कोच्चि: केरल हाई कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि यदि एक महिला अपने घर के बाहर बिना किसी गुप्तता के खड़ी हो और उसकी तस्वीर ली जाती है, तो यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354C के तहत "वॉयूरिज़म" का अपराध नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने इस मामले में आरोपी के खिलाफ की जा रही कार्यवाही को रद्द कर दिया, क्योंकि पाया गया कि महिला ने अपने घर के सामने खुले स्थान पर खड़ी होकर बिना किसी गुप्तता के फोटो खिंचवाया था.
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि "यदि कोई महिला सामान्यत: सार्वजनिक स्थान पर या एक निजी स्थान पर खड़ी होती है, जहां उसे यह उम्मीद नहीं होती कि कोई अन्य व्यक्ति उसे देखेगा या उसकी तस्वीर लेगा, तो इसमें उसकी गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होता. ऐसे में यदि महिला के शरीर के कुछ अंग जैसे कि जननांग, नितंब या स्तन उजागर होते हैं, तो भी यह धारा 354C के तहत अपराध नहीं बनता है."
Photographing woman while she is out in public not voyeurism: Kerala High Court
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— Bar and Bench (@barandbench) November 5, 2024
इस मामले में एक व्यक्ति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप पत्र और आगे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी. याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने और उसके मित्र ने शिकायतकर्ता के घर के सामने कार में बैठकर महिला की तस्वीरें खींचीं और अश्लील इशारे किए, जिससे उनकी शील भंग हुई.
कोर्ट ने मामले की जाँच करते हुए कहा कि धारा 354C के अनुसार, "प्राइवेट एक्ट" में केवल वही क्रियाएँ आती हैं जो व्यक्ति को उसकी गोपनीयता के उल्लंघन की स्थिति में होती हैं, जैसे कि जब कोई महिला शौचालय का उपयोग कर रही हो या कोई अश्लील कार्य कर रही हो. लेकिन इस मामले में, आरोपित ने महिला की तस्वीरें उसके घर के सामने खींची, जहां महिला की कोई गोपनीयता का उल्लंघन नहीं हुआ था, और इसलिए अपराध साबित नहीं हो सकता.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कोई महिला सार्वजनिक या निजी स्थान पर बिना किसी उम्मीद के कि उसे देखा जाएगा या उसकी तस्वीर ली जाएगी, तो इस स्थिति में यह उसकी गोपनीयता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.
यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संकेत है कि समाज को महिलाओं की गोपनीयता और सुरक्षा के मामले में और भी स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, ताकि ऐसे मामलों में कोई भ्रम न रहे और न्याय सुनिश्चित किया जा सके.
यह निर्णय महिलाओं की गोपनीयता के अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म देता है. जहां एक ओर यह फैसला न्यायिक दृष्टिकोण से ठीक माना जा सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे यह सवाल भी उठता है कि महिलाओं की निजी स्थिति और उनकी तस्वीरों को लेकर समाज में जागरूकता की आवश्यकता और बढ़ जाती है.