बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2020) की तारीखों के ऐलान के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां सुपर एक्टिव हो गई हैं. बिहार चुनाव में अब एक महीने से भी कम का समय बचा है. ऐसे में बिहार में सियासी हलचल तेज हो गई है. इस बीच सीएम नीतीश (Nitish Kumar) कुमार सत्ता वापसी के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. 15 साल से बिहार के सीएम रह चुके नीतीश कुमार अपने चौथे टर्म के लिए मैदान में हैं. नीतीश कुमार NDA का चेहरा हैं और उनका मुकाबला महागठबंधन (Mahagathbandhan) से है. महागठबंधन का सीएम उम्मीदवार कौन है ये अभी तक स्पष्ट नहीं है लेकिन अभी तक तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ही सबसे बड़े नेता के रूप में आगे आ रहे हैं.
बिहार की जनता NDA और महागठबंधन में से किसके हाथों में सत्ता की बागडोर देती है इसका पता 10 नवंबर को चलेगा, लेकिन उससे पहले हम बात करेंगे 15 सालों से बिहार की सत्ता संभालने वाले नीतीश कुमार की जो एक बार फिर जीत के भरोसे के साथ चुनावी मैदान में हैं. यह भी पढ़ें | 'नया बिहार, विकसित बिहार' के नारे के साथ नीतीश कुमार को चुनौती देने वाले तेजस्वी यादव की ये हैं ताकत और कमजोरियां.
नीतीश कुमार की ताकत:
NDA का साथ
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत है NDA का साथ. NDA के मतों का सीधा फायदा नीतीश कुमार हो होगा. दलित वोटर्स पर जहां JDU की पकड़ है वहीं ऊंची जाती के लोगों को NDA का वोटर्स माना जाता है. इस तरह से नीतीश कुमार के खाते में सभी लोगों के वोट आ सकते हैं.
राजनीतिक अनुभव
नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव किसी से छुपा नहीं है, उसी अनुभव के बल पर उन्होंने 15 साल सत्ता चलाई है और अपने चौथे टर्म के लिए मैदान में हैं. नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को भलीभांति समझते हैं, उनका यही अनुभव इस चुनाव में भी उनके काम आएगा. यह भी पढ़ें | बिहार के रण में दिग्गजों की सांख दांव पर, जानें बड़े नेता किस सीट से उतरेंगे मैदान में.
पीएम मोदी की लोकप्रियता
पिछले कुछ समय में हमने देखा है कि पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की लोकप्रियता हर चुनाव में कितनी भागीदारी निभाती है. बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा मिल सकता है. पीएम मोदी का साथ और केंद्र की योजनाओं के बल पर नीतीश कुमार महागठबंधन को हरा सकते हैं.
नीतीश कुमार की कमजोरियां:
15 साल का कार्यकाल
15 साल का कार्यकाल वास्तव में एक बड़ा दौर है. इतने लंबे समय के बाद लोग बदलाव की चाह रखते हैं. बदलाव की यही चाह नीतीश कुमार को भारी पड़ सकती है. विपक्ष भी नीतीश कुमार के 15 साल के कार्यकाल को मुद्दा बना रहा है, यही मुद्दे जनता के दिमाग में बैठ जाएं तो इससे नीतीश कुमार को जरूर नुकसान होगा.
लोकप्रियता घटना
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति का बड़ा चेहरा हैं, लेकिन इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि पिछले कुछ समय में उनकी लोकप्रियता घटी है. नीतीश कुमार की लोकप्रियता अब 2010 वाली नहीं रही, हालांकि 2015 में उनका जादू जरूर चला लेकिन तब से इन 5 सालों में हालात और बदल गए हैं. बिहार के युवा चेहरों ने उनकी लोकप्रियता कम कर दी है.
विपक्ष के मुद्दे
कोरोना काल में विपक्ष ने जिस तरह से नीतीश सरकार को घेरा है और जनता की आवाज उठाई है उससे नीतीश कुमार को नुकसान हो सकता है. बिहार में कोरोना के आंकड़े हों या कोरोना टेस्टिंग, प्रवासी मजदूरों की राज्य वापसी और राज्य में रोजगार हर मुद्दे को विपक्ष ने भुनाया है उसका असर नीतीश कुमार के वोटर्स पर पड़ सकता है.