कश्मीर मुद्दे को लेकर 1994 में भी पाकिस्तान गया था संयुक्त राष्ट्र, भारत ने ऐसे दी थी करारी शिकस्त
इमरान खान (Photo Credits: PTI)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाए जाने के ख़िलाफ़ पाकिस्तान (Pakistan) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का दरवाजा खटखटाया है. दरअसल, चीन (China) के आग्रह पर यूएनएससी राजी हुआ है. ऐसा बहुत कम हुआ है जब सुरक्षा परिषद ने कश्मीर पर चर्चा के लिए हामी भरी हो. इससे पहले इस पर सुरक्षा परिषद की पूर्ण बैठक 1965 में हुई थी.

यूएनएससी आज बंद कमरे में एक बैठक करेगी. साल 1994 में पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में इस्लामी देशों समूह (ओआईसी) के जरिए कश्मीर को लेकर प्रस्ताव रखा था. लेकिन भारत की बेहतरीन कूटनीति के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई थी. तब भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल की कमान दी.

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भारत की कुशल कूटनीति की बदौलत सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्य देशों ने पाकिस्तान का समर्थन करने से मना कर दिया था. जिसका नतीजा रहा कि यूएनएचआरसी में प्रस्ताव पर मतदान वाले दिन जिन देशों के पाकिस्तान के समर्थन में रहने की उम्मीद थी उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए. जिस वजह से पाकिस्तान को अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा.

पाकिस्तान का आरोप था कि भारत कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन कर रहा है. हालांकि अगर पाकिस्तान का प्रस्ताव यूएनएचआरसी में पास हो जाता तो भारत को कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता था.

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भारतीय संसद ने 1994 में एक संकल्प दोहराया था कि गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किया गया भारतीय क्षेत्र हैं. इसके अलावा 2017 में ब्रिटिश संसद ने भी यह कहते हुए एक प्रस्ताव लाया था कि गिलगित-बाल्टिस्तान कानूनी रूप से जम्मू और कश्मीर की रियासत होने के नाते भारत का हिस्सा है. गिलगित-बाल्टिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर का बड़ा हिस्सा है. सन् 1947 में जम्मू-कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर रियासत का विलय भारत में किया था.