PM Modi के कार्यकाल के 7 साल, जानें कैसा रहा अर्थव्यवस्था का हाल
पीएम मोदी (Photo Credits: PTI)

आज 17 सितंबर है. यही वो तारीख है जो देश के जननायक, राष्ट्रनायक और भारतीय राजनीति के दिगदर्शक व हमारे राष्ट्र पुरुष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के रूप में जानी जाती है. गौरतलब हो अपने निस्वार्थ भाव से राष्ट्र सेवा में जुटे पीएम मोदी ‘सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास’ की भावना लेकर आगे बढ़ते हुए सबके प्रयास से नया ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने की अग्रसर हैं. पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान एक भी दिन की छुट्टी नहीं ली. पीएम मोदी के जन्मदिवस के अवसर पर आज हम जानेंगे कि बीते सात साल में उनकी विकास यात्रा के दौरान देश की अर्थव्यवस्था की क्या रफ्तार रही और आर्थिक मोर्चे पर देश ने कितनी तरक्की की. PM Modi's 71st Birthday: शिवसेना ने पीएम मोदी को दी जन्मदिन की बधाई, कहा- देश में उनके कद का कोई और नेता नहीं

सुधार के सात साल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में ‘अच्छे दिन’ के वादे के जरिए सत्ता पर काबिज हुए थे और साल 2020 में उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की उपलब्धियों पर गौर करें तो देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में देश का सम्मान बढ़ा है. जबकि इस बीच कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर से उपजे हालातों से निपटने की केंद्र सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती भी खड़ी हो गई थी. इसके बावजूद सरकार में एक के बाद एक हुए ऐतिहासिक निर्णयों से बड़े बदलाव हुए, जिन्होंने देश की विकास यात्रा को नई गति दी.

विकास की रफ्तार

7 साल के दौरान केंद्र सरकार का सबसे साहसिक आर्थिक कदम रहा 10 सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय. दरअसल, इससे वर्कफोर्स का सही इस्तेमाल हो पाया और खर्चों में भी कटौती हुई.  इन बदलावों के बाद मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता आई और भारतीय कंपनियां मजबूत होकर विस्तार के लिए तैयार हो गई. फिलहाल, भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की राह पर लौट आई है. आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि 1991 से 2021 के बीच देश के जीडीपी में कुल 10 गुना बढ़ोतरी हुई है और महंगाई दर 6 फीसदी के आसपास स्थिर हो गई है. वहीं देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 76 गुना की बढ़ोतरी हुई है. साल 2000 से 2020 के बीच शेयर बाजार में लिस्टेड भारतीय कंपनियों के मार्केट कैप में कुल 11.5 गुना की बढ़ोतरी हुई. इस दौरान हमारे बंदरगाहों पर कंटेनरों का ट्रैफिक भी बढ़ा है. भारत की प्रति व्यक्ति आय में पहले से अधिक बढ़ोतरी हुई है. यानि सारे मानकों पर देश ने तरक्की की.

घरेलू रिफॉर्म

घरेलू रिफॉर्म की बात करें तो केंद्र सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ को लागू कर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (एनएफएसए) के अंतर्गत कवर किए गए सभी लाभार्थियों तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ सहयोग से राष्ट्रव्यापी राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी के जरिए पीडीएस और खाद्य सुरक्षा अधिकारों की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की गई. इस पहल में तकरीबन 69 करोड़ लाभार्थियों (एनएफएसए आबादी का करीब 86 फीसदी) को कवर करने वाले 32 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के एकल समूह में सक्षम किया गया. ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड सिस्टम’ सुधार को केंद्र सरकार का सबसे अहम कदम माना गया है. वहीं वर्तमान की केंद्र सरकार ने LPG के घरेलू उपभोक्ताओं को सब्सिडी हस्तांतरण का महत्वपूर्ण कार्य किया. बता दें अंतर्राष्ट्रीय बाजार मूल्य के आधार पर एलपीजी की कीमत निकाली जाती है. पहल (डीबीटीएल) के तहत उपभोक्ताओं को खाना पकाने के लिए एलपीजी की कीमत पर भारत सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है. ‘पहल’ से जुड़े उपभोक्ताओं को जो सब्सिडी दी जाती है वह बाजार निर्धारित मूल्य और सब्सिडी प्राप्त या रियायती मूल्य के अंतर के बराबर होती है.

