जानिए क्या है भारतीय सेना का ऑपरेशन 'स्नो लेपर्ड'
भारतीय सेना दुर्गम बर्फिली पहाड़ियों पर देश की सुरक्षा के लिये डटी हुई है, वहीं दुश्मन की नापाक चाल का भी माकूल जवाब दे रही है. संसद में रक्षा मंत्री ने साफ किया किया जवान किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिये तैयार है.
भारतीय सेना दुर्गम बर्फिली पहाड़ियों पर देश की सुरक्षा के लिये डटी हुई है, वहीं दुश्मन की नापाक चाल का भी माकूल जवाब दे रही है. संसद में रक्षा मंत्री ने साफ किया किया जवान किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिये तैयार है. कुछ ऐसी हिमाकत जब चीन ने की तो देश के वीर जवानों ने ऑपरेशन 'स्नो लेपर्ड' ने बिगाड़ा चीन का खेल बिगाड़ दिया.
दरअसल एलएसी पर भारत और चीन में पिछले करीब पांच महीने से तनाव की स्थिति है. शुरुआत में चीन ने कई बार घुसपैठ की कोशिश की लेकिन भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ ने चीन की हर चाल को बेनकाब करके सीमा पर पासा पलट दिया है. स्नो लेपर्ड का मतलब होता है बर्फीला तेंदुआ, जिसे दुर्गम स्थान और कठिन परिस्थिति में भी शिकार पर तेजी से अचूक निशाना साधने की महारथ हासिल है. भारतीय सेना ने भी जिस तरह इस ऑपरेशन को अंजाम दिया है, वह किसी बर्फीले तेंदुए जैसी हरकत से कम नहीं है.
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सैन्य वार्ता असफल होने पर बनी ऑपरेशन की रणनीति:
‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ के लिए अगस्त माह की शुरुआत से तैयारी की गई. सबसे पहले उन रणनीतिक पहाड़ियों की पहचान की गई जिन्हें हासिल करना था जैसे कि ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप. भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में नार्दन आर्मी कमांडर कर्नल वाईके जोशी, कोर कमांडर हरजिंदर सिंह, डिविजनल कमांडर और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात लोकल कमांडर, स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीमों के साथ समन्वय करके इस ऑपरेशन की रणनीति बनाई गई. इस रणनीति के तहत तय किया गया कि चीन पर पहले अप्रैल की पुरानी स्थिति में वापस लाने के लिए दबाव बनाया जाए. इसके लिए सैन्य वार्ताओं के कई दौर चले लेकिन जब स्थिति में बदलाव नहीं दिखा तो ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ को अंतिम रूप दिया गया। इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने की पहली शर्त यही थी कि इसकी चीनी सेना को जरा भी भनक न लग पाए.
स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स के साथ जवानों की बनी टीम:
इस बीच चीनी सेना ने जब 29/30 अगस्त की रात में पैन्गोंग झील के दक्षिणी इलाके की थाकुंग चोटी पर घुसपैठ की कोशिश की तो भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया. सेना को ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ अंजाम देने का यही मौका सही लगा. इसके बाद इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए ऐसी टीम तैयार की गई जिनके पास ऊंची पहाड़ियों पर तैनाती या युद्ध लड़ने का अनुभव है। इसमें स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीम को भी शामिल किया गया. इस खास टीम को दो दिन के अंदर ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप को अपने नियंत्रण में लेने का टास्क दिया गया. इन चोटियों को अपने नियंत्रण में लेते वक्त सैन्य टीमों की सुरक्षा के लिए भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट लगातार आसपास पेट्रोलिंग करते रहे. यह ऑपरेशन इतना गोपनीय रहा कि चीनियों को हर चोटी पर तिरंगा फहरने के बाद ही भनक लग सकी.
पैन्गोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारों पर नियंत्रण:
इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय सेना ने सबसे पहले पैन्गोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारों की ऊंची पहाड़ियों को अपने नियंत्रण में लिया. इसके साथ ही इन पर अपनी तैनाती बढ़ा दी जहां से चीन की गतिविधियों पर सीधी नजर रखी जा सके. भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में लेकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चौंका दिया है. चीन से 1962 के युद्ध से पहले यह पूरा इलाका भारत के ही अधिकार-क्षेत्र में था लेकिन युद्ध के दौरान रेचिन-ला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था. इसके बाद से इन पहाड़ियों पर दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं. 1962 के बाद यह पहला मौका है जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की इन पहाड़ियों को अपने नियंत्रण में लिया है.
जवानों के ऑपरेशन से चीन परेशान:
अब रणनीतिक ऊंचाइयों को अपने नियंत्रण में लेने के बाद एलएसी पर स्थितियां अब भारत के पक्ष में हो गई हैं. इसीलिए अब ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ के दूसरे हिस्से में सेना ने चीन से युद्ध की तैयारियों को अंजाम देना शुरू कर दिया है. इसी ऑपरेशन के बाद इसी के बाद से चीन ज्यादा परेशान हुआ है और शायद इसीलिए कोर कमांडर स्तर की अगली वार्ता के लिए आगे नहीं आ रहा है. चीन अब अपने ही जाल में फंसने के बाद यह समझ ही नहीं पा रहा है कि आगे क्या किया जाए? भारत ने इन चोटियों पर सैनिकों की तैनाती करके उन्हें रसद सामग्री, हथियार, गोला-बारूद से लैस कर दिया है. फिलहाल अभी भी चीन के साथ बातचीत के जरिये विवाद हल करने की हर संभव कोशिश जारी है लेकिन अगर बातचीत सफल नहीं होती है तो उसके लिए भी सेना की ओर से बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती कर दी गई है ताकि अप्रैल से पहले की स्थिति को दोबारा हासिल किया जा सके.
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सेना के साथ वायुसेना भी कर रही निगरानी:
भारतीय सेना का साथ देने के लिए वायुसेना भी मुस्तैद है. यानी अब भारत से आगे बात कब करनी है, ये चीन को तय करना है. अब भारत चाहे तो चीन से अपनी शर्तों पर भी बात कर सकता है. यही कारण है कि चीनी कमांडर की ओर से अब तक अगली बातचीत का वक्त नहीं तय किया गया है क्योंकि 'ऑपरेशन स्नो लेपर्ड' के दम पर भारत ने चीन का खेल बिगाड़ दिया है. देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बयान देकर कहा है कि चीन ने लगातार पिछले समझौतों का उल्लंघन करके एलएसी की यथास्थिति को बदलने की कोशिश की है लेकिन भारत इस पर राजी नहीं है. भारत बातचीत से मुद्दा सुलझाना चाहता है लेकिन हर परिस्थिति के लिए भी तैयार है.