Mahaparinirvan Diwas 2019: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर सेंट्रल रेलवे चलाएगी 12 स्पेशल लोकल ट्रेनें, देखें पूरी डिटेल

6 दिसंबर 2019 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की 63वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. महापरिनिर्वाण दिवस पर यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ के चलते सेंट्रल रेलवे ने 12 स्पेशल ट्रेनों को चलाने का फैसला किया है. ये टेनें दादर-कुर्ला/ठाणे/कल्याण और कुर्ला-वाशी/ पनवेल के बीच चलाई जाएंगी. इन ट्रेनों को 5 दिसंबर की आधी रात से ही चलाया जाएगा.

लोकल ट्रेन/ प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

Mahaparinirvan Diwas 2019: भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (Dr. BabaSaheb Ambedkar) के महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) पर लोग दूर-दूर से चैत्य भूमि (Chaitya Bhoomi) पहुंचते हैं. ऐसे में मुंबई के लोकल ट्रेनों में यात्रियों की भीड़ अत्यधिक बढ़ जाती है. 6 दिसंबर 2019 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की 63वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. महापरिनिर्वाण दिवस पर यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ के चलते सेंट्रल रेलवे ने 12 स्पेशल ट्रेनों को चलाने का फैसला किया है. ये टेनें दादर-कुर्ला/ठाणे/कल्याण और कुर्ला-वाशी/ पनवेल के बीच चलाई जाएंगी. इन ट्रेनों को 5 दिसंबर की आधी रात से ही चलाया जाएगा.

डॉ. आंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था और उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस कहा जाता है. इस दिन अधिकांश लोग चैत्य भूमि पहुंचते हैं और भारतीय संविधान के जनक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति सम्मान व्यक्ति करते हैं. बता दें कि सेंट्रल रेलवे द्वारा चलाई जानेवाली ये 12 स्पेशल ट्रेनें सभी स्टेशनों पर रुकेंगी.

महापरिनिर्वाण दिवस पर 12 स्पेशल ट्रेनें-

सेंट्रल रेलवे 6 दिसंबर 2019 (5/6 दिसंबर की मध्यरात्रि) को 12 अपनगरीय विशेष ट्रेनें चलाएगी, जिनकी डिटेल्स इस प्रकार है.

मुख्य लाइन- अप स्पेशल ट्रेनें

मुख्य लाइन- डाउन स्पेशल ट्रेनें

हार्बर लाइन- अप स्पेशल ट्रेनें

हार्बर लाइन- डाउन स्पेशल ट्रेनें

गौरतलब है कि रेलवे प्रशासन ने असुविधा से बचने के लिए यात्रियों से उचित टिकट के साथ यात्रा करने की अपील की है. चैत्य भूमि आंबेडकरवादियों और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल है. पहले इस स्थान को दादर चौपाटी के नाम से जाना जाता था, लेकिन 6 दिसंबर 1956 को डॉ. आंबेडकर की मृत्यु के बाद इसी स्थान उनका अंतिम संस्कार किए जाने के बाद से इसे चैत्य भूमि के नाम से जाना जाने लगा.

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