मुइवा की छह दशक बाद गांव वापसी: जमीन पर क्या होगा बदलाव?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

एनएससीएन (आई-एम) गुट के प्रमुख टी. मुइवा छह दशकों बाद मणिपुर के उखरूल जिले में अपने पैतृक गांव लौटे हैं. वह और उनका गुट नागालैंड में दशकों तक उग्रवाद का पर्याय रहे हैं. उनका दौरा सवालों के घेरे में हैं.छह दशक बहुत लंबा समय होता है, खासतौर पर राजनीतिक रूप से प्रासंगिक को अप्रासंगिक, लोकप्रिय को अलोकप्रिय बना देने के लिए. लेकिन, आधी सदी से भी ज्यादा वक्त तक अपनी जमीन से दूर रहने के बाद टी. मुइवा जब अपने गांव लौटे तो उन्होंने खूब सत्कार पाया. 91 साल के मुइवा, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम (इसाक-मुइवा) के महासचिव हैं. यह नागा विद्रोहियों के सबसे मजबूत धड़ों में से एक था.

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नागालैंड को 1 दिसंबर 1963 को अलग राज्य का दर्जा मिला था. स्थानीय जनजातियों ने भारत में विलय को कभी मंजूर नहीं किया. यही वजह है कि राज्य में सशस्त्र उग्रवादी आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है.

पूर्वोत्तर का यह अकेला राज्य है, जो अब तक उग्रवाद से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सका है. बीते करीब 28 वर्षों से राज्य में शांति प्रक्रिया की कवायद जारी रहने के बावजूद जमीनी परिस्थिति में खास बदलाव नहीं आया है.

जातीय हिंसा से जूझता मणिपुर

नागालैंड से सटा मणिपुर भी बीते करीब ढाई वर्षों से मैतेई और कुकी नागा समुदाय के बीच जातीय हिंसा का सामना कर रहा है. राज्य में अब भी रह-रहकर हिंसा भड़क उठती है. पूरे राज्य में इन दोनों समुदाय के बीच दरार है.

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इन परिस्थितियों में टी. मुइवा के अपने पैतृक गांव सोमदल के सप्ताह-व्यापी दौरे ने कई आशंकाओं को जन्म दिया है. वह एक दौर में शीर्ष उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के इसाक-मुइवा गुट के संस्थापकों में थे.

आशंका है कि इस दौरे से राज्य में हिंसा और भड़क सकती है. इसके साथ ही नागालैंड में जारी शांति प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं. यह प्रश्न भी पूछा जा रहा है कि क्या मुइवा के दौरे से जमीनी तस्वीर में कोई बदलाव आएगा? नागालैंड में शांति प्रक्रिया कई विरोधाभासों से जूझती रही है. अब एनएससीएन के आईएम गुट भी पहले जैसा ताकतवर नहीं रहा है.

कौन हैं मुइवा?

मुइवा का जन्म साल 1933 में म्यांमार से सटे उखरूल जिले के सोमदल गांव में हुआ था. तब मणिपुर ब्रिटिश अधिकारियों के अधीन था, लेकिन वहां बोधिचंद्र सिंह का राज था. बचपन में अपने पिता के साथ राजधानी इंफाल में मजदूरी करने वाले मुइवा ने उखरुल से स्कूली पढ़ाई पूरी की.

इसके बाद उन्होंने शिलांग के एक कालेज से स्नातक किया और 1964 में नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) में शामिल हो गए. अगले साल ही उन्हें महासचिव चुन लिया गया. उसके बाद वह नागा उग्रवादियों के पहले समूह के साथ सशस्त्र प्रशिक्षण के लिए चीन चले गए और वहां करीब 10 साल तक रहे. इस दौरान वह वहां के शीर्ष नेता माओ के करीबी हो गए थे.

आजादी के करीब आठ दशक बाद किस हाल में है पूर्वोत्तर?

साल 1975 में नागा नेशनल काउंसिल और केंद्र सरकार के बीच शिलांग समझौता हुआ. मुइवा ने उसे खारिज करते हुए अलग नागा राज्य के लिए संघर्ष जारी रखने का एलान किया. इससे नागा संगठन में मतभेद पैदा हो गया.

साल 1980 में इसाक चिशी स्वू के साथ मिलकर उन्होंने एनएससीएन की स्थापना की, लेकिन 1988 में इस संगठन में दो हिस्से हो गए. उसके बाद इसमें से कई अलग गुट बन गए, जो एक-दूसरे को पछाड़ने में जुटे रहे.

