केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में राज्य शिक्षा विभाग के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें 2024-25 के शैक्षणिक वर्ष के लिए सहायता प्राप्त और सरकारी स्कूलों में शनिवार को कामकाजी दिन घोषित किया गया था
न्यायमूर्ति जियाद रहमान ए.ए. ने नए शैक्षणिक कैलेंडर को रद्द करते हुए कहा कि इसमें 35 में से 25 शनिवारों को कामकाजी दिन घोषित किया गया था, जो उचित नहीं था.
कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु
कोर्ट ने यह फैसला तब लिया जब यह पाया गया कि सामान्य शिक्षा निदेशक ने इस फैसले से पहले किसी भी हितधारक से परामर्श नहीं किया था और न ही छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर इसके प्रभाव का आकलन किया था.
कोर्ट ने अपने अवलोकन में कहा: "बच्चों की शिक्षा और मनोविज्ञान के विशेषज्ञों के विचारों पर विचार नहीं किया गया. बच्चों को दो श्रेणियों में विभाजित करने का विचार भी नहीं किया गया जो कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम में उल्लिखित है. कार्य के घंटों या शिक्षा के घंटे पर आधारित प्रणाली स्थापित करने की संभावनाओं का भी पता नहीं लगाया गया. यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया, बिना उचित परामर्श और सुनवाई के."
शिक्षा का व्यापक दृष्टिकोण
कोर्ट ने यह भी जोर देकर कहा कि शैक्षिक निर्देश केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक इंटरैक्शन, मनोरंजन गतिविधियों और खेल, कला, एनसीसी, एनएसएस जैसे संगठनों के माध्यम से व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देना भी शामिल है.
कोर्ट ने कहा: "शिक्षा केवल शैक्षणिक अध्ययन के माध्यम से नहीं दी जाती, भले ही यह प्रमुख स्रोत हो...इस तरह की इंटरैक्शन केवल तब हो सकती है जब छात्रों को मनोरंजन गतिविधियों, खेल, कला या अन्य तरीकों के माध्यम से पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाएं. एनसीसी, एनएसएस जैसी गतिविधियाँ भी आवश्यक हैं और उनके लिए भी प्रावधान किए जाने चाहिए."
याचिकाओं का निपटारा
यह फैसला विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के बाद लिया गया, जिनमें शिक्षक संघ, माता-पिता और छात्रों ने सामान्य शिक्षा निदेशक के नए शैक्षणिक कैलेंडर को चुनौती दी थी, जिसने हाई स्कूलों के लिए कामकाजी दिनों की संख्या 205 से बढ़ाकर 220 कर दी थी और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के लिए 195 दिन निर्धारित किए थे, जिसमें परीक्षा के दिन शामिल नहीं थे.
परंपरागत रूप से, सरकारी स्कूलों में पांच-दिवसीय सप्ताह होता है, जिसमें शनिवार और रविवार को अवकाश होता है.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 25 शनिवारों को कामकाजी दिन बनाने का निर्णय एक प्रमुख नीति परिवर्तन था जिसे केवल राज्य सरकार द्वारा ही मंजूरी दी जा सकती थी. उन्होंने यह भी दावा किया कि निदेशक ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत मौजूदा मानदंडों और छात्रों के वर्गीकरण को नजरअंदाज कर अपने अधिकारों से परे जाकर निर्णय लिया.
राज्य का पक्ष
राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि निदेशक ने अपने प्रशासनिक अधिकारों के भीतर कार्य किया और शनिवार को कामकाजी दिन बनाने का निर्णय केरल शिक्षा नियमों (केईआर) के तहत 220 निर्देशात्मक दिनों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाकर लिया गया था.
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने हालांकि नोट किया कि केरल शिक्षा अधिनियम और नियम शैक्षणिक कैलेंडर के प्रबंधन में कुछ लचीलापन प्रदान करते हैं, लेकिन यह लचीलापन उन परिवर्तनों को नहीं बढ़ाता जो स्थापित नीति ढांचे को बदलते हैं.
कोर्ट ने कहा कि निदेशक ने बिना उचित परामर्श के स्थापित पांच-दिवसीय कार्य सप्ताह को बदलने का अधिकार पार कर लिया था, जो एक नीति निर्णय था जिसे राज्य सरकार द्वारा संभाला जाना चाहिए था.
इसलिए, कोर्ट ने अधिसूचना और शैक्षणिक कैलेंडर को इस हद तक रद्द कर दिया कि उसने 25 शनिवारों को कामकाजी दिन घोषित किया था और राज्य सरकार को इस मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया.
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राज्य को केंद्रीय कानूनों का पालन करना चाहिए और ऐसे महत्वपूर्ण नीति परिवर्तनों को लागू करने से पहले हितधारकों और विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कुरियन जॉर्ज कन्नामथानम और अधिवक्ता टीटी मुहमूद, सिजी एंटनी, संदीश राजा, सायरियाक कुरियन और जेस्टिन मैथ्यू ने किया.
राज्य का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक एम. चेरीयन और सरकारी वकील निशा बोस ने किया.