
मोदी सरकार ने संसद के बजट सत्र के आखिरी हफ्ते में वक्फ बिल को पारित कराने की ठान ली है. पहले दिन लोकसभा में बिल को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में जम कर बहस हुई.बुधवार दो अप्रैल को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) बिल पर बहस के दौरान सरकार की लगातार कोशिश रही कि वक्फ बोर्डों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के लिए बिल को जरूरी साबित किया जाए. वहीं विपक्ष मुख्य रूप से इस बात पर विरोध करता रहा कि इस बिल के जरिए सरकार मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, जिसकी संविधान इजाजत नहीं देता.
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बिल को पेश करते हुए यह घोषणा की कि बिल का नाम बदल दिया गया है. अब उसे यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (उम्मीद) बिल कहा जाएगा.
उन्होंने गिनाया कि इससे पहले भी कई बार बिल में बदलाव लाए जा चुके हैं और उनमें से कई बदलाव अस्वीकार्य थे. उन्होंने कहा कि ऐसा ही एक प्रावधान वक्फ अधिनियम की धारा 108 में लाया गया था जिसके तहत यह कह दिया गया कि वक्फ बोर्ड देश के किसी भी कानून को लांघ सकता है.
उन्होंने यूपीए सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 2013 में सरकार ने 123 सम्पत्तियों को विमुक्त कर उन्हें वक्फ बोर्ड को सौंप दिया था. रिजिजू ने कहा कि उसके बाद कई सरकारी इमारतों पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जाने लगा, यहां तक कि संसद भवन पर भी दावा किया जाने लगा.
यूपीए सरकार की आलोचना
रिजिजू ने इस आरोप से इंकार किया कि सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि या संस्थान में हस्तक्षेप कर रही है. उनका कहना है कि यह सिर्फ संपत्तियों के प्रबंधन का मुद्दा है. उन्होंने कई अदालतों के पुराने फैसले भी सुनाए जिनमें कहा गया है कि वक्फ बोर्ड मुसलमानों की कोई प्रतिनिधि संस्था नहीं है, बल्कि एक वैधानिक संस्था है.
क्यों हो रहा है वक्फ बिल का विरोध
रिजिजू ने यह आंकड़ा भी दिया कि वक्फ की सम्पत्तियों की कीमत आज सिर्फ 166 करोड़ रुपये है जबकि सच्चर समिति ने 2006 में कहा था कि इन संपत्तियों की कीमत 12,000 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी, यानी सम्पत्तियों का कुप्रबंधन होता आया है.
विपक्ष की तरफ से बोलते हुए सदन में कांग्रेस के नेता गौरव गोगोई ने रिजिजू की कई बातों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि 2013 वाले संशोधन के तहत उच्च न्यायालयों के पास हमेशा से वक्फ विवादों में हस्तक्षेप करने की ताकत थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि असल में इस बिल के जरिए सरकार अल्पसंख्यकों को बदनाम करना और भारतीय समाज को बांटना चाहती है.
उन्होंने कहा कि नए बिल के अनुसार वक्फ करने के लिए व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि वो पिछले पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहा है. गोगोई ने पूछा कि क्या यह सरकार ऐसे सवाल किसी और समुदाय से भी पूछती है.
सरकार पर ध्रुवीकरण की कोशिश का आरोप
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार इस बिल को अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए लेकर आई है.
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि धार्मिक कर्तव्यों को कानून बनाने की प्रक्रिया का आधार नहीं बनाना चाहिए. बनर्जी के मुताबिक कोई भी अपने धार्मिक कर्तव्यों को जीवन में कभी भी निभा सकता है, मरते समय भी. उन्होंने आरोप लगाया कि बिल को हिंदुओं और मुसलमानों का ध्रुवीकरण करने के लिए लाया गया है.
टीडीपी ने बिल का समर्थन किया और पार्टी के सांसद कृष्ण प्रसाद तेनत्ति ने कहा कि वक्फ संपत्तियों का कुप्रबंधन को रोकना जरूरी है.
क्या होता है वक्फ
शिवसेना (उद्धव) की तरफ से बिल की आलोचना करते हुए सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि वक्फ बोर्ड में चुनाव कराने की जगह सदस्यों को मनोनीत करने से उसमें मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटेगा. उन्होंने आरोप लगाया कि बाद में यही प्रकिया हिंदू मंदिरों, ईसाई गिरजाघरों और सिख ट्रस्टों के बोर्ड पर भी लागू की जा सकती है.
शिवसेना (शिंदे) की तरफ से बिल का समर्थन करते हुए सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा कि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों की तरक्की है. उन्होंने बिल का विरोध करने के लिए शिवसेना (उद्धव) की आलोचना भी की.
बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार ने इस कानून को इसलिए बदला है ताकि गरीब मुसलमानों का भला हो सके. लोक जनशक्ति पार्टी ने भी बिल का समर्थन किया, जबकि आरजेडी और वाईएसआरसीपी ने बिल का विरोध किया. अनुमान है कि सरकार के पास इस बिल को पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या बल है.