शांति प्रक्रिया पर सहमति

धीरे-धीरे मुइवा को एहसास होने लगा कि उनके आंदोलन की राह भटक गई है. उन्होंने केंद्र के साथ शांति प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति दे दी. संगठन का मुइवा गुट शुरू से ही नागालैंड के साथ ही मणिपुर और असम के नागा-बहुल इलाकों को मिलाकर नागालिम या ग्रेटर नागालैंड के गठन की मांग करता रहा है.

शांति प्रक्रिया शुरू होने के तीन बरस बाद, साल 2000 में मुइवा को बैंकॉक एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया. कुछ महीनों बाद जेल से रिहा होने पर शांति प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई. केंद्र ने मणिपुर के नागा-बहुल इलाकों में भी युद्धविराम के विस्तार का फैसला किया.

पहले भी गांव आने की कोशिश की थी

मुइवा ने जून 2001 में भी अपने पैतृक गांव का दौरा करने की कोशिश की थी. मैतेई संगठनों ने इसका भारी हिंसक विरोध किया और विधानसभा भवन को भी आग लगा दी थी. दरअसल, राज्य के कुछ इलाकों को ग्रेटर नागालैंड में शामिल करने की मुइवा की मांग मैतेई संगठनों की नाराजगी की प्रमुख वजह थी.

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साल 2016 में इसाक चिशी की मौत के बाद अब मुइवा ही संगठन के सर्वेसर्वा हैं. जब वह हेलिकॉप्टर से उखरुल पहुंचे, तो मौके हजारों की भीड़ जमा थी. साफ है कि नागा शांति प्रक्रिया के किसी मुकाम पर नहीं पहुंचने के बावजूद इस 91 वर्षीय उग्रवादी नेता की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है.

कहां रह रहे हैं मुइवा?

भारत सरकार के साथ शांति प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही मुइवा बैंकॉक और नीदरलैंड में रहते आए हैं. सुरक्षा के लिहाज से उनके निवास की जगह को सार्वजनिक नहीं किया गया है.

हालांकि, मणिपुर के एक नागा नेता ने बताया कि मणिपुर आने के कुछ दिन पहले से वह दीमापुर में अपने गोपनीय ठिकाने पर रह रहे थे, वहीं से हेलिकॉप्टर से मणिपुर में अपने पैतृक गांव आए.

मणिपुर में सबसे बड़ा नागा संगठन यूनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी), सेनापति जिला मुख्यालय में 29 अक्टूबर को मुइवा के सम्मान में एक स्वागत समारोह आयोजित कर रहा है. संगठन ने इस मौके पर 'गेन्ना,' यानी पारंपरिक अवकाश का एलान किया है.

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इस अवसर पर सम्मान दिखाने के लिए तमाम दुकानें, बाजार और आर्थिक गतिविधियां बंद रहेंगी. संगठन के अध्यक्ष एनजी. लोर्हो ने एक बयान में कहा, "गेन्ना सिर्फ मुइवा के सम्मान नहीं, बल्कि नागा एकता, पहचान और आत्मनिर्णय के प्रतीक के तौर पर भी मनाया जाएगा.

स्वागत समारोह के बाद मुइवा हेलिकॉप्टर से ही दीमापुर जाएंगे. आगे की योजना क्या है, इसका खुलासा नहीं किया गया है.

नागालैंड में उग्रवाद का भविष्य

तमाम प्रमुख संगठन कई हिस्सों में बंट चुके हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नागा संगठनों को इसी बात का संतोष है कि केंद्र सरकार ने उनकी पहचान और अनूठे इतिहास को मान्यता दे दी है. अब अलग राज्य कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है.

क्या पटरी पर लौटेंगे मणिपुर के जमीनी हालात?

मणिपुर की राजधानी इंफाल में वरिष्ठ पत्रकार के. सरोज सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुइवा के इस दौरे को राजनीति की रोशनी में देखना सही नहीं होगा. उन्होंने छह दशकों के लंबे अंतराल के बाद निजी तौर पर घर वापसी की है. राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक बने रहने के लिए वह नागालैंड के लिए अलग झंडे और संविधान की मांग तो उठाते रहेंगे, लेकिन ग्रेटर नागालैंड का मुद्दा अब पृष्ठभूमि में चला गया है."

एक विश्लेषक टी. ज्ञानेश्वर ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए बताया, "इस दौरे से मणिपुर के मैतेई तबके में कुछ आशंकाएं जरूर पैदा हुई हैं, लेकिन वे निराधार हैं. कभी हिंसक तरीके से अलग राज्य की मांग करने वाले एनएससीएन के सुर भी अब नरम हो गए हैं. जहां तक शांति प्रक्रिया का सवाल है, वह कब तक चलेगी, यह कोई नहीं बता सकता."

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कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मुइवा को 91 साल की उम्र में अपनी जन्मभूमि को देखने की कशिश ही यहां खींच लाई है. अब दोबारा शायद ही उनकी वापसी हो.