शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के छह कांग्रेस विधायकों को अंतरिम राहत देते हुए उनकी अयोग्यता पर रोक लगा दी. ये विधायक राज्य सरकार द्वारा मुख्य संसदीय सचिव (Chief Parliamentary Secretaries) नियुक्त किए गए थे, जिनकी नियुक्ति को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अवैध ठहराया था.
क्या है मामला?
हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2006 के एक कानून के तहत इन विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था. हालांकि, हाईकोर्ट ने इस कानून को रद्द करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 164(1-A) का उल्लंघन बताया. यह अनुच्छेद मंत्रिमंडल के आकार पर प्रतिबंध लगाता है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद इन विधायकों को अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता था.
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
इस मामले को हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए छह विधायकों को राहत दी. अदालत ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 के दूसरे सप्ताह में होगी.
कानूनी पक्ष
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि मुख्य संसदीय सचिवों का पद 'मंत्री' के समान है और इसे 'लाभ का पद' माना जा सकता है. इसके चलते यह नियुक्तियां 1971 के हिमाचल प्रदेश विधायी सदस्य (अयोग्यता से हटाना) अधिनियम का उल्लंघन करती हैं.
कौन-कौन से वकील हुए पेश?
राज्य सरकार की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी
विधायकों की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह, मुकुल रोहतगी
बीजेपी विधायकों की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुश दास सूद
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले के बाद इन छह कांग्रेस विधायकों को राहत मिली है, लेकिन यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. जनवरी 2025 में मामले की सुनवाई से यह तय होगा कि हिमाचल में राजनीतिक समीकरण क्या मोड़ लेते हैं.