पटना: आरजेडी, कांग्रेस और वाम गठबंधन के लिए अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. इस महागठबंधन को बिहार में विजय पताका फहराने के लिए बेहद कम समय में खुद को एनडीए से बेहतर साबित करना होगा. जो कि आसान बात नहीं है. वर्तमान में महागठबंधन की अगुवाई बिहार के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव कर रहे है. हालांकि आरजेडी नेता बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे है. लेकिन अभी भी बिहार के मतदाताओं के दिल में उतरने के लिए महागठबंधन को और मेहनत करने की जरुरत है. Bihar Assembly Elections 2020: क्या एक बार फिर कामयाब होगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग? क्या फिर मिलेगा वोट बैंक का साथ?
बिहार में महागठबंधन ने सीट बंटवारे का ऐलान कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को पछाड़ दिया है. जबकि सूबे में सीटों की संख्या पर बीजेपी और जेडीयू में सहमति बनने की खबर आ रही है. लेकिन चार दर्जन सीटों पर पेंच फंसा हुआ है. ये वो सीटें हैं, जहां 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर हुई थी. आधी सीटों पर जेडीयू जीती थी तो आधी पर बीजेपी जीती थी. दोनों दल अपने लिए सुरक्षित सीटे हासिल करना चाहते है. उधर, एनडीए की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने अलग राह पकड़ते हुए खुद को अलग कर लिया है. एलजेपी ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हालांकि पार्टी ने बीजेपी उम्मीदवारों का समर्थन करने की भी बात कही है. दरअसल एलजेपी ने जेडीयू से आपसी मतभेदों के कारण खुद को एनडीए से अलग किया है. Bihar Assembly Elections 2020: कहा गायब हैं मोदी-नीतीश को जीत दिलाने वाले किंगमेकर प्रशांत किशोर?
पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो एलजेपी के बाहर होने से महागठबंधन का काम थोड़ा आसान हुआ है. आरजेडी कांग्रेस और वाम दलों से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इससे साफ़ है कि गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट किया जा रहा है. कागज पर तीनों सहयोगियों ने एक व्यवहार्य सामाजिक गठबंधन तैयार किया है, लेकिन बगैर सत्ता-विरोधी वोटरों के मदद के जीत हासिल करना कठिन है. Bihar Assembly Elections 2020: बिहार में चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी क्या खड़ा करेगी तीसरा मोर्चा? बदलेगा सियासी समीकरण?
बिहार के जातिय समीकरण में कांग्रेस के पाले में उच्च जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों और मुसलमानों को माना जाता है. जबकि सीपीआई (एम-एल) भी दलित वोटरों में काफी लोकप्रिय है. लेकिन दोनों ही पार्टियों के लिए समय के साथ राजनीतिक हालात भी बदल गए है. बीजेपी का दबदबा अब बिहार की उच्च जातियों में माना जाता है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश यादव ने अपने सोशल इंजीनियरिंग की मदद से ओबीसी समूहों, मुसलमानों और दलितों का समर्थन हासिल किया है. समय के साथ, नीतीश कुमार ने अपने ईबीसी-महादलित फोकस के माध्यम से आरजेडी वोटर छीने है. अब ओबीसी और दलित समर्थन के साथ ही मुसलमान विभाजित होकर एनडीए के पाले में नजर आ रहा है. ऐसे में आरजेडी के कद्दावर नेता तेजस्वी को अपने मुस्लिम-यादव वोटरों पर फिर पकड़ मजबूत करने के लिए जमीन पर उतरकर जड़े मजबूत करनी होगी, जिसके लिए अब समय बहुत कम बचा है. साथ ही महागठबंधन को भी कड़ी मेहनत करना पड़ेगा.