बिहार विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections 2020) में इस बार मुख्य मुकाबला NDA और महागठबंधन के बीच है. महागठबंधन (Mahagathbandhan) का चेहरा माने जाने वाले तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) इस बार 'नया बिहार, विकसित बिहार' के नारे के साथ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को टक्कर देने निकले हैं. विधानसभा चुनावों से पहले तेजस्वी यादव सुपर एक्टिव मोड़ में आ गए हैं. नीतीश कुमार जहां चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए मैदान में हैं तो वहीं उनके सामने बिहार का युवा चेहरा है. तेजस्वी यादव अघोषित उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं, RJD जहां उन्हें सीएम उम्मीदवार बता चुकी है तो वहीं कांग्रेस ने इस मामले अभी तक कोई ऐलान नहीं किया है.
यहां हम बात करेंगे तेजस्वी यादव की ताकत और कमजोरी के बारे में. बिहार चुनाव में उनका पलड़ा कितना भारी है और कहां उन्हें मात मिल सकती है. पिछले कुछ समय में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता बढ़ी है. अब देखना या होगा इस बार बिहार बदलाव की सीढ़ी चढ़ता है या एक बार फिर जनता पर नीतीश कुमार का जादू चलेगा. यह भी पढ़ें | Bihar Assembly Elections 2020: बिहार के रण में दिग्गजों की सांख दांव पर, जानें बड़े नेता किस सीट से उतरेंगे मैदान में.
तेजस्वी यादव की ताकत:
मुस्लिम यादव वोटर्स
तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी ताकत है बिहार के मुस्लिम और यादव वोटर्स. इसी ताकत के दम पर लालू यादव ने बिहार पर जीत हासिल की थी. राज्य में 30 फीसदी मुस्लिम और यादव वोटर्स हैं. यह तेजस्वी यादव का सबसे मजबूत पॉइंट है.
बिहार की राजनीति में पकड़
आरजेडी बिहार में लंबे समय तक सत्ता में रही है इसलिए बिहार में पार्टी की पकड़ मजबूत है. आरजेडी की पहुंच बिहार के हर जिले में हर गांव में है इसका फायदा तेजस्वी यादव को जरूर मिलेगा.
युवा नेता
तेजस्वी यादव बिहार के युवा और जागरूक नेता हैं. वे कई मुद्दों पर नीतीश सरकार और केंद्र सरकार को घेरते रहते हैं. तेजस्वी युवाओं की समस्याओं के बारे में बात करते हैं. उन्होंने पुराने बिहार को बदलने की ठानी है. तेजस्वी यादव ने चुनाव से पहले सबसे बड़ा वादा सरकार बनने पर 10 लाख नौकरी देने का किया है. जिस तरह से वे युवाओं के बीच लोकप्रिय दिख रहे हैं उसका उन्हें बड़ा फायदा मिल सकता है.
तेजस्वी यादव की कमजोरियां:
मुस्लिम यादव वोटर्स
जी हां मुस्लिम यादव वोटर्स जहां तेजस्वी यादव की ताकत हैं तो वहीं उनकी कमजोरी भी. RJD के वोटर्स यहीं तक सिमट कर रह गए हैं. इस बार पार्टी अपना विस्तार करने में कामयाब हो पाती है या नहीं यह बाद में ही पता चलेगा. हालांकि तेजस्वी यादव इसके लिए लगातार कोशिशें कर रहे हैं. वे सर्वसमाज के नेता के तौर पर अपनी छवि प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे वे सभी समुदाय के लोगों के वोट हासिल कर सकें.
लालू यादव की गैरमौजूदगी
लालू यादव की गैरमौजूदगी तेजस्वी यादव के लिए एक नुकसान की तरह है. बेशक लालू यादव राजनीति में उनसे बड़े खिलाड़ी हैं और बिहार को बेहतर तरीके से समझते हैं. लालू यादव बिहार के सियासत के बड़े चेहरे हैं, वहीं तेजस्वी यादव को राजनीति का उतना अनुभव नहीं है. पिता की गैरमौजूदगी में चुनावी मैदान में उतरना उनके लिए बड़ा चैलेंज है.
मुख्यमंत्री के तौर पर सहयोगी पार्टियों का समर्थन नहीं
तेजस्वी यादव आरजेडी के उत्तराधिकारी हैं, आरजेडी ने उन्हें सीएम का चेहरा बना दिया है लेकिन क्या महागठबंधन की अन्य पार्टियां भी यही चाहती हैं? कई बड़े नेताओं को तेजस्वी यादव का नेतृत्व स्वीकार नहीं है. इसी कारण जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन से अलग हो गए. दोनो नेताओं ने सीधे तौर पर तेजस्वी यादव पर हमला बोला. कांग्रेस ने भी उन्हें अभी तक अपना नेता नहीं माना है ऐसे में तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.