'चमकी बुखार' से बिहार में मचा हाहाकार, आज मुजफ्फरपुर का दौरा करेंगे सीएम नीतीश कुमार
नीतीश कुमार (Photo Credits: PTI)

बिहार (Bihar) में उमस भरी गर्मी के बीच मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) और इसके आसपास के क्षेत्रों में बच्चों पर कहर बनकर टूटने वाली बीमारी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी 'चमकी बुखार' से पीड़ित बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. एनआईए की खबर के मुताबिक मुजफ्फर में 107, श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज में 88 और केजरीवाल अस्पताल में 19 मासूमों की मौत हो चुकी है. इसी दरम्यान सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आज मंगलवार को स्थिति का जायजा लेने और समीक्षा करने जा रहे हैं.

हालात इतने भयावह हैं कि रविवार को जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन अस्पताल हालत का जायजा लेने पहुंचे तो उनके सामने दो बच्चियों की मौत हो गई. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों के परिवार को 4 लाख रुपए सहायता राशि देने की घोषणा की है. इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वास्थ्य विभाग, जिला प्राशसन और डॉक्टरों को इसबीमारी से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है.

बिहार में चमकी बुखार का कहर लगातार जारी है. डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी का प्रकोप उत्तरी बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी और वैशाली में ज्यादा है. अस्पताल में आनेवाले अधिकांश पीड़ित बच्चे इन जिलों से हैं.

बच्चों को चपेट में लेती है यह बीमारी

बता दें कि पिछले दो दशकों से यह बीमारी मुजफ्फरपुर सहित राज्य के कई इलाकों में होती है, जिसके कारण अब तक कई बच्चे असमय काल के गाल में समा चुके हैं. परंतु अब तक सरकार इस बीमारी से लड़ने के कारगर उपाय नहीं ढूढ़ पाई है. कई चिकित्सक इस बीमारी को 'एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम' बताते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक इस बुखार से पीड़ित और मरने वाले सभी बच्चों की उम्र 5 से 10 साल के बीच की है.

चमकी बुखार के लक्षण

इस बीमारी के शिकार बच्चों में कुछ इस तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं.

तेज बुखार और शरीर में ऐंठन.

बेहोशी की हालत.

चिड़चिड़ेपन की शिकायत.

भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना.

दिमाग का असंतुलित होना.

मांसपेशियों में कमजोरी.

बोलने व सुनने में परेशानी.

पैरालाइज हो जाना.

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी एईएस और जापानी इंसेफलाइटिस यानी जेई को उत्तरी बिहार में चमकी बुखार के नाम से जाना जाता है. अगर समय रहते इसके लक्षणों को पहचानकर इलाज न कराया गया तो यह बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है.