सब्जी बेचते है पिता, मां दूसरों के घरों में बनाती है खाना... अब बेटी बनी जज, जानिए अंकिता नागर की सफलता की संघर्ष भरी कहानी

कहते हैं कभी मेहनत बेकार नहीं जाती, समस्याएं और गरीबी कुछ बाधा जरूर खड़ी कर सकती हैं, मगर स्थाई दीवार नहीं बन सकती. ऐसा ही कुछ हुआ इंदौर (Indore) के सब्जी बेचने वाले की बेटी अंकिता नागर (Ankita Nagar) के साथ जिसने सिविल जज की परीक्षा (Civil Judge Exam) में सफलता हासिल की. अंकिता इंदौर के मूसाखेड़ी की सीताराम पार्क कॉलोनी में रहती है.

अंकिता नागर (Photo Credits: ANI)

इंदौर: कहते हैं कभी मेहनत बेकार नहीं जाती, समस्याएं और गरीबी कुछ बाधा जरूर खड़ी कर सकती हैं, मगर स्थाई दीवार नहीं बन सकती. ऐसा ही कुछ हुआ इंदौर (Indore) के सब्जी बेचने वाले की बेटी अंकिता नागर (Ankita Nagar) के साथ जिसने सिविल जज की परीक्षा (Civil Judge Exam) में सफलता हासिल की. अंकिता इंदौर के मूसाखेड़ी की सीताराम पार्क कॉलोनी में रहती है. उनके पिता अशोक नगर जहां सब्जी बेचने का काम करते हैं तो उनकी मां लक्ष्मी दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करती हैं. संघर्ष के दौर से गुजरते इस परिवार की बेटी अंकिता के लिए जज बनना किसी सपने से कम नहीं था मगर उसने ठान रखा था कि वह जज बनेगी.

अंकिता ने इंदौर के वैष्णव कॉलेज से एलएलबी की और उन्होंने वर्ष 2021 में एलएलएम की परीक्षा पास की, पिता ने उधार लेकर कॉलेज की फीस जमा की और वे सिविल जज की तैयारी में जुट गईं. दो बार उन्होंने परीक्षा दी मगर सफलता हाथ नहीं लगी, इसके बाद भी उनके माता-पिता ने उन्हें आगे तैयारी करने के लिए प्रेरित किया. MP के वाटरमैन शंकरलाल सोनी 26 साल से मुफ्त में बुझा रहे लोगों की प्यास, जानें इस नेक काम की वजह

अंकिता जिस घर में रहती हैं उसके कमरे बहुत छोटे हैं और गर्मी के मौसम में तो आलम यह हो जाता है कि तपिश के कारण घर के भीतर रहने पर पानी की तरह पसीना टपकता है, तो वहीं बारिश का पानी उनके घर के भीतर आसानी से आ जाता है. अंकिता का एक भाई है जिसने मजदूरी करके पैसे जमा किए और एक दिन कूलर लगवा दिया, जिससे उसके लिए पढ़ना आसान हो गया.

अंकिता के पिता अशोक नागर बताते हैं कि उनकी बेटी लंबे समय से संघर्ष कर रही थी, आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ऐसे में अंकिता की पढ़ाई के लिए कई बार पैसे उधार लेना पड़े पर उसकी पढ़ाई नहीं रुकने दी, आखिरकार उसे सफलता मिल गई.

अंकिता ने मीडिया को बताया है कि वह रोज 8 घंटे पढ़ाई करती थी और जब कभी शाम को ठेले पर भीड़ अधिक हो जाती थी तो वह पिता का हाथ बटाने को पहुंच जाती थीं. कई बार तो रात के 10 बजे घर लौट पाती थी और उसके बाद पढ़ाई करती थी. बीते तीन साल से सिविल जज की तैयारी कर रही थी. उसका मानना है कि किसी परीक्षा में नंबर कम ज्यादा आते रहते हैं लेकिन छात्रों को हौसला रखना चाहिए, अगर असफलता मिलती है तो नए सिरे से कोशिश करनी चाहिए.

Share Now

\