साल 2020 के आंकड़ों के मुताबिक 27.76 करोड़ से भी अधिक कनेक्शन के साथ राष्‍ट्रीय एलपीजी कवरेज लगभग 97 प्रतिशत है. अत: लगभग 27.76 करोड़ उपभोक्ताओं में से तकरीबन 26.12 करोड़ उपभोक्ताओं के मामले में मूल्य वृद्धि को सरकार द्वारा सब्सिडी में बढ़ोतरी के माध्‍यम से वहन किया जाता है. जनवरी 2020 में 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर के मामले में घरेलू उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी 153.86 रुपए से बढ़ाकर 291.48 रुपए प्रति सिलेंडर कर दी गई थी. वहीं, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) से जुड़े उपभोक्ताओं के मामले में सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी 174.86 रुपए से बढ़ाकर 312.48 रुपए प्रति सिलेंडर कर दी गई थी. बताना चाहेंगे कि गैस के भाव में मूल्य वृद्धि का ज्यादातर भार सरकार द्वारा वहन किया जाता है, जिसके तहत सब्सिडी पाने वाले ग्राहकों एवं पीएमयूवाई से जुड़े उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी बढ़ा दी जाती है.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा

सरकार के कदमों से देश में एफडीआई का प्रवाह निरंतर बढ़ा है.  अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच भारत में 72.12 अरब डॉलर का एफडीआई आया. यह वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना (62.72 अरब डॉलर) में 15 फीसदी ज्यादा एफडीआई था. यह किसी भी वित्तीय वर्ष के पहले 10 महीने में आया सबसे अधिक एफडीआई रहा. रुझानों के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 (54.18 अरब डॉलर) के पहले 10 महीने में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 28% बढ़ गया है.  वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने में एफडीआई इक्विटी के जरिए निवेश करने वाले देशों में 30.28 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ सिंगापुर सबसे अव्वल रहा. इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (24.28) और यूएई (7.31%) का स्थान है. वही जनवरी 2021 के दौरान कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 29.09 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ जापान सबसे आगे रहा. इसके बाद सिंगापुर (25.46%) और यू.एस.ए. (12.06%) का स्थान रहा. वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने में 45.81 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर क्षेत्र से सबसे ज्यादा एफडीआई इक्विटी प्रवाह हुआ है.  इसके बाद निर्माण (इंफ्रास्ट्रक्चर) गतिविधियों (13.37%) और सेवा क्षेत्र (7.80%) में एफडीआई आया. रूझान के अनुसार अकेले जनवरी 2021 में 21.80 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ कंसल्टेंसी सेवाएं कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में सबसे ज्यादा एफडीआई आया. इसके बाद कंप्यूटर और हार्डवेयर (15.96%) और सेवा क्षेत्र (13.64%) की हिस्सेदारी रही. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निम्नलिखित रुझानों से साफ है कि भारत, वैश्विक निवेशकों के लिए निवेश का एक प्रमुख स्थान बन गया है.

स्टार्टअप

हमारे स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत को दुनिया का इनोवेशन एंड इन्वेंशन हब बनाने की क्षमता है.  इस दिशा में नेशनल स्टार्टअप एडवाइजरी काउंसिल एसी भारत में नए स्टार्टअप उद्यमियों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता तैयार करने के लिए अथक प्रयास कर रही है. इसी के साथ भारत को स्टार्टअप की राजधानी बना जाएगा. जी हां, केंद्र सरकार का उद्देश्य ‘स्टार्टअप इंडिया’ को राष्ट्रीय भागीदारी और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बनाना है. इसी के साथ 21 यूनिकॉर्न पिछले 6 महीनों से सभी को बड़े सपने देखने और बड़ा हासिल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लगभग 60 यूनिकॉर्न के साथ, भारत के पास पूरी दुनिया में सबसे बड़ा स्टार्टअप है. स्कूल अब कम उम्र में स्टार्टअप विचारों के बीज बोएंगे. आज के युवा कल के रोजगार सृजनकर्ता और इनोवेशन के लिए चौथी औद्योगिक क्रांति के नेता साबित होंगे. पूरे भारत में विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में नए स्टार्टअप उभरें.  स्टार्टअप, रोजगार सृजन को बढ़ावा देगा और अगड़ों एवं पिछड़ों के संबंधों को मजबूत करेगा.

