भ्रष्टाचार (Corruption) पर लगाम लगाने की अपनी कवायद में मोदी सरकार कई कड़े फैसले ले रही है. जिसमें नोटबंदी, जीएसटी समेत उन सरकारी अधिकारीयों पर नजर है जिन्होंने अपने महकमे में नियमों को तोड़ा हो. इसके लिए सरकार ने भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों में संलिप्त अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाने के अभियान चला रहे हैं. लोकसभा ( Lok Sabha) में सरकार ने बताया कि साल 2014 से लेकर अब तक 320 भ्रष्ट अधिकारीयों को निकाला जा चुका का है. पीएम बनने के बाद मोदी की सरकार ने इसी साल से भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारियों को हटाने की मुहिम शुरू की थी.
दरअसल सरकार का जबरन सेवानिवृत्त कराने का फैसला एक तरह अन्य अधिकारीयों के लिए मैसेज होता है. ताकि लोग अपना काम पूरी ईमानदारी से करें. बता दें कि सरकार के इस फैसले में भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों की 10 साल तक घटा दी जाती है. बता दें कि 15 अगस्त पर लालकिले से प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि कर विभाग में कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हैं. ऐसे कई भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ सरकार कर्रवाई कर रही है. यह भी पढ़ें:- कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी के सरकारी आवास पर मारपीट, फाइलें और दस्तावेज चोरी.
जबरन रिटायरमेंट का क्या है नियम
सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) 1972 के नियम 56(J), कार्रवाई फंडामेंटल रूल (FR) 56 (j)(i) के तहत सरकार उस अधिकारी की सेवा समाप्त कर सकती है जिसनें अपने सर्विस का 30 साल पूरा कर लिया हो. उनकी उम्र 50 से 55 साल की उम्र के के बीच होनी चाहिए. दरअसल इसका फायदा यह भी है कि भ्रष्ट कर्मचारियों की जगह युवाओं को मौका दिया जा सकता है.