प्रयागराज (यूपी), 22 सितंबर: नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) , जिन्हें प्यार से 'बुधऊ' के नाम से जाना जाता था, का जन्म उत्तर प्रदेश के फूलपुर जिले के चटौना गांव में हुआ था. उनके पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिय सदस्य थे. उनके एक रिश्तेदार का कहना है कि उन्हें बचपन में मजाकिया अंदाज में 'बुद्धू' बोला जाता था, जो कि समय के साथ 'बुधऊ' में बदल गया. 'बुधऊ' ने अपने शुरुआती साल गिरदकोट गांव में अपने नाना के यहां बिताए. वह अक्सर स्थानीय संतों और महंतों के साथ घुलमिल जाते थे. यह भी पढ़े: महंत नरेंद्र गिरि की भू-समाधि आज, भीड़ को देखते हुए प्रयागराज में कक्षा 1 से 12 तक के सभी स्कूल और कोचिंग सेंटर बंद
एक दिन, वह घर से भाग गए और उन्हें वापस लाने के लिए उनके परिवार के सदस्यों की ओर से बहुत प्रयास किया गया. परिवार ने उन्हें हाई स्कूल पूरा करने के लिए मना लिया, जिसकी पढ़ाई उन्होंने पूरी की. बाद में उन्हें एक बैंक में नौकरी मिल गई. जैसे ही उनकी शादी की चर्चा परिवार में होने लगी, तो बुधऊ जो कि अब नरेंद्र के नाम से जाने जाते थे, फिर से घर से भाग गए और फिर वापस नहीं आए. उनके मामा, महेश सिंह ने याद करते हुए कहा, "एक दिन हमारे पास एक फोन आया और फोन करने वाले ने कहा, 'मैं महंत नरेंद्र गिरी बोल रहा हूं. ' फिर हमने महसूस किया कि हमारा बुधऊ अब एक महंत बन चुका है. "एक महंत के रूप में, नरेंद्र गिरि केवल एक बार अपने घर आए और परिवार ने उन्हें एक संत के रूप में सम्मान दिया. उनके चाचा ने कहा कि संत बनने के बाद नरेंद्र गिरि ने परिवार से अपने सभी संबंध तोड़ लिए.
महेश सिंह कहा, "वह अक्सर पास के एक कॉलेज में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होते थे, लेकिन उन्होंने कभी घर जाने की जहमत नहीं उठाई. उन्होंने कभी भी अपने परिवार के सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश नहीं की और वह अत्यधिक आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति थे. निश्चित रूप से वह आत्महत्या करने वाले व्यक्ति तो नहीं थे. "2016 में नरेंद्र गिरि को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का प्रमुख नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने काफी प्रतिष्ठा पाई. संतों के साथ-साथ सभी राजनीतिक नेताओं द्वारा उनका सम्मान किया जाता था. अपने शिष्य आनंद गिरि के साथ उनका विवाद ही एकमात्र विवाद था, जिसने उनकी अन्यथा त्रुटिहीन छवि को प्रभावित किया. सूत्रों के मुताबिक, विवाद कुछ जमीन सौदों का नतीजा था, जिसके कारण उनके शिष्यों के साथ झड़पें हुईं. मौद्रिक मुद्दे भी सामने आए हैं, क्योंकि बाघंबरी मठ को सबसे धनी मठों में से एक माना जाता है, जिसके पास अपार संपत्ति है.