मुंबई की क्वीन थी जेनाबाई, उसके इशारे पर नाचते थे दाऊद और हाजी मस्तान

आज भी दाऊद का एक फोन आने पर लोग कांपने लगते हैं. लेकिन शायद ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम होगा कि दाऊद इब्राहिम और उसका गॉडफादर हाजी मस्तान दोनों लोग मुंबई में रहने वाली एक महिला डॉन के इशारे पर नाचते थे.

मुंबई धमाकों का आरोपी दाऊद इब्राहिम (Photo Credits Facebook)

मुंबई: मुम्बई धमाकों का आरोपी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम अभी भी भारत समेत पूरी दुनिया के लिए सर दर्द बना हुआ है. आज भी दाऊद का एक फोन आने पर लोग कांपने लगते हैं. लेकिन शायद ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम होगा कि दाऊद इब्राहिम और उसका गॉडफादर हाजी मस्तान दोनों लोग मुंबई में रहने वाली एक महिला डॉन के इशारे पर नाचते थे. उसके आदेश को दोनों लोगों के लिए पत्थर की लकीर होती है. जिसे कभी मना नही करते थे. इस महिला का नाम जैनब हैं आज हम आपको बताएंगे की जैनब कैसे बन गई मुंबई की माफिया क्वीन जेनाबाई दारूवाला.

कौन है जेनाबाई

मुंबई में अंडरवर्ल्ड की रिपोर्टिंग करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक हुसैन जैदी की किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई किताब  के अनुसार जेनाबाई डोंगरी इलाके में रहने वाले मुस्लिम मेमन हलाई परिवार में 1920 जैनब ने जन्म लिया. उसके पिता सवारी ढोने का काम करते थे. घर की हालत ठीक नहीं होने के कारण उसकी शादी 14 साल की उम्र में ही कर दी गई. उस समय आजादी की  लडाई को लेकर आन्दोलन भी चल रहा था. 1947 में देश आजाद हुआ. उस समय उसका शौहर उसे पाकिस्तान चलने के लिए कहा, लेकिन वह मुंबई छोड़ने के लिए राजी ही नही हुई. जिससे नाराज उसका शौहर उसे और उसके 5 बच्चों को मुंबई में छोड़कर पाकिस्तान चला गया .

कैसे बनी जैनब से जेनाबाई दारुवाला

पति के जाने के बाद उसे बच्चों के परवरिश को लेकर दिक्कत आने लगी. उस समय देश को आजादी मिली ही थी. लोगों को खाने के लिए राशन की दुकानों से चावल और गेंहू सस्ते दामों पर मिलते थे. वह  चावल की ब्लैकमार्केटिंग कर लोगों को बेचने लगी. चावल के ब्लैकमार्केटिंग से बहुत पैसे नही मिल पाते थे. इसी बीच उसकी पहचना डोंगरी इलाके मे नकली शराब बनाने वाले कुछ स्मगलरों से हुई. उनके सम्पर्क में आने के बाद उसने इस धंधे में कदम रख दिया. यही से जेनाबाई की जुर्म की दुनिया की शुरुआत हुई.

नकली शराब बेचने के आरोप में हुई थी गिरफ्तार

नकली दारू बेचने के आरोप में डोंगरी पुलिस ने उसे 1962 में गिरफ्तार भी किया था. उसकी  महाराष्ट्र के कुछ बडे़ नेताओं से अच्छी पकड़ होने की वजह से पुलिस ने उसे रिहा कर दिया. वही से वह बन गई मुंबई पुलिस की खबरी, उसके बताने पर पुलिस मुंबई के स्लगलरों के ठिकानों पर छापा मारने लगी. पुलिस का भी काम आसान हो गया. बदले में पुलिस इसे पकड़े जाने माल पर 10 प्रतिशत कमीशन देने लगी.

हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम भी लेने लगे सलाह

मुंबई पुलिस में जेनाबाई की अच्छी पकड़ होने से हाजी मस्तान कभी मुसीबत में पड़ता था तो उससे मदद लेने आता था क्योंकि हाजी मस्तान उसे अपनी बहन मानता था, दाऊद की उस समय उम्र महज 20 साल थी वह देखता था कि हाजी मस्तान मुंबई पुलिस में जेनाबाई की अच्छी पकड होने से  कभी मुसीबत में पडता था.

इसके बाद दाऊद भी उसके घर आने जाने लगा. कभी कोई बड़ा काम करना होता था तो वह काम करने से पहले जेनाबाई से एक बार जरुर सलाह लेता था. दोनों के अंदर उसका खौफ इस कदर था कि यदि वह किसी काम को करने से ना कर देती थी तो हाजी मस्तान हो या फिर दाऊद दोनों नहीं करते.उन दोनों की हिम्मत नही होती थी कि इसकी बात ना माने.

गैंगवार में बेटे की मौत से टूट गई वह

1990 के आस-पास मुंबई का डोंगरी इलाके में ड्रग्स की तस्करी और गैंगवार तेजी से फैला. उसका बड़ा बेटा भी मां के कामों को देखते देखते उसके धंधे में आ गया. एक गैंगवार में उसका बेटा मार दिय़ा गया. बेटे की मौत के बाद वह अंदर से टूट गई. उसने फैसला कर लिया कि अब सारे गलत धंधा बंद करके लोगों की वह सेवा करेंगी .

हाजी मस्तान और दाऊद दोनों ने बनाई दूरिया

बेटे के मौत के बाद उसने हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच अमन को स्थापित करने के लिए एक ग्रुप बनाया था. उस इलाके में कभी झगडा होता था तो वह समझाने के लिए जाती थी. स्मगलिंग का धंधा बंद करने से उसका डोंगरी इलाके में रसूख धीरे -धीरे कम होने लगा.

कभी उसके आदेश पर काम करने वाले हाजी मस्तान ओर दाऊद दोनों उससे दुरी बनाने लगे. जेनाबाई के बाद दोनों डोंगरी इलाके में दबदबा बनाने लगे उसमें कामयाब भी हुए. किताब में बताया गया है कि मुंबई में बम धमाके को लेकर वह दाऊद के ऊपर काफी नाराज थी. 1993 के बाद गिरते सेहत को लेकर वह काफी परेशान रहती थी. बीमारी के परेशान होने के बाद एक दिन उसने दम तोड़ दिया.

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