
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी और नाबालिग बेटियों को घर से बाहर निकालने के मामले में कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने इस अमानवीय कृत्य पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इंसान और जानवर में क्या फर्क है. जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की डिविजन बेंच ने इस मामले में बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "हम इस तरह के निर्दयी व्यक्ति को कोर्ट में आने की अनुमति नहीं दे सकते."
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अदालत ने व्यक्ति के धार्मिक आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा, "दिन भर सरस्वती पूजा और लक्ष्मी पूजा करते हैं, और फिर इस तरह का अमानवीय कृत्य करते हैं. यह कैसे संभव है कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी और बेटियों का ख्याल न रखे, जो पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं?"
बेटियों और पत्नी का क्या दोष?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, "आपकी नाबालिग बेटियों का इस दुनिया में आने का क्या दोष है? आप इंसान कहलाने के लायक नहीं हैं, अगर आप उनकी देखभाल नहीं कर सकते. इंसान और जानवर में क्या फर्क बचा, अगर आप अपनी बेटियों के भविष्य की चिंता नहीं करते?"
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह तब तक इस व्यक्ति की कोई याचिका स्वीकार नहीं करेगी, जब तक वह अपनी बेटियों और पत्नी के लिए उचित देखभाल और भविष्य के लिए कुछ आर्थिक सहायता प्रदान करने का वादा नहीं करता.
शीर्ष अदालत ने व्यक्ति के वकील से कहा "आप इस व्यक्ति से कहिए कि वह अपनी कृषि भूमि का एक हिस्सा, या फिर एक फिक्स्ड डिपॉजिट, या बेटियों और पत्नी के नाम पर रखरखाव की रकम तय करे. तभी हम इस मामले में कोई आदेश देने पर विचार करेंगे," .
क्या है पूरा मामला?
झारखंड के एक व्यक्ति पर अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और उसे घर से बाहर निकालने का आरोप है. ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया था. इसके अलावा, उस पर पत्नी को धोखे से ऑपरेशन के जरिए गर्भाशय (Uterus) निकलवाने और बाद में दूसरी शादी करने का भी आरोप है.
सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति के वकील से कहा कि वह अदालत को यह जानकारी दे कि वह अपनी नाबालिग बेटियों और अलग रह रही पत्नी के भविष्य की देखभाल के लिए कितनी रकम देने को तैयार है.