क्या सच में ‘लीची’ खाने के बाद AES की चपेट में आ रहे है मुजफ्फरपुर के मासूम, जानें पूरी सच्चाई
लीची (Photo Credits: Pixabay)

पटना: बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) में संदिग्ध एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) से हो रहीं मासूमों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले कई हफ़्तों से जारी इस मौत के तांडव में 150 से ज्यादा बच्चों की जान जा चुकी है, जबकि दर्जनों अभी भी इसकी जद में है. ऐसे में बिहार और केंद्र सरकार के साथ ही डॉक्टरों पर भी पीड़ित उंगलियां उठा रहे है. इन सब के बीच हम मीठे और रसीले फल लीची (Litchi) का नाम खूब सुन रहे है. दरअसल दावा किया जा रहा है कि दिमागी बुखार व चमकी बुखार (Acute Encephalitis Syndrome) लीची के कारण मुजफ्फरपुर में फैला है. डॉक्टरों के मुताबिक एईएस कोई बीमाारी नहीं है. इसमें कई रोग (डिजीज) पाए जाते हैं, जिसमें से एक 'चमकी बुखार' भी है.

पूरी दुनिया में बिहार से लीची का निर्यात होता है. भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा लीची का उत्पादक है. बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने हाल ही में कहा था कि लीची लंबे समय से खाई जाती रही है. आजतक कभी कोई शिकायत नहीं मिली. मैं समझता हूं कि लीची के खिलाफ साजिश की जा रही है. लीची को बदनाम करने की कोशिश हो रही है.

बिहार सरकार के अलावा उड़ीसा ने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम को लीची की जांच का आदेश दिया है. उधर कुछ भ्रामक जानकारी की वजह से कई लोगों ने लीची खाना और लीची का जूस पीना तक बंद कर दिया है. इस वजह से लीची के कारोबार को करोड़ो का नुकसान झेलना पड़ रहा है.

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आपको बता दें कि पिछले साल ही बिहार की मशूहर शाही लीची को कानूनी तौर पर विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के उत्पाद का नाम (जीआई) मिला. मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, चंपारण, बेगूसराय और बिहार के कई क्षेत्रों में शाही लीची की बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है.

मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) के निदेशक विशाल नाथ का दावा है कि एईएस का लीची से कोई संबंध नहीं है. यदि एईएस का संबंध लीची खाने से होता तो जनवरी, फरवरी में भी यह बीमारी नहीं होती. अभी तक ऐसा कोई तथ्य, कोई शोध सामने नहीं आया है, जिससे यह साबित हुआ हो कि लीची इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है.

गौरतलब हो कि वर्ष 2013 में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने इस मामले की एक जांच की थी. जांच के निष्कर्ष में कहा गया था कि खाली पेट लीची खाने के कारण बच्चों में एईएस बीमारी हुई थी. कुछ लोग उसी रिपोर्ट के आधार पर इस बीमारी को लीची से जोड़ रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो अधपकी लीची एईएस का कारण हो सकता है. दरअसल लीची में पाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का तत्व इस बुखार का कारण हो सकता है. खास बात एईएस का प्रकोप मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में लीची के उत्पादन के मौसम में अधिक देखने को मिलता है.

इस बीमारी के शिकार आमतौर पर गरीब परिवारों के बच्चे होते हैं. खासकर 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में जादा आते हैं, और मृतकों में अधिकांश की आयु एक से सात वर्ष के बीच है. इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन (चमकी) होना है. हालांकि अब तक इस बीमारी से लड़ने के कोई कारगर उपाय नहीं ढूंढे जा सके है.