दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम 2020: दिल्ली के दंगल में AAP ने मारी बाजी, बीजेपी-कांग्रेस को जनता ने नकारा

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में जीत के लालच में भले ही कांग्रेस ने बंद पड़े गोदाम से सुभाष चोपड़ा को बाहर निकाल लिया हो. भारतीय जनता पार्टी के पास देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से राजनीति के 'बेजोड़-बादशाह' मौजूद रहे हों. अरविंद केजरीवाल के पास कुछ नहीं था, सिवाये एक अदद दिल्ली की सत्ता के, उन्हें दिल्ली की जनता ने स्वीकार किया.

अरविंद केजरीवाल (Photo Credits: ANI)

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 (Delhi Assembly Elections 2020) में जीत के लालच में भले ही कांग्रेस (Congress) ने बंद पड़े गोदाम से सुभाष चोपड़ा को बाहर निकाल लिया हो. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) से राजनीति के 'बेजोड़-बादशाह' मौजूद रहे हों. अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) के पास कुछ नहीं था, सिवाये एक अदद दिल्ली की सत्ता के. दिल्ली वालों को फ्री बिजली-पानी, महिलाओं को फोकट में बस-यात्रा के. चुनावी सभाओं में भाषण के वास्ते न कोई चर्चित चेहरा, जिसकी शक्ल और लच्छेदार ओजस्वी धारा-प्रवाह भाषण में दिल्ली के मतदाता को लुभा-फंसा लिया जाता. इसके बाद भी कांग्रेस और भाजपा के तमाम शहंशाह इस चुनाव में 'प्यादे' में तब्दील होकर बाहर निकले.

कभी बीजेपी कभी कांग्रेस की नाव पर सवारी करते रहे पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद संगम विहार से चुनाव लड़ीं, बुरी तरह हार गयीं. कांग्रेस ने जिन सुभाष चोपड़ा के कंधों पर दिल्ली चुनाव में पार्टी की नैय्या पार लगाने का ठीकरा फोड़ने का जुगाड़ तलाशा था, वे सुभाष चोपड़ा अपनी बेटी शिवानी चोपड़ा तक को नहीं जिता पाये. शिवानी चोपड़ा बड़े ही जोर-शोर से उतरी थीं कालकाजी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में. बेटी नहीं जीती तो न जीती, न राजनीति का अनुभव था, न ही दस बीस साल बिना कुर्सी के जनता की सेवा करने का अनुभव, ऐसे में हारना तय था, सो हार गयीं. यह भी पढ़ें: दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम 2020: AAP ने दिल्ली की सभी 12 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की

कांग्रेसी कुनवे में इससे भी ज्यादा शर्मनाक हालात तब और हुए जब कभी कांग्रेस की आंखों के तारे रहे सुभाष चोपड़ा अपनी लीडरशिप में दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टी को एक सीट भी न जितवा पाये. मुस्तफाबाद इलाके में पूर्व एमएलए हसन अमहद ने अपने पुत्र अली मेंहदी को चुनाव मैदान में उतारा। परिणाम क्या हुआ? जमाने के सामने है सबकुछ.

नांगलोई जाट से पूर्व विधायक डॉ. विजेंद्र सिंह ने बेटे मनदीप शौकीन को चुनाव लड़वाया. वहां भी बेटा पापा की इज्जत नहीं बचा पाया. आर के पुरम से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री की बेटी प्रियंका शास्त्री भी पार्टी की इज्जत नहीं बचा सकीं. विकासपुरी से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मुकेश शर्मा को जीतने की बात तो दूर की कौड़ी साबित हुई. वे अपनी जमानत ही जब्त करा बैठे.

कमोबेश यही आलम चांदनी चौक और द्वारका से अलका लांबा व आदर्श शास्त्री का रहा. अलका लांबा पर दोहरी मार पड़ी. वे आम आदमी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में पहुंची थीं. यह सोचकर कि हो न हो, 'केजरीवाल' को नीचा दिखाने के लिए वे कांग्रेस की सीट पर चुनाव जीतकर दिखाएंगी. यह अलग बात है कि उनकी तमन्ना और सपने सब के सब धूल में मिल गए. आम आदमी पार्टी से दूर हुए कपिल मिश्रा भी कहीं के नहीं रहे। मॉडल टाउन सीट से उन्हें बुरी तरह हराया गया. यह भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव में बीजेपी को मिली हार पर मनोज तिवारी पर गाज, प्रदेश अध्यक्ष समेत कई पदाधिकारियों की होगी छुट्टी

और तो और कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पूर्व सांसद परवेज हाशमी, पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ, पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली, हारून यूसुफ, डा. नरेंद्र नाथ, पूर्व विधायक चौधरी मतीन अहमद, जयकिशन, देवेंद्र यादव, सोमेश शौकीन भी इस चुनाव में मुंह की खाये बैठे हैं. इन तमाम नामों के साथ समस्या यह है कि वे अपनी हार का ठीकरा किसी और के सिर नहीं फोड़ सकते, क्योंकि कभी इन्होंने तो खुद ही दिल्ली और देश की राजनीति की है.

जहां तक सवाल भाजपा का है तो जिस भाजपा का दिल्ली में नगर निगम पर कब्जा हो. सातों लोकसभा सीटें जिस भाजपा के कब्जे में हों. देश का प्रधानमंत्री जिसका हो, वह भाजपा भी दिल्ली में दांव पर लगी इज्जत को नहीं बचा पाई.

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