रोजगार

पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जून 2021 में आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) के तहत लाभार्थियों के पंजीकरण की अंतिम तिथि को नौ महीने यानी 30 जून, 2021 से 31 मार्च, 2022 तक बढ़ाने को मंजूरी दी. इस विस्तार के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में 71.8 लाख रोजगार पैदा होंगे, जबकि पहले यह आकलन 58.5 लाख रोजगार का था. उल्लेखनीय है कि 18 जून, 2021 तक एबीआरवाई के तहत 79,557 प्रतिष्ठानों के जरिए 21.42 लाख लाभार्थियों को 902 करोड़ रुपए के बराबर के लाभ प्रदान किए गए. एबीआरवाई के तहत ईपीएफओ में पंजीकृत प्रतिष्ठान और नए कामगार, जिनकी मासिक आय 15,000 रुपए से कम है, उन्हें फायदा पहुंचेगा. आत्मनिर्भर भारत 3.0 के तहत अर्थव्यवस्था में तेजी लाने और कोविड के बाद आर्थिक विकास की गति के दौरान रोजगार पैदा करने के लिए एबीआरवाई की घोषणा की गई थी. यह योजना देश की अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी के असर को कम करेगी और कम आय वाले मजदूरों की मुश्किलें दूर करेगी.

इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग

देश में इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग की यदि बात की जाए तो बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने का कार्य तीव्रता से किया जा रहा है. हाल ही में सेंट्रल विस्टा ने केजी मार्ग और अफ्रीका एवेन्यू में दो आधुनिक रक्षा कार्यालय परिसरों का निर्माण किया. ये डिफेंस ऑफिस, राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े हर काम को प्रभावी रूप से चलाने में बहुत मदद करेंगे. राजधानी में आधुनिक डिफेंस एन्क्लेव के निर्माण की तरफ ये बड़ा और महत्‍वपूर्ण स्टेप है. दोनों परिसरों में हमारे जवानों और कर्मचारियों के लिए हर जरूरी सुविधा दी गई है. पीएम मोदी ने इन रक्षा कार्यालय परिसरों के उद्घाटन के अवसर पर कहा था कि “आज कंस्ट्रक्शन में जो तेजी दिखाई दे रही है, उसमें नई कंस्ट्रक्शन टेक्नॉलॉजी की भी बड़ी भूमिका है. ” बताना चाहेंगे कि बीते सात साल में पीएम मोदी के कार्यकाल में इस दिशा में भी काफी सुधार हुआ है. आज दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के अन्य शहरों में भी स्मार्ट सुविधाएं विकसित करने, गरीबों को पक्के घर देने के लिए आधुनिक कंस्ट्रक्शन टेक्नॉलॉजी पर फोकस किया जा रहा है. देश के 6 शहरों में चल रहा लाइट हाउस प्रोजेक्ट इस दिशा में एक बहुत बड़ा प्रयोग है. इस सेक्टर में नए स्टार्टअप को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिस स्पीड और जिस स्केल पर हमें अपने अर्बन सेंटर्स को ट्रांसफॉर्म करना है, वो नई टेक्नॉलॉजी के व्यापक उपयोग से ही संभव है.

श्रम कानून सुधार

केंद्र सरकार के कार्यकाल में सही मायनों में श्रम सुधार को लेकर कार्य किए गए। 21वीं सदी में आगे चलकर हम देश के भावी नेताओं को मजबूती और भरोसे के साथ सुधारों को गले लगाते हुए देखेंगे.  यह पीएम मोदी की बनिस्बत ही संभव हो सकेगा. भूमि, श्रम और कंप्लायंस के साथ ऐसे सुधारों की लिस्ट बेहद लंबी है. यदि इन सुधारों के साथ लक्ष्यों की प्राप्ति होती है तो इस सदी के मध्य तक देश की प्रति व्यक्ति आय को 20,000 डॉलर तक ले जाने की पहल शुरू होगी. अभी तक देश में जो पुराने सुधार हुए थे, उनका फायदा मिल चुका है और आज उन्हें एक प्रस्थान बिंदु माना जाना चाहिए.  ये पुराने सुधार हमें नए आर्थिक लक्ष्यों तक नहीं ले जा पाएंगे. इसके लिए नई सोच, नए दृष्टिकोण और नए उपायों की अवश्य ही जरूरत पड़ने वाली है और इस बात को वर्तमान की मोदी सरकार बखूबी समझती है. हालांकि, संविधान, कानूनी तौर पर और प्रशासनिक स्तर पर इनमें से ज्यादा सुधार राज्य सरकारों को स्वयं करने हैं. उदाहरण के लिए, संसद श्रम कानून बनाती है, लेकिन उसके लिए मसौदा राज्यों की विधानसभा को तैयार करना होता है. कई राज्य ऐसी पहल कर रहे हैं. इस सिलसिले में मध्य प्रदेश का जिक्र किया जा सकता है, जिसने ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ यानी सुगम कारोबार के लिए नियमों में बदलाव किया है.

