था, तभी मुस्लिम बहुल इलाकों में महिलाओं और पुरुषों की लाइन लगी हुई थी. तभी माना जा रहा था की , कांग्रेस उम्मीदवार जीतेगा.

बता दे की अमरावती जिले में बुद्धिस्ट और मुस्लिम लोगों की संख्या ज्यादा है. जिसके कारण अमरावती जिले से ज्यादातर मुस्लिम और बुद्धिस्ट मतदाताओ ने कांग्रेस को मतदान किया. इस पूरी जीत में कांग्रेस की पूर्व मंत्री और विधायक यशोमती ठाकुर ने भी वानखेड़े के लिए जमकर प्रचार किया. बुद्धिस्ट और मुस्लिम बहुल इलाकों में ज्यादातर फोकस रखा गया.

आखिर क्यों हारी नवनीत राणा

नवनीत राणा के हारने के बहुत से कारण है. कुछ दिनों से राणा ने अल्पसंख्यक समाज को लेकर बहुत आक्रामक भूमिका अपनाई थी. किसी भी मौके पर वह अपने विवादस्पद बयान देने से नहीं चुकती थी. पिछली बार के लोकसभा चुनावों के समय उन्हें शरद पवार और कांग्रेस ने समर्थन दिया था. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया और उन्हें बीजेपी में शामिल होकर लड़ना पड़ा. इसके साथ ही  पहले की  शिवसेना के जो अमरावती के विधायक थे ,आनंद अडसूल ,उनके साथ भी राणा दंपत्ति के संबंध ठीक नहीं थे, इसलिए उन्होंने भी राणा का प्रचार या मदद नहीं की.

इसके साथ ही एकनाथ शिंदे का साथ देनेवाले विधायक बच्चू कडू ने भी अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा किया था. बच्चू कडू और राणा दंपत्ति की लड़ाई पूरे अमरावती जिले में पता है. जिसके कारण भी नवनीत राणा को किसी भी दूसरी पार्टी से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली.

जानकारी के मुताबिक़ वानखेड़े को अचलपूर, तिवसा, दर्यापूर और अमरावती से नवनीत राणा से ज्यादा वोट मिले है. वानखेड़े के समर्थकों ने और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी उनको जीताने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिसके कारण बलवंत वानखेड़े की बड़ी जीत हुई है.

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