नई दिल्ली, 4 दिसंबर: शहर में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के अलावा दिल्लीवासियों को बार-बार होने वाली आग की घटनाओं के खतरे का भी सामना करना पड़ता है. हर बार नाराज नागरिक पूछते हैं, दिल्ली में अग्नि सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी सख्त क्यों नहीं हैं? उपहार से लेकर मुंडका, नरेला और अब भागीरथ पैलेस तक शहर में लगातार आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसमें निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं..25 साल पहले दोपहर के 3 बजे दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क में उपहार सिनेमा में फिल्म 'बॉर्डर' की स्क्रीनिंग के दौरान हुई आग की घटना में 59 लोगों की मौत हो गई और 103 लोग घायल हो गए. यह दिल्ली के सबसे भीषण अग्निकांडों में से एक थी. यह भी पढ़ें: Clean Air Survey: यूपी की लखनऊ शहर की हवा सबसे साफ, स्वच्छ वायु सर्वे में मिला पहला स्थान
1997 में हुई उपहार त्रासदी के दो साल बाद पुरानी दिल्ली के लाल कुआं में एक रासायनिक कारखाने में आग लग गई, जिसमें 57 लोग मारे गए. 2011 में नंद नगरी में किन्नरों के एक सामुदायिक समारोह में आग लगने से 14 लोग मारे गए थे और 30 से अधिक घायल हो गए थे. साल 2018 सबसे खराब रहा. उस साल तीन बार आग लगने की घटनाएं हुईं. बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में बिना लाइसेंस पटाखा बनाने वाली फैक्ट्री में जनवरी में आग लगने से 17 मजदूरों की मौत हो गई. अप्रैल में कोहाट एन्क्लेव में आग लगने से दो नाबालिगों सहित एक परिवार के चार सदस्यों की मौत हो गई थी और नवंबर में करोल बाग की एक फैक्ट्री में आग लगने से चार लोगों की मौत हो गई थी और एक घायल हो गया था.
फरवरी 2019 में करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस के एक कमरे में एयर कंडीशनर में शॉर्ट-सर्किट से लगी आग में 17 लोगों की मौत हो गई थी. होटल के पास फायर अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं था. उसी वर्ष दिसंबर में पुरानी दिल्ली की अनाज मंडी में एक पांच मंजिला आवासीय इमारत, जिसके परिसर में कुछ अवैध इकाइयां चल रही थीं, में फंसे 43 मजदूर मारे गए थे. पिछले साल पश्चिमी दिल्ली के उद्योग नगर में एक जूता फैक्ट्री में आग लगने से छह श्रमिकों की मौत हो गई थी.
इस साल की बात करें तो जनवरी से अब तक आग लगने की 10 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं. पूर्वोत्तर दिल्ली के गोकुलपुरी में एक कारखाने में 12 मार्च को आग लग गई. इससे पास की झुग्गियों में भी आग लग गई और तीन नाबालिग और एक गर्भवती महिला सहित सात लोगों की मौत हो गई. मई में मुंडका में लगी आग ने 27 लोगों की जान ले ली थी.
लेकिन लगता है कि इन घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा गया है. शहर में आग की आशंका वाले कई इलाके हैं, जहां रिहायशी इलाकों में फैक्ट्रियां संचालित की जा रही हैं. दिल्ली के कई हिस्सों में इकाइयां अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही हैं. शहर में नेहरू प्लेस का कंप्यूटर मार्केट, करोल बाग की ज्वेलरी शॉप, पहाड़गंज का बजट फ्रेंडली होटल, पंचकुइयां रोड का फर्नीचर मार्केट आदि वेंडरों और भीड़भाड़ वाली सड़कों से इतने भरे हुए हैं कि दमकल और एंबुलेंस जैसे आपातकालीन वाहन यहां तक नहीं पहुंच सकते.
हालांकि न्यायपालिका ने अवैध रूप से चल रही सभी फैक्ट्रियों के खिलाफ नोटिस और कार्रवाई के आदेश जारी किए हैं. हाल ही में पुरानी दिल्ली के भागीरथ पैलेस बाजार की तंग गलियों में एक फैक्ट्री दुर्घटना हुई थी. करीब 150 दुकानें जलकर खाक हो गईं, जबकि भीषण आग लगने के बाद चार इमारतें आंशिक रूप से ढह गईं.
पिछले महीने नरेला में एक बार फिर आग लग गई. जिस फैक्ट्री में 1 नवंबर को आग लगने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 14 घायल हो गए थे. सदर बाजार में एक दिसंबर को करीब 10 वाहनों में आग लग गई थी. 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि दक्षिणी दिल्ली में हौज खास गांव एक टिक-टिक करने वाला टाइम बम है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रेस्तरां मालिकों के संघों को चेतावनी दी थी कि किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के मामले में उन्हें दीवानी और आपराधिक दायित्व से बचने की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि क्षेत्र में आपातकालीन वाहनों के प्रवेश के लिए वस्तुत: कोई जगह नहीं थी.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तरी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि नरेला में एक फैक्ट्री में आग लगने से मरने वाले छह लोगों और घायल हुए 14 लोगों के परिवारों को दो सप्ताह के भीतर मुआवजा दिया जाए.