स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च

वैश्विक महामारी को देखते हुए 2021-22 के बजट में भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया. कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य और देखभाल का क्षेत्र केन्द्र सरकार की विशेष प्राथमिकता में रहा. इस क्षेत्र के लिए बीते वर्ष के 94,452 करोड़ रुपए की अपेक्षा 2021-22 के बजट अनुमान में 2,23,846 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई. इसी के साथ इस क्षेत्र में सरकार द्वारा कुल 137 प्रतिशत की वृद्धि की गई. मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली के महत्व को रेखांकित करते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार विकास के लिए इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण स्तंभ बताते हुए केन्द्र प्रायोजित नई योजना, ‘प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ योजना’ शुरू किए जाने की बात कही गई. साथ ही इसके लिए 6 वर्षों में 64,180 करोड़ रुपए के परिव्यय की योजना बनाए जाने की भी बात कही गई. इन सबके अलावा केंद्र सरकार ने कोरोना काल में देश के कोने-कोने में ऑक्सीजन सप्लाई किए जाने से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े अन्य उपकरणों की आपूर्ति की. इनके अलावा केंद्र सरकार के प्रयासों के जरिए ही कोरोना संकट में विदेश से भारत को काफी मदद मिली.

दिवाला और दिवालियापन संहिता

पीएम नरेंद्र मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने. तब सुधारों को जारी रखने को लेकर कोई उलझन नहीं रह गई थी, उलटे इस पर भरोसा काफी बढ़ चुका था. कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी सुधारों को आगे ले गए और अभी तक उन्होंने इन्हें जारी रखा है. 2014 में पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री जन धन योजना और 2016 में इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड यानी दिवाला कानून जैसे सुधार लागू किए.  इसके साथ वह जोखिम भरे सुधारों को भी आगे बढ़ाने में सफल रहे. उन्होंने 2016 में नोटबंदी और 2017 में गुड्स और सर्विसेज टैक्स लागू किया. यह भी पढ़े:एनसीएलएटी के अध्यक्ष के साथ दिहाड़ी मजदूर से भी बुरा बर्ताव किया गया: पी चिदंबरम

एक देश एक टैक्स से जीएसटी

भारत में नया गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) का मामला लंबे समय से अटका हुआ था. जी हां, जीएसटी देश की आजादी के बाद से सबसे पेचीदा आर्थिक कानून था. मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तीन साल बाद संसद से जीएसटी को पास कराया और यह देश में एक जुलाई 2017 से यह लागू हो गया. देश में कर सुधार की दिशा में यह सबसे बड़ा कदम माना गया. जीएसटी लागू करने का मकसद एक देश-एक कर (वन नेशन, वन टैक्स) प्रणाली है. जीएसटी लागू होने के बाद उत्पाद की कीमत हर राज्य में एक ही हो गई है और राज्य में एक ही हो गई है और राज्यों को उनके हिस्से का टैक्स केंद्र सरकार देती है.

कृषि क्षेत्र में सुधार

मई 2019 से शुरू हुए पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में उन्होंने ऐसे आर्थिक सुधारों का ऐलान किया, जिसके लिए बहुत साहस और आत्मविश्वास की जरूरत थी. इनमें से कृषि क्षेत्र के लिए तीन कानून वैसे ही हैं, जैसे 1991 में हुए सुधार. नरेंद्र मोदी ने कानूनी रास्तों यानी विधेयक लाकर या अधिसूचना के रास्ते सुधारों को तो जारी रखा ही, रिफॉर्म्स को एक नैतिक आयाम भी दिया. ये हैं- “कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’’ तथा “कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020’’. इनके माध्यम से किसानों को कानूनी बंधनों से आजादी मिली, वहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बरकरार रखा गया तथा राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चल रही है. इन विधेयकों से कृषि क्षेत्र में खेती-किसानी में निजी निवेश से होने से तेज विकास हुआ है तथा रोजगार के अवसर बढ़े हैं। अब किसानों को अपनी फसल का उचित दाम मिल रहा है.  वहीं बहुत से किसानों की फसल अब खेतों में ही बिक रही है, जिससे कि उनकी फसल खराब होने से तो बच ही रही है साथ ही फसल को मंडी तक पहुंचाने की सिरदर्दी और खरीदार तलाशने की मशक्कत नहीं करनी पड़ रही.